Month: January 2021

नारी

Naari

खाने में नमक ना हो तो वह स्वाद कहाँ।

लेखनी में हम ना हो तो वह जज़्बात कहाँ।।

Intazaar

हर लम्हों का हिसाब कोई ना रखता है यहाँ।

जो इंतज़ार में बदल जाएँ वो घड़ियाँ बेहिसाब यहाँ।।

Shikayate

खामोशियों में तेरी शिकायतों का लहजा,

कुछ ना कहकर भी कह देना ऐसा,

पास रहकर भी पास ना आना तेरा,

ये अनसुनी शिकायतों का पहरा कैसा।।

Khushboo

फूल सूख कर शाख़ से गिर गए,

 ख़ुशबू आज भी मौजूदगी का

 एहसास करा रही है।।

Rishte

एक अजीब-सी ऊर्जा और उत्साह होती है रिश्तों में, 

शब्दों की आत्मीयता का आभास भरपूर मिलता है।

जितने रंग होते हैं रिश्तो के, सब के रूप अनोखे मिलते हैं,

प्यार, स्नेह का अटूट बंधन, आंखों से सीधे दिल में उतरता है।।

Beparwah

बेपरवाह हो गई हूॅं ज़िंदगी

आज़ाद हूॅं अब हर रंजिश से।

सुकून की घड़ी अब मिल गई,

अल्हड़ ज़रूर थोड़ी सी हो गई।।

Yaade

ख़ामोश होकर रह जाती हूँ 

जो कुछ कहना है तुमसे, 

वो ख़ुद से कहती हूँ , 

अतीत की यादें 

धुंधला गई ज़रूर, 

मगर वजूद उसका।। 

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता – कद्र करना सिखा दिया, कोरोना का समय

उषा पटेल

छोटी – छोटी बातें और छोटी से छोटी वस्तुएँ समय आने पर कितने काम आती है, यह समझा दिया है। 

कद्र करना सिखा दिया…. 

महामारी से ग्रस्त यह साल

अपने आखिरी महीने तक आ पहुॅंचा है। 

गुज़रे नौ – दस महीने

किसी सख्त दिल गुरु की कक्षा जैसे, 

जो कुछ कड़वे, तो

कुछ मीठे सबक सिखा गए। 

किसने सोचा था कि

एक ऐसा दौर आएगा, 

जब हम सब घर के बाहर नहीं, 

घर के भीतर का, अपने रहन – सहन, 

आदतों का, सोच- समझ, रिश्ते – नातों, 

परवाह का अन्वेषण करेंगे, 

लगातार, महीनों तक ? 

