बात उस समय की है जब रमेश पांचवी कक्षा में पढ़ता था। उसके पिता एक गरीब कृषक थे। उसके यहाँ हमेशा खाने -पीने के लाले पडे़ रहते थे, इसके बावजूद वो अपने पुत्र को पढ़ा- लिखा कर उसे एक सफल और काबिल इंसान के रुप में देखना चाहते थे। एक दिन जब रमेश छुट्टी होने पर विद्यालय से घर लौटा और जब रमेश ने अपना बैग खोला तो उसे उसमें किसी की डायरी मिली उसे देखकर हक्का बक्का रह गया और वो सोचने लगा आखिर ये डायरी किसकी है और बैग में इसे किसने रखा है ? वह डायरी को बड़े ही गौर से उलट – पुलटकर देखने लगा। अचानक डायरी से एक आवाज आयी — ए बालक! ये कोई साधारण डायरी नहीं है, बल्कि यह एक जादुई डायरी है । इस डायरी में लिखे हूए कार्यों में से तुम्हें प्रतिदिन एक कार्य करना है और बदले में हर रोज तुम्हें सोने की एक अशर्फी मिलेगी । यह डायरी तबतक तुम्हारे ही पास रहेगी जब तक तुम अपने माता – पिता की सेवा, आदर, देखभाल और उनका आज्ञा का पालन करते रहोगे। जिस दिन तुमने अपने माता – पिता का तिरस्कार कर उन्हें असहाय अवस्था में छोड़ दोगें, तुम्हारे पास से सोने की सभी अशर्फियां और डायरी भी गायब हो जायेगी।
रमेश चमत्कारी डायरी पाकर बहुत ही खुश हुआ और वह अदृश्य आवाज़ के कथनानुसार कार्य करने लगा। धीरे – धीरे समय बीतता गया और देखते ही देखते उसके पास सोने की ढे़र सारी अशर्फियां जमा होने लगी, और वह शहर के रईस व्यक्तियों की गिनती में आने लगा। माता – पिता भी उसकी तरक्की से बहुत प्रसन्न थे। लेकिन होनी को शायद कुछ और ही मंजूर था। बीतते वक्त के साथ रमेश अहंकारी और बुरे आदतों में संलिप्त हो गया। माता – पिता की भी उसने अवज्ञा और अनादर करना शुरू कर दिया। उसके माता -पिता हर दिन यही सोचते कि वो बडा़ ही समझदार है, उसे अपनी गलती का अहसास खुद ही हो जायेगा। रमेश अपने अहंकार के वशीभूत होकर अपने माता -पिता से गाली -गलौज, मार -पीट और उनका तिरस्कार करने लगा। फिर भी उसके माता – पिता अपने पुत्र -मोह के कारण उसे ऐसी अवस्था में छोड़कर नहीं जाना चाहते थे। पर आखिर एक दिन उनके सब्र का बांध टूट गया और उन्होंने फैसला लिया कि अब वो अपना घर छोड़कर कहीं और चले जायेंगे, फिर वहीं अपना पूरा जिंदगी बितायेंगे। और वे यह निश्चय कर वो दूसरे शहर की ओर पैदल ही चल दिये लेकिन दुर्भाग्यवश सड़क दुर्घटना में उसके माता – पिता की मृत्यु हो गयी। और रमेश हर दिन की तरह अगला कार्य डायरी में देखने गया तो उसे वो डायरी उसके घर में कहीं नहीं मिली तथा सोने की सभी अशर्फियां भी गायब हो चुकी थी । तब तक उसे अपनी गलती का अहसास होने में बहुत देर हो चुकी थी। वह अपने माता – पिता की खोज करने निकल पडा़ पर जब उसे अपने माता -पिता की मृत्यु का समाचार मिला तब उसका हृदय आत्मग्लानि से भर उठा और उसे अपने माता – पिता के साथ किये गये दुर्व्यवहार पर पश्यात्प होने लगा परंतु अब वह कुछ कर भी नहीं सकता था।
सीख — चाहे हम अपनी कामयाबी की परकाष्ठा पर भी रहे तब भी हमें हमेशा अपने माता – पिता का आदर – सम्मान और सेवा करनी चाहिए। अहंकार के वशीभूत होकर हमें रिश्तों की मर्यादा कभी नहीं भूलना चाहिए।
लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)
नालंदा, बिहार