Month: June 2021

कोरोना काल की कविता

जो सबक कोरोना दे दिया, किसी क़िताब में नहीं मिला

जो सबक कोरोना ने दिया वो ज़िंदगी के किसी क़िताब में नहीं मिला,

जर्जर होते गए रिश्ते ऑंसू पोछने वालो की आहट ना मिली थी कहीं।

ऑंखें दरवाज़े पर आस लगाए ताकती रही, कंधा देने वाला ना कोई दिखा,

अपनों का साथ छूटता गया, साॅंसे अकेले दम तोड़ती रही।

इंसानियत कहीं मरती दिखीं, कहीं मोक्ष देता भगवान् मिला,

अपना नहीं था पर वो, सफेद कपड़े हर किसी को पहनाता दिखा। 

श्मशान बना गली-गली, राख ना उठाने वाला अपना मिला, 

वह कौन था जो राख मटकी में भर नाम उस पर लिखता रहा।

मिट गया निशां, खाली पड़ा घर-बार, दरवाज़े पर ना कोई अपना खड़ा दिखा, 

इस सफ़र पर ना राही, ना राहगीर था, अकेला चलता भीड़ में हर अपना दिखा।

ना होश था ख़ुद का, ना ज़िक्र किसी का होता दिखा, 

हर शख्स यहाॅं खौफ़ में, मौत से जूझता दिखा।

बुझ गया चिराग कई, अंधेरा घना सामने हुआ, 

क्या कहें इस काल में, काल बन निगलता रहा।

समय का कहर

समय का कहर

हर किसी के दिल में एक आग सी जल रही है।

हर रोज कभी सुलगती कभी बुझती जा रही है।।

खौफ है दहशत है मुस्कुराने की कोशिश भी है।

अपनों के बिछड़ने की ख़बर हर रोज मिल रही है।।

कोशिश चल रही है समय को मात देने की।

हर पहल पर धड़कने सबकी तेज हो रही है।।

ख़ामोश हर शहर है बोलती हर नज़र है।

हर रोज ज़िंदगी नया दांव चल रही है।।

पता है सब

हर बात में कहना “पता है सब”

मगर क्या सच में पता है सब?

जीवन के इस झूठ को अब तक स्वीकारा ना कोई, 

अहं रोके रखा या आदतों  ने जड़ बना ली मन में, 

ऐसे अहंकार को क्या जगह मिली समाज में!

काश समझ आती तो बात कुछ और होती, 

स्वार्थ की जगह भी “पता है सब” में ना सिमट जाती, 

यही है सच! कहते-कहते मर मिटता है इंसान, 

कभी रोष में, कभी हठ में, राग बिलापता है इंसान, 

ख़ुद को भ्रम की गहराई में क्यूँ डुबोता है इंसान, 

पूछे कोई जो मुझसे क्या है इसका कोई जवाब, 

“पता नहीं” कह कर शायद मैं भी सोचू बार-बार।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता

कहानी

कविता – वह पल दोहरा लेती हूँ

कैसे ना लिखूॅं

आँखें बंद करके

वह पल दोहरा लेती हूँ,

ज़िंदगी जीने की 

वज़ह ढूंढ लेती हूँ,

हर ख़्वाब को 

हक़ीक़त बना कर 

ज़िंदगी में शामिल कर लेती हूँ,

ज़िद समझो शायद 

पर कोशिश है मेरी,

हर किरदार को निभाने का 

हुनर ढूंढ लेती हूँ,

जुगनू नहीं मैं 

जो कुछ पल की रोशनी दे 

दम तोड़ देती है,

मैं वो सितारा हूँ

जो अपनी रोशनी से 

ख़ुद जगमगाती हूँ।।

कैसे ना लिखूॅं

कैसे ना लिखूॅं मन की बातें,

जब क़लम हाथ में लेती हूॅं, 

वह ख़ुद ब ख़ुद चलती है,

मैं कुछ नहीं कहती…

जो कहती है मेरी क़लम कहती है,

कभी अर्थहीन कहती है,

कभी जज़्बातों में लिपटी रहती है,

कभी झूठ, कभी सच कहती है,

जो कहती है मेरी क़लम कहती है, 

मैं कुछ नहीं कहती…

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर दिल को यह एहसास हुआ,

ज़िंदगी से ख़ूबसूरत तुमसा हमराज़ मिला।

अनकही बातों को समझे ऐसा राज़दार मिला,

प्यार से बना रिश्ते को नाम मिला।

हमारी धड़कनों पर तुम्हारा अधिकार हुआ,

दिल के तारो में प्यार का झंकार हुआ।

तुमसे मिलकर मुझे ख़ुद से प्यार हुआ, 

अटूट बंधन मन पर, तन पर तुम्हारा अधिकार हुआ।

कहानी की कहानी 

कोरोना की कहानी

कोरोना संक्रमण का डर

कविता – पिता का दायित्व

परिवार रुपी टहनियों का, भरण पोषण करते जड़ रूपी पिता, 

इनके बिना ना हरा-भरा लगता है घर संसार हमारा। 

हर दायित्व निभाते रहते, शिकन ना चेहरे पर आने देते,

हमारी खुशियों की खातिर, अपना सर्वस्व कुर्बान है करते।

प्यार, त्याग और समर्पण से बना व्यक्तित्व है इनका , 

सबके मन में पिता का दर्ज़ा भगवान् से ना कम है। 

छत्रछाया में इनके गुजरता हमारा जीवन सदा सुरक्षित, 

हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन कर, मंज़िल तक पहुंचाते हैं पिता।

पिता एक मार्गदर्शक

*पिता* अपने आप में गंभीर और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उभर कर आता है,

प्यार, सम्मान और आदर से भावविभोर हृदय हो जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर और चेहरे पर मुस्कान दिखता है,

दिन-रात हो, मौसम कोई हो, परिवार की ख़ातिर काम पर जाना होता है।

सबके दुख को सुख में बदलना इनको बखूबी आता है,

अपनी दर्द सीने में दबा कर ख़ुश रहना भी आता है।

पिता की छत्रछाया में जीवन जितना बीत जाता है,

वहीं किताब बनकर पूरा जीवन मार्गदर्शक बन जाता है।।

कहानी – रात की बात

कहानी की कहानी “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण”

कहानी – कोरोना संक्रमण का डर