Month: April 2021

मेथी थेपला

गुजराती थेपला अनेक तरह से बनाये जाते है!

बेसन और गेहूं के आटे को मेथी और देशी मसाला मिलाकर बने मेथी के थेपला बनाएं, आप इन्हें टिफिन में तो रख ही सकते हैं, कहीं घूमने जाए तो थेपला बनाकर ले जाएं, पूरी जैसा बैलकर तल लें कुरकुरा थेपला बहोत दिन तक खराब नहीं होते, और रोटी की तरह सेंककर भी बनाया जाता है।

गुजराती-थेपला

आवश्यक सामग्री :

गेहूं का आटा – 1 कप 

 बेसन – 1/4 कप

मेथी – 1/2 कप

 दही – 1/4 कप

 तेल – 1/4 कप आटे में डालकर गूंथने के लिए और थेपला सेकने के लिए या तलने के लिए

 धनिया – 1/2 छोटी चम्मच

 नमक – 1/2 छोटी चम्मच या स्वादानुसार

 अजवायन – 1/4 छोटी चम्मच

 लाल मिर्च – 1/4 छोटी चम्मच

 हल्दी पाउडर – 1/4 छोटी चम्मच

विधि : 

गेहूं के आटे को किसी बर्तन में निकाल लीजिए उसमें बेसन, लाल मिर्च पाउडर, हल्दी पाउडर , धनिया पाउडर, नमक, अजवायन, कटी हुई मेथी, दही और दो छोटे चम्मच तेल डालकर अच्छी तरह मिला लीजिए। पानी की सहायता से नरम आटा गूंथ लीजिए। आटे को 20 मिनट के लिए ढककर रख दीजिए। आटा सेट होकर तैयार हो जाएगा। हाथ पर थोड़ा सा तेल लगाकर आटे को मसलकर चिकना कर लीजिए। 

तवा गरम कीजिए। आटे से थोड़ा सा एक छोटे नींबू के बराबर आटा लीजिए, और गोल लोई बनाकर तैयार कर लीजिए। गेहूं के सूखे आटे में लपेटकर चकले पर रखिए, और पतला बेल लीजिए। गरम तवे पर थोड़ा सा तेल डालकर चारों और फैलाए। 

अब बेले गये थेपला को तवे पर डाल दीजिए। जब थेपला का कलर ऊपर से थोड़ा डार्क हो जाए तब थेपला को पलट दीजिए, ऊपर की ओर 1 छोटी चम्मच तेल डालकर फैलाइये। मीडियम ऑंच पर थेपला को दोनो ओर पलट पलट कर अच्छी ब्राउन होने तक सेकिए। सारे थेपले इसी प्रकार सेंक कर तैयार कर लीजिए। 

आप चाहे तो पूरी जैसा छोटा बेलकर इसे तल भी सकते है। ब्राउन होने तक तला हुआ कुरकुरा थेपला बहुत दिनों तक रख सकते है।

स्वादिष्ट मेथी थेपला बनकर तैयार है। इन्हें आप अचार, दही, चटनी के साथ खा सकते हैं। ये गुजराती डिश है चाय के साथ भी खा सकते है। मेथी थेपला बनाइए और खाइए।

उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग

उत्तराखंड की ऐपण कला

ऐपण

भारत के उत्तराखंड राज्य में दो प्रमुख मंडल हैं गढ़वाल और कुमाऊं।

कुमाऊं क्षेत्र के एक प्रमुख लोक कला है जिसका नाम है ऐपण।

ऐपण क्या है ? 

“ऐपण” शब्द संस्कृत के शब्द “अर्पण” से लिया गया है। 

“ऐपण” का शाब्दिक अर्थ होता है “लिखना”।

ऐपण उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रत्येक त्योहार, शुभ अवसर, धार्मिक अनुष्ठान, नामकरण संस्कार,  आदि पवित्र समारोह का एक अभिन्न अंग है, जिसमें तरह-तरह की आकृतियां, चित्र बनाए जाते हैं।

 ऐपण कहाँ बनाए जाते हैं ?

ऐपण फर्श, दीवारों, घरो के प्रवेश द्वार, पूजा का क्षेत्र, मंदिर में चौकियों पर, पूजा की थाल में, पूजा के आसन में, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए जो आसन बनाए जाते हैं उनमें और अब तो आधुनिक रूप से विभिन्न प्रकार के पेंटिग्स में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है ।

ऐपण बनाने की पारंपरिक विधि 

उत्तराखंड के कुमाऊं में प्रत्येक महीना दिवाली के शुभ अवसर पर मुख्य त्योहारों पर अपने घरों को ऐपण से जरूर सजाती है।

परंपरागत रूप से ऐपण में गेरू और चावल को भिगोकर पीसे गये घोल (पेस्ट) का प्रयोग होता है। इसमें महिला अपने दाहिने हाथ की अंतिम तीन उंगलियों से विभिन्न प्रकार की ज्योमैट्रिक पेटर्न जिसमे स्वास्तिक, शंख,सूर्य, चंद्रमा, पुष्प देवी लक्ष्मी, गणेश आदि की आकृतियां बनाती है । 