 घर में रहना सीखेंगे। अपने घर

के खाने की कद्र करना समझेंगे। 

काली मिर्च, अदरक, लौंग जिन्हें

तीखा समझकर दरकिनारा कर

देते थे, उनको सोने – चांदी की तरह संभालेंगे। 

गर्मी में भी गुनगुना पानी पिएंगे, 

वो भी हल्दी डालकर। 

घर की स्त्रियां कितना काम

करती हैं, समझ पाएंगे। 

थककर बैठे इंसान को 

एक प्याला चाय मिले, तो

उसे कितनी राहत मिलती है, जान पाएंगे। 

जो हर समय घर में रहते रहें हैं, 

उनकी स्थिति का बहुत अच्छी

तरह अंदाजा लगा पाएंगे। 

केवल धूल साफ कर देने 

की मदद मिल जाए, 

तो कितना इत्मिनान होता है, यह जान पाएंगे। 

परिवार साथ हो, तो जीवन चाक-चौबंद रहता है,

किसी तरह का कोई डर नहीं सताता, 

किसी मुश्किल का अंदेशा परेशान नहीं करता, 

हाथ और मन कितने मजबूत हो जाते है 

यह छोटी – सी, सदियों से जानी – मानी

हकीक़त भी समझा गया यह साल।

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

कविता – ख़्वाबों के शहर में

ख्वाबों का शहर

मेरे ख्वाबों का शहर मिल गया है आज मुझे,

यहाॅं की हवाओं में ग़जब सी मस्ती है,

तेरे शहर की फिजाओं में ख़ुशी दिखती है,

हर जवां लबों पर फूलों सी हॅंसी दिखती है,

हर गली रौशन है चाहत के चिरागों की तरह,

यहाॅं हर मोड़ पर हर ग़म की दवा मिलती है,

मेरे ख़्वाबों के शहर में हर छत में है भरोसा कायम,

यहाॅं हर मकान में यौवन की महक दिखती है,

हर हसीन दिल में मुहब्बत की चमक दिखती है। 

घर घर नहीं रहे

तब से वो घर-घर नहीं रहें,

जब से पुराने शजर नहीं रहें,

जब साया ही न रहा दुआओं का,

अब तो एक साथ बसर भी न रहें,

हमने पुरानी बस्तियों को छोड़कर,

अपनी ख़ुशियों के घर बना लिए,

पुरानी पीढ़ियों को छोड़कर, 

नये अपने ताल्लुकात बढ़ा लिए,

जो अपनी जड़ से दूर हो गए,

फिर आज वो वृक्ष भी कहाॅं रहें,

विश्वास के स्वर कभी वहाॅं गूंजते थे सम्मिलित,

रौशनी भी प्यार की सब के दिलों में प्रज्वलित,

आज दीवारें देखो ईट की ऑंसुओ सी झर रही,

रौनके मकान की बस आखिरी साॅंस भर रही,

घर बेचारा क्या करें जब न हम रहें न तुम रहें,

अब वो घर  घर नहीं रहें,

जब से पुराने शजर नहीं रहें…। 

 शजर – (वृक्ष, दरख़्त)

तुम्हारी खुशी से बढ़कर

तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर माॅंगी दुआ न रब से,

हम अब भी मुस्कुराये ख्यालों में तुम्ही आये,

ये रौनक तुम्ही से मेरी, तुम खुश्बू – ए – बदन हो,

लब से जिन्हें लगाया उन फूलों में तुम्ही आये,

मुहब्बत का दोस्ताना बस सलामत रहें हमारा,

इबादत करूँ मैं जब भी मुरादों में तुम्ही आये,

तुम मेरे हमनशीं हो तुम मेरे चाँद महाजबीं हो,

हरदम मेरी क़िस्मत में सितारों से तुम्हीं आये,

तुम्हारी ख़ुशी से बढ़कर माॅंगी दुआ न रब से,

हम अब भी मुस्कुराये ख्यालों में तुम्हीं आये..! 

