झुलसाती गर्मी से परेशान हृदय,
लगाता है पल-पल बारिश की गुहार।
धान की फसल लहलहाए,
इसके लिए ज़रूरी है बारिश की फुहार।
रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा,
और मेंढक करें टर्र-टर्र पुकार।
अकुलाते पशु-पक्षी सारे,
सूख चुका है सम्पूर्ण संसार।
लौट आए काश! वो बचपन के दिन,
जब कागज़ की कश्ती कराते थे हम पार।
महक उठे सौंधी मिट्टी,
और चहुँ ओर ही खुशियाँ अपार।
उमंग जोश से भर जाए सबका जीवन,
अन्नदाता न सहे भूख की मार।
धरा की प्यास बुझाए बारिश,
और करे नवजीवन का संचार।
महके घर-आँगन सबका,
जब हो बारिश की भीनी-भीनी फुहार।
मन-मस्तिष्क तब तरोताज़ा हो जाए,
जब दिखे आसमां में इंद्रधनुष का आकार।
– देवप्रियम
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