ऐपण बनाने की आधुनिक विधि

आज के समय में महिलाएँ और लड़कियाँ गेरू और चावल के पेस्ट की जगह पर रंग – बिरंगे पेंट जैसे लाल, सफेद रंगों का प्रयोग करते हैं वे तरह-तरह के आकृतियाँ बनाती हैं।

ऐंपण कला का महत्व

उत्तराखंड के कुमाऊं की ये अनमोल कला को अभी तक संभालने और अपनी पीढ़ियों को आगे से आगे पहुंचाने का  श्रेय किसी को जाता है तो वो है वहाँ की महिलाएं जो अपनी बहू, बेटियों को और बच्चों को अब ये पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाते जा रही हैं। इसका बहुत ही अधिक महत्व है क्योंकि धीरे-धीरे हमारे लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं और इन को संभालना अब आज की नई पीढ़ी के लिए बहुत ही ज़रूरी है चाहे वो शहर में रह रहे हो या गाॅंव में।

खासकर जब बात आती है दिवाली के दिनों की तो अच्छा मौका होता है जब सब मिलकर कुछ ना कुछ अपने घर के लिए कर सकते हैं अपने मंदिर को सजा सकते हैं इस ऐपण के द्वारा और अपने समय का सदुपयोग के साथ-साथ इस विरासत को ख़त्म होने से बचा सकते हैं।

(आशा करती हूॅं आपको उत्तराखंड के इस लोक कला के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा)

जय देवभूमि ! जय उत्तराखंड 🙏

लेखिका: सीता वोरा

पांवटा साहिब,  हिमाचल प्रदेश

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पनीर रोल

Paneer-Roll

पनीर रोल नाश्ते में परोसे जाने वाले एक लाजवाब रोल है! जो बच्चों को बहुत पसंद आते है! 

इसमें पनीर का स्वादिष्ट मसाला चपाती या पराठा में लपेट कर रोल बनाये जाते है, इसे घर पर बनाना बहुत सरल है!

इस विधि में मुख्य तीन चरण है
  1. पनीर का मसाला बनाना
  2. रोल के लिए चपाती बनाना और
  3. रोल बनाना
पनीर के मसाले के लिए सामग्री
  • 1 कप कसा हुआ पनीर
  • 2 टेबल स्पून बारीक कटा हुआ धनिया
  • 1 मध्यम प्याज, बारीक कटा हुआ
  • 1 हरी मिर्च, बारीक कटी हुई
  • 1/2 टी स्पून अदरक, लसून का पेस्ट
  • 1/2 टी स्पून जीरा
  • 1/4 टी स्पून गरम मसाला पाऊडर
  • 1/2 टी स्पून लाल मिर्च पाऊडर
  • 1 टी स्पून धनिया पाऊडर
  • 2 टी स्पून टोमेटो केचप, स्वाद अनुसार नमक
  • 1 टी स्पून तेल
चपाती के लिए सामग्री
  • 3/4 कप + 1/4 कप गेहूँ का आटा या मैदा
  • 2 टी स्पून तेल, दूध, नमक
रोल बनाने के लिए सामग्री
  • 2 चीज़ क्यूब, कसा हुआ
  • 1 कप कटा हुआ पत्ता गोभी, 4 टी स्पून हरी चटनी, तेल सेकने के लिए! 

रोल के लिए चपाती बनाने की विधि

एक टबरतन में 3/4 गेहूं का आटा, 2 स्पून तेल और नमक लें! 

जरूरत के अनुसार दूध या पानी डालें और चपाती या पराठे के आटे की तरह नरम आटा गूंथ लें! आटे को ढककर 10-15 मिनट के लिए रख दें! उसे 4 भागों में बाँट ले और लोई बना दें! 

लोई को गेहूं के सूखे आटे में लपेटकर पतली चपाती बेल दें! 

और तवे में हल्के भूरे होने तक सेंक लें…..! 

इसे एक प्लेट में रखे और ढक दें ताकि नरम रहे..! 

भराई के लिए मसाला बनाने की, विधि

  1. एक कड़ाही में कम आँच पर तेल गरम करें, उसमें जीरा डालें! जब जीरा सुनहरा होने लगे तब बारीक कटा हुआ प्याज डालें! प्याज सुनहरे भूरे होने तक भूने! अदरक- लसून का पेस्ट डालें और 30 सेकंड के लिए भूने! 
  2. लाल मिर्च पाऊडर, धनिया पाऊडर, गरम मसाला पाऊडर, टोमेटो केचप, हरा धनिया और हरी मिर्च डालें……! अच्छी तरह से मिलाएं……! 
  3. गैस बंद कर दें! कसा हुआ पनीर और नमक डालें! अच्छी तरह से मिलाए! रोल बनाने के लिए मसाला तैयार है! 