Usha Patel

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

कविता – एक मधुर मुस्कान

Usha Patel

 हॅंस दे जब छोटा सा बचपन मातृभाव जीवित होता हैं,

कोई हँसकर कह दे मैं तेरा हूँ, दुःख तेरा सीमित होता है,

रिश्तों में आ जाए मधुरता, बैठ करें जब हॅंसी ठिठोली,

कितना प्यार बरसता है हम हँसकर खेले आँख मिचौली,

कितने भंवरे जीवित होते हॅंसता जब कलियों का यौवन,

कल-कल हॅंसती जब सरितायें तरुओं में आ जाएं जीवन,

तेरी एक हॅंसी छोटी सी, कितनी बाधा कर दे आसान,

फिर बज उठती मन के वीणा में एक मधुर सी तान,

हॅंसी तुम्हारे उर अंदर की व्यक्त करें अधरों की भाषा,

ये मन्द-मन्द मुस्कान तुम्हारी दूर करें घनघोर निराशा,

होठों के सुख की मुस्की में छिपी हुई एक नयी कहानी,

कोई हँसकर नज़र झुका ले, समझो है तेरी ये प्रीत पुरानी,

अंतर्मन के भाव बदलती बस ये एक मधुर मुस्कान,

फिर बज उठती मन के वीणा में एक मधुर सी तान। 

चल पड़े हम

अब चल पड़े हम अग्निपथ पर,

जब छोड़ सुख का हर धरातल,

अब तपकर ही हम कुंदन बनेंगे,

लह लहायेगा मन का मरुस्थल,

अब इन राहों की तपती धूल में,

सब जल रहे हैं अवसाद दिल के,

मानो मुझसे गर्म झोंके कह रहें हैं,

बस कुछ दूर है ख़ुशियों के बादल,

तुझे मनो वासनाएं बहकाएंगी,

बस देखना मत तू पीछे पलट-कर,

अपने हौसलों  की ओट लेकर,

तू बढ़ता चल जा अग्निपथ पर,

माना मंज़िल से पहले तू अगर,

जलकर खाक में मिल जायेगा,

फिर आनेवाली नस्लों के ख़ातिर,

तू एक नया हौंसला बन जायेगा। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

प्रेम और समर्पण पर कविता

कविता । कोरोना महामारी में इंसान की उम्मीद ना टूटे कभी

आधुनिक गाॅंव….एक कहानी

Adhunik gaon

आज कई सालों बाद मैं अपने परिवार के साथ गाॅंव जा रही थी मन में कई विचार आ रहे थे वहाॅं की कच्ची सड़के, सकरी गली और कई ऊँचे नीचे ढलान जो रास्ते में पड़ते थे जिसमें अक्सर ही बैल गाड़ियाँ अटक जाती थी फिर चार-पाॅंच लोगों को बुलाकर बड़ी मुश्किल से  निकाला जाता था। उस समय लोग साइकिल और बैल गाड़ियों से ही सवारी करते थे जिसके कारण कम दूरी भी ज्यादा समय में तय करनी पड़ती थी और कच्चे रास्तों की वजह से यात्रा में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बारिश के दिनों में सड़कों की हालत इतनी खराब हो जाती थी कि जगह-जगह गड्ढे बन जाते और गड्ढों में पानी जमा हो जाते थे जिसके कारण आने जाने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उस वक़्त अगर कोई एक बड़ी गाड़ी गाॅंव में आ गई तो उसके पीछे हम बच्चों की झुंड चलती थी, बच्चों के शोरगुल से गाड़ी का चालक परेशान हो जाता था मगर फिर भी बच्चे मानते नहीं थे।

अब गाॅंव का चौपाल आने वाला था जहाॅं लोगों की भीड़ बेवजह ही दिखती थी लहराते हुए हरे-भरे खेत, अपना आम का बगीचा जहाॅं अभी मोजर हुए होंगे। हर घर के दरवाज़े पर मवेशियों की आवाजें और घर का दरवाजा शायद ही किसी का बंद हो। खुले दरवाजे के पास दलान में कोई ना कोई बैठा मिल जाता था हमें कभी दरवाज़ा खटखटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी,  हर घर का दरवाज़ा खुला मिलता था। 

इन्हीं सब उधेड़बुन के साथ अपनी सोच से बाहर निकली जब गाड़ी की हॉन् बजी,  हमारी गाड़ी उसी चौपाल पर आ चुकी थी जहाॅं कभी दो-चार दुकानें थी आज कई दुकानें दिखाई दे रहें थे। लगभग शाम हो चुकी थी सभी घर जाने के लिए भाग रहें हो ऐसा प्रतीत हो रहा था। जिसके कारण वहाॅं हमारी गाड़ी उसी भीड़ में कई गाड़ियों की शोर के बीच फँस चुकी थी।

चारो तरफ से गाड़ियाँ निकल रही थी दुकानों से भरा पूरा चौपाल रोशनी में चमक रहा था बड़ी-बड़ी दुकानें और बड़ी- बड़ी गलियाँ देखकर मैं सोचने लगी, कितना रंग रूप बदल गया है इन दस सालों में। शहर के बाजार से जरा भी कम नहीं लगा यह चौपाल, बैल के गले में घंटी डालकर वो बैलगाड़ी का नामो-निशान नहीं दिखा। 

किसी तरह हमारी गाड़ी आगे निकली अब उन गलियों को खोज रही थी मेरी आँखें, मगर अब ना वह कच्ची सड़के थी, ना कच्चे मिट्टी के मकान और झोपड़ियाॅं थी। गाॅंव की काया पलट चुकी थी। चकाचौंध रोशनी के बीच पक्के मकान अच्छे लग रहें थे। हमारी गाड़ियों के पीछे ना कोई बच्चे की झुंड थी, ना किसी का दरवाज़ा खुला मिला। हम जब अपने घर पहुॅंचे तो वहाॅं दादा-दादी ने हमारा आवभगत की। पड़ोस के लोग मिलने आएं, कुछ बचपन की यादें ताजा हो गई।

