Supriya Shaw

किसान आंदोलन – हक की लड़ाई

kisan andolan

गाजीपुर बॉर्डर की सच्चाई जान कर भी अंजान बने उन लोगों के आज पसीने छूट रहें हैं किसान संगठन की रूपरेखा इतनी मजबूत साबित होगी यह सोच विपक्षी जन उन्हें आतंकी साबित कर रहें हैं। क्या इनके मंसूबे पूरे होंगे? क्या किसान आंदोलन टूट जाएगा?

100% उनके हौसले और बुलंद है आखिर 26 जनवरी की घटना के बाद जो यह आंदोलन टूट जाना चाहिए था जिस अपराध को अंजाम दिया गया और मोहरा मासूम किसान बने। क्या यह सही था,  क्या देश की जनता नासमझ है। अपराधी का सर हमेशा नीचे झुका मिलता है, मगर आज किसान आंदोलन की लहर जितनी गर्मजोशी के साथ आगे बढ़ा रही है,  क्या लगता है यह मासूम किसान अपराधी, आतंकी है!

किसान जिस हक की लड़ाई लड़ने के लिए अपना घर परिवार छोड़ सरकार का दरवाज़ा खटखटा रहें हैं क्या यह गलत है? आज देश का हर नागरिक उनके साथ खड़ा है, और जो नहीं खड़े हैं वह नज़रें झुका कर उनको गलत बोलने को मजबूर है। आखिर क्यों है? किस का दबाव है उन पर, क्यों कुछ लोग उनका खुलकर समर्थन नहीं कर पा रहें हैं?  कहीं ना कहीं उन्हें दबाया जा रहा है उनकी आवाज़ को दबाया जा रहा है। 

आज वहाॅं पानी, बिजली,  इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है।  चारों तरफ से पुलिस तैनात है क्या होने वाला है किसानों के साथ।  26 जनवरी को भी लाल किला के पास पुलिस थी मगर जो हुआ क्या यह माना जा सकता है। इसके लिए ज़िम्मेदार केवल किसान है या किसी की साजिश के शिकार बने  किसान। 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली में ऐसी ख़लल कोई सोच नहीं सकता है फिर यह कैसे हुआ या होने दिया गया?  सवाल है जवाब है, मगर सभी चुप है।  और आज किसान के साथ पूरा देश है और जो नहीं है उनके साथ, क्या हम यह नहीं माने, उनके साथ जो हुआ उसके जिम्मेदार वही लोग विपक्षी दल है।

“ज़ज़्बा बेमिसाल है टूटेगा नहीं,

आंदोलन का रुख़ बदलेगा रुकेगा नहीं, 

तोड़ने वाले क़दम बढ़ा रहें हैं, 

किसानों के हौसले पर क़दम उनके रुक रहें हैं।।”

सिंधु बॉर्डर और टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन के सामने जो पथराव, हिंसा को बढ़ाया गया क्या हम यह नहीं समझ सकते, यह किसानों के हौसले को तोड़ने की दूसरी साजिश है। लेकिन क्या इन सब से किसानों का मनोबल टूटेगा, कभी नहीं, आंदोलन की लहर तेज़ हो रही है और किसानों का इंसाफ, पूरा देश का इंसाफ है। आज पूरा देश उनके साथ है।

 सवाल और जवाब के बीच “आवाज” पावर और सत्ता के सामने कुछ लोगों की दवा दी गई है, मगर कब तक। अनगिनत किसानों में उनकी गिनती भी शामिल हो जाएगी, जो आज बोल नहीं पा रहें हैं साथ नहीं दे पा रहें हैं किसानों का।

“जहाॅं मंसूबे समाज के हित में हो, 

वहाॅं अनगिनत आवाज़ जुड़ते हैं”