पनीर रोल बनाने की विधि

  1. परोसने के समय मध्यम आँच पर एक तवा गरम करें! उसके ऊपर पहले से सेकी हुई चपाती डालें! तेल लगाकर फिर से सेंक लें! प्लेट में निकाले, उसके ऊपर समान रूप से 1 spoon हरी चटनी फैला दें! बीच में मसाला रखें और लंबाई में फैला दें! उसके ऊपर कसा हुआ चीज़ और कटा हुआ पत्ता गोभी डालें! 
  2. मसाले को चपाती से लपेटकर रोल बना लें
  3. उन्हें टमाटर केचप और हरी चटनी के साथ परोसे! 

सुझाव आप चपाती और मसाले को पहले से बनाकर रख सकते है! 

स्वाद- चटपटा और नमकीन..! 

तो दोस्तों आप भी घर में पनीर रोल बनाइए, खाइये और खिलाइये, जरूर सभी को पसंद आयेगा.

Usha Patel Kitchen

स्त्री विषयी कविता

नारी एक कहानी

Naari

न दफ़न होती कोख में, लड़की कभी,

  जो लड़का होती,

न मारी जाती, न जलाई जाती ज़िंदा,

कोई राज दुलारी, कहीं वो बहुरानी, न पत्नी

बस इंसान होती।

न लूट लेता कोई अस्मत उसकी,

जो वो बेटी अपनी, ना पराई होती,

ना छली जाती प्रेमी से कभी वो प्रेयसी,

जो वो प्रेम नारी बस यूँ ही,

बना दो झाँसी की रानी, 

या बंदूके हाथों में थमा दो,

वहशियों को वहशियत की तुम,

हाँ मौके पर सज़ा दो।

घर में चूड़ी से नहीं होगा,

अब इनका गुजारा,

लड़ मरे अस्मत की खातिर,

ज्वाला वो दिल में जला दो।

बेड़ियाँ कुछ यूँ हाँ खोलो,

बेटो सी नहीं तू बोलो,

तुझमें बेटो से ज़्यादा है शक्ति,

उनको तुम इतना जता दो।

तू भवानी, तू ही काली,

तुम उन्हें दुर्गा बना दो,

तुम उन्हें दुर्गा बना दो।।

वजूद स्त्री हो जाना

सच कहे तो स्त्री होना इतना आसान नहीं होता,

हर पल खुद को खोना होता है,

कभी बेटी बन के,

तो कभी पत्नी, बहु, तो कभी माॅं बन के, 

हर पल खुद को खोना होता है,

खुद ही खुद का वजूद मिटाना होता है,

क्या इतना सरल होता है खुद के वजूद को खो देना,

अगर इतना ही सरल होता है,

तो क्यों नहीं खो देते तुम अपने ही वजूद को,

क्यों एक पल सपने दिखाकर दूसरे ही पल छीन ले जाते हो,

कभी जिम्मेदारी के लिए, कभी मान – सम्मान के लिए,

सबको अपने से ऊपर और खुद को नींव बनाना पड़ता है,

अपने ही वजूद को मिटाना पड़ता है,

सपनों को छुपाना पड़ता है,

खुद को खोना पड़ता है,

सबकी खुशी के लिए खुद को नींव बन जाना पड़ता है। 

क्या अब भी लगता है? 

इतना सरल होता है स्त्री हो जाना?

क्या इतना सरल होता है खुद के वजूद को नाम देना?? 

कद्र करना सिखा दिया – कोरोना का समय

मेरी अपनी पहचान

रोटियाॅं

रोटियाॅं

माँ को जब देखती हूॅं चूल्हे पर रोटियाॅं सेकते हुए, नजर चली जाती है उसकी उंगलियों पर, जो शायद पक गई है, चूल्हे की ऑंच सहकर बरसो से, तो सोचती हूॅं, कि शायद उस विश्व रचयिता की उंगलियाॅं भी, इन उंगलियों के सामने कोई महत्व नहीं रखती। 

तो दोस्तों  रोटियाॅं के  ऊपर एक कविता प्रस्तुत करने जा रही हूॅं….। एक नज़र पढ़ लीजियेगा। 

कभी एक वक़्त भी नसीब नहीं होती है रोटियाॅं,

कभी कभी चार वक़्त भी मिल जाती है रोटियाॅं,

कभी किसी के दर्द से निकली हुई रोटियाॅं,

कभी भूख से पीड़ित जान ले लेती है रोटियाॅं,

कभी अमीर के घर की कूड़ेदान हो जाती है रोटियाॅं,

कभी माॅं के ऑंचल से लिपटी हुई रोटियाॅं,

कभी बाप के पसीने से भीगी हुई रोटियाॅं,

कभी यौवन के श्रृंगार रची हुई रोटियाॅं,

कभी बुढ़ापे के डर से कांपती रोटियाॅं,

कभी सावन के फुहार बलखाती रोटियाॅं,

कभी रेत की तरह फिसल जाती रोटियाॅं,

कभी सम्मान के खातिर बिक जाती है रोटियाॅं,

कभी गुनाह करके भी ऑंखे दिखाती है रोटियाॅं,

कभी ज़िंदगी के वजूद के लिए मिट जाती है रोटियाॅं,

आखिर में निवाला बनकर खत्म हो जाती है रोटियाॅं। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

कविता – प्रेम विरह कविता

कहानी