सुबह होते ही गाॅंव घूमने निकली, खेत खलिहान में सिंचाई के साधन दिखे, वहीं ट्रैक्टर और खेत जुताई के कई साधन भी दिखे, सब कुछ बदल गया था सभी के हाथ में फोन था घर-घर टीवी के अलावा बहुत सारी इलेक्ट्रॉनिक चीजों का इस्तेमाल हो रहा था। गाॅंव अब आधुनिक गाॅंव में तब्दील हो चुका था। आधुनिकता के रंग में रंग चुके थे सभी,  इस बदलाव ने गाॅंव को बहुत कुछ दिया, वहीं हमारी कुछ सभ्यता संस्कृति को ख़त्म भी कर दिया। यह बदलाव मन को अच्छा लगा, मगर कुछ यादें खत्म हो चुकी थी मिट चुकी थी वह कहीं ना कहीं मन के किसी कोने में कचोट भी रही थी।

– Supriya Shaw…✍️🌺

अब तोड़ी हूँ वेग मन का

Dil Ke Alfaz

अब तोड़ी हूँ वेग मन का, मुझको धारा बन बह जाने दो,

मुझे भी साथ ले लो प्रीतम, मुझे भी साथ आने दो।

कदमों के धूल चूम, माथे पर सजाती हर उस क्षण,

विरह की भीषण अग्नि में जब-जब मुझको छोड़ चले जाते हो,

विध्वंस मेरे प्रेम का बचा ले जाते विश्वास कि वह बेला, 

पहले मिलन की याद दिला, साथी बनते जब चाँद सितारे।

अबकी जुड़ी, कई बार टूट कर, अब गले मिल नीर बहाने दो, 

रखो क़दम जहाँ-जहाँ तुम, साथी बन मुझे पीछे आने दो।

कुछ अधूरे से ख़्वाब

बुनती रही, रचती रही, ख़्वाबों में जीती रही, 

कुछ अधूरे से ख़्वाब, अब तक हुए ना पूरे। 

विरह वेदना में घायल मन, आस् का दीपक जलाती रही, 

अश्रु नैनों से बांध तोड़, गालों पर निशान बनाते रहे।

कंपित अधरो से पिया मिलन की, गीत गाते रही, 

अब इंतज़ार को विराम दे दो, दुआ ख़ुदा से करती रही।

अधजगी आँखों से अब तक, ख्वाबों में जीती रही, 

ना उम्मीद का दामन छोड़ी,  हर ख्वाब तेरे नाम करती रही।

सबसे अनोखा रिश्ता – दोस्ती का,

या हो बचपन, चाहे जवानी या बुढ़ापे की हो कहानी,

गर दोस्त ना हो संग जीवन में,

तो हर उम्र ज़िया बिन खुशियों के।

सबसे अनोखा रिश्ता दोस्ती का,

जो पास नहीं, पर साथ है रहता,

अंजाने राहों पर मिला सौगात ये होता,

दुनिया का सबसे अनमोल उपहार बना।

हर बंधन से आज़ाद, ना जाती, धर्म में बंधा रहता, 

जज़्बातों और एहसासो से बना रिश्ता होता, 

टूटने का दर्द भी अनोखा ही होता।

बेमिसाल, स्वच्छंद, आज़ाद 

बस दिलों में क़ैद होना अरमान होता,

जुगलबंदी की ना कोई सीमा,

दोस्तों बिना ज़िंदगी अधूरा।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

मेरी अपनी पहचान

मेरी अपनी पहचान

नाम, शोहरत, ज्ञान, व्यवहार से बनती अपनी पहचान है,

मेरी अपनी पहचान ही मेरा स्वाभिमान है।

क़दम-क़दम पर हर चुनौती स्वीकार कर आगे बढ़ी, 

हर चुनौती पर मेरी नई पहचान बनी।

कितनी भी तीव्र प्रहार दे ज़िंदगी हमें, 

आँसूओं को दिखाकर ना हम ख़ुद की पहचान देंगे।

रहेंगे अडिग अपने मक़सद पर, कमज़ोर ना ख़ुद को दिखलाएंगे,

ज़िंदगी के हर परीक्षा में हँसते हुए आगे बढ़ेंगे।

अपने लक्ष्य को ख़ुद पाना है

जीवन के संघर्ष का जंग चलता रहेगा,

जीत का जश्न, तो हार का दंश भी सहना पड़ेगा।

तपिश तेज हो मगर सागर कभी सूखता नहीं, 

जिगर में आग हो तो लक्ष्य पाना मुश्किल नहीं।

मुसीबत आएगी डरा कर चली जाएगी, 