– Supriya Shaw…✍️🌺

नारी

Naari

खाने में नमक ना हो तो वह स्वाद कहाँ।

लेखनी में हम ना हो तो वह जज़्बात कहाँ।।

Intazaar

हर लम्हों का हिसाब कोई ना रखता है यहाँ।

जो इंतज़ार में बदल जाएँ वो घड़ियाँ बेहिसाब यहाँ।।

Shikayate

खामोशियों में तेरी शिकायतों का लहजा,

कुछ ना कहकर भी कह देना ऐसा,

पास रहकर भी पास ना आना तेरा,

ये अनसुनी शिकायतों का पहरा कैसा।।

Khushboo

फूल सूख कर शाख़ से गिर गए,

 ख़ुशबू आज भी मौजूदगी का

 एहसास करा रही है।।

Rishte

एक अजीब-सी ऊर्जा और उत्साह होती है रिश्तों में, 

शब्दों की आत्मीयता का आभास भरपूर मिलता है।

जितने रंग होते हैं रिश्तो के, सब के रूप अनोखे मिलते हैं,

प्यार, स्नेह का अटूट बंधन, आंखों से सीधे दिल में उतरता है।।

Beparwah

बेपरवाह हो गई हूॅं ज़िंदगी

आज़ाद हूॅं अब हर रंजिश से।

सुकून की घड़ी अब मिल गई,

अल्हड़ ज़रूर थोड़ी सी हो गई।।

Yaade

ख़ामोश होकर रह जाती हूँ 

जो कुछ कहना है तुमसे, 

वो ख़ुद से कहती हूँ , 

अतीत की यादें 

धुंधला गई ज़रूर, 

मगर वजूद उसका।। 

– Supriya Shaw…✍️🌺

आधुनिक गाॅंव….एक कहानी

Adhunik gaon

आज कई सालों बाद मैं अपने परिवार के साथ गाॅंव जा रही थी मन में कई विचार आ रहे थे वहाॅं की कच्ची सड़के, सकरी गली और कई ऊँचे नीचे ढलान जो रास्ते में पड़ते थे जिसमें अक्सर ही बैल गाड़ियाँ अटक जाती थी फिर चार-पाॅंच लोगों को बुलाकर बड़ी मुश्किल से  निकाला जाता था। उस समय लोग साइकिल और बैल गाड़ियों से ही सवारी करते थे जिसके कारण कम दूरी भी ज्यादा समय में तय करनी पड़ती थी और कच्चे रास्तों की वजह से यात्रा में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। बारिश के दिनों में सड़कों की हालत इतनी खराब हो जाती थी कि जगह-जगह गड्ढे बन जाते और गड्ढों में पानी जमा हो जाते थे जिसके कारण आने जाने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उस वक़्त अगर कोई एक बड़ी गाड़ी गाॅंव में आ गई तो उसके पीछे हम बच्चों की झुंड चलती थी, बच्चों के शोरगुल से गाड़ी का चालक परेशान हो जाता था मगर फिर भी बच्चे मानते नहीं थे।

अब गाॅंव का चौपाल आने वाला था जहाॅं लोगों की भीड़ बेवजह ही दिखती थी लहराते हुए हरे-भरे खेत, अपना आम का बगीचा जहाॅं अभी मोजर हुए होंगे। हर घर के दरवाज़े पर मवेशियों की आवाजें और घर का दरवाजा शायद ही किसी का बंद हो। खुले दरवाजे के पास दलान में कोई ना कोई बैठा मिल जाता था हमें कभी दरवाज़ा खटखटाने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी,  हर घर का दरवाज़ा खुला मिलता था। 

इन्हीं सब उधेड़बुन के साथ अपनी सोच से बाहर निकली जब गाड़ी की हॉन् बजी,  हमारी गाड़ी उसी चौपाल पर आ चुकी थी जहाॅं कभी दो-चार दुकानें थी आज कई दुकानें दिखाई दे रहें थे। लगभग शाम हो चुकी थी सभी घर जाने के लिए भाग रहें हो ऐसा प्रतीत हो रहा था। जिसके कारण वहाॅं हमारी गाड़ी उसी भीड़ में कई गाड़ियों की शोर के बीच फँस चुकी थी।

चारो तरफ से गाड़ियाँ निकल रही थी दुकानों से भरा पूरा चौपाल रोशनी में चमक रहा था बड़ी-बड़ी दुकानें और बड़ी- बड़ी गलियाँ देखकर मैं सोचने लगी, कितना रंग रूप बदल गया है इन दस सालों में। शहर के बाजार से जरा भी कम नहीं लगा यह चौपाल, बैल के गले में घंटी डालकर वो बैलगाड़ी का नामो-निशान नहीं दिखा। 

किसी तरह हमारी गाड़ी आगे निकली अब उन गलियों को खोज रही थी मेरी आँखें, मगर अब ना वह कच्ची सड़के थी, ना कच्चे मिट्टी के मकान और झोपड़ियाॅं थी। गाॅंव की काया पलट चुकी थी। चकाचौंध रोशनी के बीच पक्के मकान अच्छे लग रहें थे। हमारी गाड़ियों के पीछे ना कोई बच्चे की झुंड थी, ना किसी का दरवाज़ा खुला मिला। हम जब अपने घर पहुॅंचे तो वहाॅं दादा-दादी ने हमारा आवभगत की। पड़ोस के लोग मिलने आएं, कुछ बचपन की यादें ताजा हो गई।

