Month: January 2021

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का,

है कहानी इंसान के जीने-मरने का। 

कभी डूबता, कभी उभरता, 

जीवन के हर रंग-रूप में,

ख़ुद की चाहत को रंग देता। 

लिए सपनों को पंख लगाए, 

उड़ने की कोशिश में रहता। 

टूट कर गिरता हर बार,

फ़िर से ख़ुद को ज़िंदा रखता। 

है ज़िंदगी का नहीं भरोसा, 

जानकर अनजान रहता। 

नज़ारा देख मौत का, 

ज़िगर में ना सैलाब उमड़ता। 

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का, 

है कहानी इंसान के जीने मरने का।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

सुबह की रौशनी

सुबह की रौशनी

सुबह की रौशनी में आसमाॅं मुस्कुरा उठा, 

मन के सारे तार एक साथ मधुर स्वर में गा उठे।

सुबह की अद्भुत बेला हज़ारो खुशियों का संकेत दे गई,

वहीं पूरे दिन के संतुलन का आधार बनकर रह गई। 

चिड़ियों का चहचहाना, हवाओं का कौतूहल, 

मन में पड़े जाने कितने गांठ खोल गई। 

निराशा के बादल छट कर, आशा की किरण बन गई,

नई दिशा का मार्ग दिखाकर चलने का हौसला दे गई।

बढ़ती रौशनी अंधेरो पर विजय का एहसास कराती, 

जीने का उद्देश्य बता कर संध्या में विलीन हो गई।

– Supriya Shaw…✍️🌺

लघुकथा “ज़िम्मेदारी क्या है”

ज़िम्मेदारी क्या है

बहुत परेशान होने पर मैं खुद से बातें करने लगती हूँ। अक्सर अकेले बैठकर मुझे खुद से सवाल करना बहुत अच्छा लगता है क्योंकि जब मैं खुद से सवाल करती हूँ मुझे अपने सारे सवालों का जवाब मिल जाता है और मैं थोड़ा सुकून महसूस करती हूँ ।

                कई बार मैं अपने आप से थक जाती हूँ। ज़िम्मेदारियों का बोझ कभी सोने नहीं देता, सभी को खुश रखना आसान नहीं है, क्योंकि कई बार खुद को हर जगह रोकना पड़ता है। ज़िम्मेदारी सिर्फ घर और बाहर के काम तक ही सीमित नहीं है ज़िम्मेदारी का दूसरा रूप यह भी है कि अगर आप किसी के लिए प्रेरणा है या कोई आपको देखकर जीवन की अच्छी बातों को सीखता है तो यहाँ आपकी ज़िम्मेदारी यह बन जाती है कि आप उसके सामने कभी गलत निर्णय ना लो या कोई गलत काम ना करो, बहुत मुश्किल होता है इस ज़िम्मेदारी को संभालना और इसमें इंसान कभी-कभी खुद के लिए नहीं, पूरी तरह दूसरों के लिए जीता है।

लेकिन यह सत्य है क्योंकि यह सवाल मैं खुद से अकेले में की और यही महसूस कि, मेरे साथ बहुत से लोग हैं जो मुझे अपने जीवन का आधार, प्रेरणा समझते हैं। मैं नासमझी कैसे कर सकती हूँ मुझे हर कदम सोच-समझकर ही उठाना है यही मेरी असली ज़िम्मेदारी है।

अचानक मुझे आभास हुआ, अब तो बच्चों के स्कूल से आने का समय हो गया है और मैं खुद को फिर तैयार की अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने के लिए। जिम्मेदारियाँ आख़िरी साँस तक साथ रहती हैं इससे पीछा छुड़ाना या इसे छोड़ कर कहीं चले जाना नामुमकिन है। इसे कैसे पूरा करें ताकि आपकी भी खुशी कम ना हो, और अपनों के चेहरे की मुस्कान भी बनी रहें। बस यही सोचते हुए, मुस्कुराकर मैं चल दी अपनी ज़िम्मेदारी को पूरा करने।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कोशिश तो कर

कोशिश तो कर

माना घनघोर अंधेरा सामने है,

रास्तो का पता, ना मंज़िल सामने है।

ना साथी, ना हमसफ़र, ना कोई कारवाॅं है, 

मन परेशान सा चलना  है मुश्किल।

एक हौसला कह रहा तू क़दम तो बढ़ा,

चल कम से कम तू कोशिश तो कर।

हार कर रुक जाना ही जीवन नहीं है, 

कोशिशो पर समय ने गति बदल दी है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

आवाज़

आवाज़ जब दिल से निकले, 

मूक बन हर शख़्स देखता है।

ना प्रश्नचिन्ह, ना संदेह, 

जब गूंज बन मिलो तक पहूँचता है।

हर कोई साथ चल देता है, 

मुश्किलों का सफ़र मुस्कुराकर कट जाता है।

तपिश बन बरसे पहर कोई, 

हर पहर वो आवाज़ ना विमुख होने देता है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

ख़ुद से उम्मीद

ख़ुद से उम्मीद, ख़ुद से एक वचन हर रोज लेती हूँ,

ख़ुद का विश्वास, ख़ुद से ही जीत लेती हूँ।

मुश्किलों के दौर में, लड़खड़ाते कुछ दौर गुज़रता ज़रूर है,

ख़ुद को हर दौर पर, खड़ा करने की कोशिश किया करती हूँ।

हार जाती हूँ  मगर, गिरने ना देती हूँ  ख़ुद को, 

अपनी उम्मीदों पर, हर हाल में खरा उतरती हूँ।।

कविता – भोर हुई

किरणो के रथ पर सवार, 

आए “दिनकर” अभिनंदन हो जय जयकार, 

ठिठुर कर छुप गई है अंधकार, 

जब जगमगाया पूरब का द्वार, 

शंख, गान, आरती से गूंज उठा चारो दिशा, 

भोर के आगमन के स्वागत में डूबा पूरा संसार, 

ओस की बूंदों ने प्रकृति को शोभायमान किया, 

भोर की बेला में मन मयूर बन झूम उठा।।

By – Supriya Shaw…✍️🌺

Har chhan Ko Hans Kar Jiyo

एक पल में क़िस्सा कभी शुरू नहीं होता, 

पर क्षण में क़िस्सा ख़त्म हो जाता है।

सुख-दुख करवट लेकर आती-जाती रहेंगी, 

जाने कौन करवट साँसे थम जाएगी।

ज़िंदगी के हर क्षण को हँस कर जियो, 

जाने कब कौन सा पल रुला कर चला जाए।।

Tum daro mat, bas aage badhte jao

Tum daro mat, bas aage badhte jao

हवा का रुख़ कभी एक सी नहीं रहती, 

कभी इधर तो कभी उधर चली जाती है।

रूप कई बदलकर हमारे आसपास मंडराती है, 

पर तुम डरो मत, बस आगे बढ़ते जाओ।

देख हमारी हसरत उसकी गति बदल जाती है, 

हमारे इरादो को देख वो राह बदल देती है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

Nakaratmak Mat Socho

एक सोच पल में बदल दे स्वर कंठो की, 

मृदुल सी बोली से जोड़े कई रिश्तों को।

एक सोच आसमाँ छूने की जब ठाने ह्रदय से, 

लाख अँधेरों में भी मिल जाएँ जुगनू की किरण भी।

नकारात्मकता को जो साथ लिए, “ना” की जगह बन जायेगा,

सकारात्मकता को जो साथ लिए, “हाँ” से रिश्ता जुड़ जायेगा।।

– Supriya Shaw…✍️🌺