धैर्य और साहस से, मौसम का मिजाज़ बदल जाएगा। 

बढ़ा आत्मबल, बनकर सबल, आँधियों को चीर तु चलता चल, 

लगन बढ़ा, चल निडर अपने लक्ष्य को ख़ुद पाना है।

केवल अपने स्वार्थ की नहीं दूसरों के हित की भी सोचो

केवल अपने स्वार्थ की नहीं दूसरों के हित की भी सोचो,

जज़्बात सीने में गर है तो ख्याल दूसरों का भी रखो,

क्या पता कल समय साथ दे ना दे, आज को संभाल कर रखो,

हर घड़ी हक़ में नहीं होती, ज़िंदगी के कुछ पल उधार भी रखो।।

जब सभी रास्ते बंद हो जायें तब ख़ुद अपनी राह बनाओं

जब सभी रास्ते बंद हो जायें, 

तब ख़ुद से अपनी राह बनाओं, 

मंज़िल का पता ना मिल पायें, 

ख़ुद से कई सवाल करो। 

हर सवाल एक रास्ता बन जायेगा, 

मंज़िल भी बहुत पास नज़र आयेगी, 

एक वक़्त वह भी आयेगा, 

जब हर कोई तुमसे रास्तों का पता माॅंगेगा।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

हार कर भी जीत जाना है

हार कर भी जीत जाना है

गिरकर फ़िर उठ जाना है, वक़्त से नहीं घबराना है, 

हिम्मत जो गर टूट गया, दम निकल फ़िर जाना है। 

बने काम होंगे विफल, समस्याऍं होंगी जटिल, 

आत्मबल बढ़ाना है, सफल काम बनाना है।।

साहस मात्र सहारा है, ख़ुद पर विश्वास जगाना है, 

अग्रसर हो लक्ष्य पर अपने, पीछे फ़िर ना मुड़ जाना है। 

हक़ अपना अधिकार है, उसको सिद्धान्त बनाना है, 

ज़मीर गर ज़िंदा है, हार कर भी जीत जाना है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

सपनों का संसार

सपनों का संसार लगता अद्भुत और मनभावन,

हक़ीक़त से जब  होता सामना, उस पल हो जाते आहत।

खुली आँखों से देखा सपना, कठोर परिश्रम भरा होता,

वो सफर तय करना भी, हर किसी के बस में नहीं होता।

जो होते कर्मठ, और सफलता की हो चाहत, 

वो चलते इस राह पर, वो सोते ना वक़्त बिताते।

क़िस्मत को आजमाना छोड़, सपनों को पूरा कर ले जो,

 सच्चा सुख वहीं मिल जाता, हर सपना साकार हो जाता।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

प्रेरणादायक विचार

सब्र का बाँध

सब्र का बाँध

सैलाब की तरह बह जाता है इंसान, 

जब सब्र का बाँध टूट जाता है।

टूटते, बिखरते अल्फ़ाज़ों में ख़ुद को,

कभी समेटता, कभी दूसरो को चोट देता है।

जहाँ समस्या है वहाँ हल है

जहाँ समस्या है वहाँ हल है

हल समस्या का कोशिशो से सफल हो जाता हैं, 

जहाँ समस्या है वहाँ हल, ख़ुद-ब-ख़ुद निकल आता हैं।

आँखे बंद कर लेने से समस्याएँ टल नहीं जाती हैं,

और ठहर जाने से रास्ते बदल नहीं जाते हैं।

चलो क़दम बढ़ाते हैं

चलो क़दम बढ़ाते हैं

पथरीले रास्तों पर दरारे साफ दिखाई दे रहे हैं, 

ज़ख्मी क़दमों के निशान छोड़ते जा रहे हैं।

इंतज़ार में ठहर कर समय को चोट नहीं देना हैं, 

चलो क़दम बढ़ाते हैं मंज़िल सामने दिखाई दे रही हैं।

– Supriya Shaw…✍️🌺

इम्तिहान

माने या ना माने, 

आसान तब भी नहीं था, 

जब बच्चे थे,

अब भी नहीं है, 

और आगे भी जूझना है, 

कई मुश्किलों से,

हर इम्तिहान में पास हो, 

यह भी मुमकिन नहीं है, 

मगर हार कर बैठ जाए, 

यह भी मुनासिब नहीं है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