मन में एक डर क्यूँ समाया है हर वक्त चिंता और व्याकुलता में सुबह से रात और रात से सुबह हो रही है ना भूख ना प्यास, बस खाना इसलिए खाएं जा रहे हैं क्योंकि जिम्मेदारियों का जो सफ़र है वह बाकी है। अभी तो शुरुआत हुई है, और मरने की भी जहां फुर्सत नहीं वहाँ कोरोना नामक अजगर मुँह बाये हर निर्दोष को निगले जा रहा है बस डर उसी अजगर से अब लग रहा है।
सुबह का समय हो और फ़ोन की घंटी बजी तो एक भय सा मन में समां जाता है कहीं कोई अनहोनी घटना तो नहीं सुनने को मिलेगी। और डर हो भी तो कैसे ना हो, अब तक अनगिनत अनहोनी घटनाओं का ख़बर सुन चुकी हूॅं की मन दुःख और पीड़ा से भर चुका है। भगवान पर भरोसा है और नहीं भी है। मानसिक स्थिति डगमगा चुकी है, स्थिरता नहीं रहीं, और कैसे रहेगी, अपने शुभचिंतकों के मरने की ख़बर ने हिला कर रख दिया है। आस पड़ोस के सन्नाटे में खौफ का दृश्य साफ – साफ दिख रहा है।
सब के दरवाजे बंद, अब तो ऐसा लगता है जैसे दिन रात सब एक समान है ऑंखें तभी लगती है जब दिमाग और शरीर पूरी तरह से थका हो, नहीं तो ऑंखें ढपती भी नहीं है। इसी दिनचर्या को अपनाकर समय कट रहा है।
इन सबके बीच बहुत हिम्मत जुटाकर हम सब टीवी पर समाचार सुनने बैठते हैं मगर देश प्रदेश की खबरें रोंगटे खड़े कर देते हैं। देश की जर्जर अवस्था का पोल हर रोज खुलता है। जैसे अपने ही देश का चीरहरण हो चुका है। जहां दवा, डॉक्टर, अस्पताल, ऑक्सीजन, वैक्सिंग और चिकित्सा सुविधाओं की कमी का शोर हर रोज सुनाई दे रही है। लोग दवाइयों के अभाव में मर रहे हैं इलाज के अभाव में दम तोड़ रहे हैं। जिनके पास पैसे हैं उनको भी और जिनके पास पैसे नहीं है उनको भी बिना मौत के मौत मिल रही है। शायद ही ऐसा कोई घर अब दिखता है जहां मौत ना हुई हो।
इस अर्थव्यवस्था के साथ लोग जीने को मजबूर हैं। इन सबके बीच पिस रहे गरीब, उनकी स्थिति और भी दयनीय हो चुकी है। ना काम है उनके पास ना पैसे, और रहने के लिए टूटा फूटा मकान है जिसमें अगर बारिश आ जाएं तो उनके ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ता है। उनकी ज़िंदगी भगवान भरोसे ही चल रही है। अभाव में जीना उन्हें आता है मगर कोरोनावायरस ने जो तमाचा मारा है उससे वे सहम गए हैं। उन्हें पता है अगर उन्हें कोरोना हो जाए तो वहां उनका इलाज नहीं होगा, क्योंकि छोटे-छोटे शहरों में और गाॅंव में डॉक्टर और अस्पताल की कमी है।
मई 2021 का यह समय बहुत कुछ समझा और दिखा चुका है। आज हर कोई ज़िंदगी से जूझ रहा है, जीने की कोशिश कर रहा है, कोरोना के शिकार लोगों की मदद कर रहा है उनके लिए दुआ कर रहा है देश इस महामारी से उभरे ये अर्ज़ कर रहा है।
आज के इस दौर में अगर किसी को कुछ हो जाता है तो कोई परिजन मदद के लिए नहीं आ सकते, छूने से फैलने वाले संक्रमण से सभी दूर रहना चाहते हैं इसलिए अपने चेहरे पर मास्क लगाकर मुंह और नाक को ढक कर कहीं भी आना जाना करते हैं इस संक्रमण ने सबको अपनों से दूर कर दिया है। घर में क़ैद होकर रहना लोगों ने स्वीकार कर लिया है। जितनी जरूरत हो उतना ही लोग घर से बाहर निकलते हैं अब हम सबको पता है कि अगर हम सतर्कता नहीं बरतते हैं तो इस वायरस से बच नहीं सकते। हर तरफ़ निराशा है फ़िर भी ख़ुद को दिलासा दे रहे हैं सब ठीक हो जाएगा। और सभी हिम्मत रख कर एकजुट होकर इस वायरस से लड़ रहे हैं।
2020 से शुरू हुआ यह वायरस मई 2021 में भी हमारे बीच चल रहा है। और स्थिति सुधरने के बजाय और बिगड़ती चली जा रही है।
हर अस्पताल कोरोना मरीज से भरा हुआ है। कोरोना की दूसरी लहर आ चुकी है और इस रूप परिवर्तन ने देश को हिला कर रख दिया है। आज हर गाॅंव-गाॅंव शहर-शहर कोरोना मरीज से भर चुका है अब ना कोई शहर बचा है और ना कोई गाॅंव बचा है जहां कोरोना के मरीज नहीं है।
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