बहुत परेशान होने पर मैं खुद से बातें करने लगती हूँ। अक्सर अकेले बैठकर मुझे खुद से सवाल करना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि जब मैं खुद से सवाल करती हूँ मुझे अपने सारे सवालों का जवाब मिल जाता है और मैं थोड़ा सुकून महसूस करती हूँ ।
कई बार मैं अपने आप से थक जाती हूँ। ज़िम्मेदारियों का बोझ कभी सोने नहीं देता, सभी को खुश रखना आसान नहीं है, क्योंकि कई बार खुद को हर जगह रोकना पड़ता है। ज़िम्मेदारी सिर्फ घर और बाहर के काम तक ही सीमित नहीं है ज़िम्मेदारी का दूसरा रूप यह भी है कि अगर आप किसी के लिए प्रेरणा है या कोई आपको देखकर जीवन की अच्छी बातों को सीखता है तो यहाँ आपकी ज़िम्मेदारी यह बन जाती है कि आप उसके सामने कभी गलत निर्णय ना लो या कोई गलत काम ना करो, बहुत मुश्किल होता है इस ज़िम्मेदारी को संभालना और इसमें इंसान कभी-कभी खुद के लिए नहीं, पूरी तरह दूसरों के लिए जीता है।
लेकिन यह सत्य है क्योंकि यह सवाल मैं खुद से अकेले में की और यही महसूस कि, मेरे साथ बहुत से लोग हैं जो मुझे अपने जीवन का आधार, प्रेरणा समझते हैं। मैं नासमझी कैसे कर सकती हूँ मुझे हर कदम सोच-समझकर ही उठाना है यही मेरी असली ज़िम्मेदारी है।
अचानक मुझे आभास हुआ, अब तो बच्चों के स्कूल से आने का समय हो गया है और मैं खुद को फिर तैयार की अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए। जिम्मेदारियाँ आख़िरी साँस तक साथ रहती हैं इससे पीछा छुड़ाना या इसे छोड़ कर कहीं चले जाना नामुमकिन है। इसे कैसे पूरा करें ताकि आपकी भी खुशी कम ना हो, और अपनों के चेहरे की मुस्कान भी बनी रहें। बस यही सोचते हुए, मुस्कुराकर मैं चल दी अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने।
– Supriya Shaw…✍️🌺
Very nicely written 👌🏻