चीन के वुहान शहर से शुरू हुआ यह कोरोना वायरस 2020 में भारत में प्रवेश कर चुका था। नए संक्रमण के बारे में हर रोज एक नयी कहानी बन रही थी। हम सब डरे हुए थे क्योंकि इसकी पुष्टि अभी पूरी करनी बाकी थी कि आखिर इसका दुष्प्रभाव कितना प्रबल है मगर जितनी तेजी से यह फैल रहा था और लोग इससे संक्रमित होकर बीमार हो रहे थे और मर रहे थे यह सब देख कर सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान किया, जिसके कारण पूरा देश ठहर सा गया था। जो जहां था वहीं जैसे रुक गया था।
मार्च से मई तक का समय लॉकडाउन में गुज़रा, इस बीच छोटी कंपनियां, छोटे-छोटे रोज़गार जो हर शहर में, सड़क के किनारे, फुटपाथ पर व्यवसाय से गुज़ारा करते थे सब ठप्प हो चुका था सब बंद हो चुका था। उनके रहने और खाने की असुविधा पैदा हो चुकी थी। वह अपने घर लौटना चाहते थे। मगर उनकी मज़बूरी यह थी कि लॉकडाउन में कोई एक शहर से दूसरे शहर गाॅंव नहीं जा सकता था जिसके कारण उनको कई दिनों तक भूखे रहकर गुजारना पड़ा था।
छोटे बड़े यातायात बंद होने से जितने रिक्शा चालक, ऑटो चालक, बस चालक थे उनको जो कि हर दिन की आमदनी पर उनका गुजारा होता था वह राशन, सब्जियों के मोहताज हो गए। जिनके पास पैसा था उनका गुजारा हो गया, मगर जिन्हें सबसे ज़्यादा परेशानी हुई वह थे छोटे व्यवसायिक और फुटपाथ पर रहने वाले लोग, वो दर-दर भटक रहे थे। क्योंकि काम के साथ जो व्यवसायी कर्मचारियों को रहने और खाने की व्यवस्था किए थे वह सब बंद कर दिए, उनको घर से बेघर होना पड़ा। इस हालत में रास्ते पर जहां-तहां सोकर कई कई रात गुजारे।
यह किसी एक शहर या कस्बे में नहीं हुआ, ऐसा पूरे भारतवर्ष में हुआ। बहुत दुखदाई था वह मार्च 2020 से अगस्त 2020 तक का समय लोग रोते और बिलखते सड़कों पर दिखाई दे रहे थे। कुछ लोगों ने शहर से अपने गाॅंव पैदल जाना शुरू कर दिया था जिसमें कई गर्भवती महिलाएं भी थी जो पैदल 200-300 किलोमीटर तक का सफ़र तय कर रही थी। क्योंकि उन्हें अपने घर जाना था और उनके पास कोई दूसरा रास्ता नहीं था।
जगह-जगह पर पुलिस रोककर पूछताछ कर रही थी और उनकी सहायता भी कर रही थी। शहर से गाॅंव पलायन होते लोगों से सरकार को यह डर था की कहीं यह संक्रमण गाॅंवों-कस्बों में ना पहुॅंचे। अगर उस वक्त गांव में पहुंच जाता यह संक्रमण तो परिस्थिति को संभालना बहुत मुश्किल हो जाता, क्योंकि उस वक्त इस बीमारी से लड़ने के लिए देश पूरी तरह तैयार नहीं था। इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी नहीं थी। इसलिए सरकार ने यह आदेश जारी किया था जो भी एक शहर से दूसरे शहर या गांव जाए उनको 14 दिन कोरेनटाइन होना पड़ेगा। जिसकी वजह से हर जगह आने वाले लोगों के लिए सरकार ने कोरेनटाइन सेंटर की व्यवस्था की थी। वहाॅं उन्हें 14 दिन तक रुकने के बाद ही वे अपने घर जा सकते थे।
कोरेनटाइन सेंटर में उन्हें काफी तकलीफों का सामना करना पड़ा, कई लोगों ने अपनी तकलीफ मीडिया के सामने बताया, जिसे सुनकर हर किसी की ऑंखों में ऑंसू आ जाते थे। ऐसी स्थिति में उन्हें 14 दिन गुजार कर ही घर भेजा जाता था। संघर्ष का वो समय लोग कभी नहीं भूलेंगे।