सुबह होते ही गाॅंव घूमने निकली, खेत खलिहान में सिंचाई के साधन दिखे, वहीं ट्रैक्टर और खेत जुताई के कई साधन भी दिखे, सब कुछ बदल गया था सभी के हाथ में फोन था घर-घर टीवी के अलावा बहुत सारी इलेक्ट्रॉनिक चीजों का इस्तेमाल हो रहा था। गाॅंव अब आधुनिक गाॅंव में तब्दील हो चुका था। आधुनिकता के रंग में रंग चुके थे सभी,  इस बदलाव ने गाॅंव को बहुत कुछ दिया, वहीं हमारी कुछ सभ्यता संस्कृति को ख़त्म भी कर दिया। यह बदलाव मन को अच्छा लगा, मगर कुछ यादें खत्म हो चुकी थी मिट चुकी थी वह कहीं ना कहीं मन के किसी कोने में कचोट भी रही थी।

– Supriya Shaw…✍️🌺

अब तोड़ी हूँ वेग मन का

Dil Ke Alfaz

अब तोड़ी हूँ वेग मन का, मुझको धारा बन बह जाने दो,

मुझे भी साथ ले लो प्रीतम, मुझे भी साथ आने दो।

कदमों के धूल चूम, माथे पर सजाती हर उस क्षण,

विरह की भीषण अग्नि में जब-जब मुझको छोड़ चले जाते हो,

विध्वंस मेरे प्रेम का बचा ले जाते विश्वास कि वह बेला, 

पहले मिलन की याद दिला, साथी बनते जब चाँद सितारे।

अबकी जुड़ी, कई बार टूट कर, अब गले मिल नीर बहाने दो, 

रखो क़दम जहाँ-जहाँ तुम, साथी बन मुझे पीछे आने दो।

कुछ अधूरे से ख़्वाब

बुनती रही, रचती रही, ख़्वाबों में जीती रही, 

कुछ अधूरे से ख़्वाब, अब तक हुए ना पूरे। 

विरह वेदना में घायल मन, आस् का दीपक जलाती रही, 

अश्रु नैनों से बांध तोड़, गालों पर निशान बनाते रहे।

कंपित अधरो से पिया मिलन की, गीत गाते रही, 

अब इंतज़ार को विराम दे दो, दुआ ख़ुदा से करती रही।

अधजगी आँखों से अब तक, ख्वाबों में जीती रही, 

ना उम्मीद का दामन छोड़ी,  हर ख्वाब तेरे नाम करती रही।

सबसे अनोखा रिश्ता – दोस्ती का,

या हो बचपन, चाहे जवानी या बुढ़ापे की हो कहानी,

गर दोस्त ना हो संग जीवन में,

तो हर उम्र ज़िया बिन खुशियों के।

सबसे अनोखा रिश्ता दोस्ती का,

जो पास नहीं, पर साथ है रहता,

अंजाने राहों पर मिला सौगात ये होता,

दुनिया का सबसे अनमोल उपहार बना।

हर बंधन से आज़ाद, ना जाती, धर्म में बंधा रहता, 

जज़्बातों और एहसासो से बना रिश्ता होता, 

टूटने का दर्द भी अनोखा ही होता।

बेमिसाल, स्वच्छंद, आज़ाद 

बस दिलों में क़ैद होना अरमान होता,

जुगलबंदी की ना कोई सीमा,

दोस्तों बिना ज़िंदगी अधूरा।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

मेरी अपनी पहचान

मेरी अपनी पहचान

नाम, शोहरत, ज्ञान, व्यवहार से बनती अपनी पहचान है,

मेरी अपनी पहचान ही मेरा स्वाभिमान है।

क़दम-क़दम पर हर चुनौती स्वीकार कर आगे बढ़ी, 

हर चुनौती पर मेरी नई पहचान बनी।

कितनी भी तीव्र प्रहार दे ज़िंदगी हमें, 

आँसूओं को दिखाकर ना हम ख़ुद की पहचान देंगे।

रहेंगे अडिग अपने मक़सद पर, कमज़ोर ना ख़ुद को दिखलाएंगे,

ज़िंदगी के हर परीक्षा में हँसते हुए आगे बढ़ेंगे।

अपने लक्ष्य को ख़ुद पाना है

जीवन के संघर्ष का जंग चलता रहेगा,

जीत का जश्न, तो हार का दंश भी सहना पड़ेगा।

तपिश तेज हो मगर सागर कभी सूखता नहीं, 

जिगर में आग हो तो लक्ष्य पाना मुश्किल नहीं।

मुसीबत आएगी डरा कर चली जाएगी, 

धैर्य और साहस से, मौसम का मिजाज़ बदल जाएगा। 

बढ़ा आत्मबल, बनकर सबल, आँधियों को चीर तु चलता चल, 

लगन बढ़ा, चल निडर अपने लक्ष्य को ख़ुद पाना है।

केवल अपने स्वार्थ की नहीं दूसरों के हित की भी सोचो

केवल अपने स्वार्थ की नहीं दूसरों के हित की भी सोचो,

जज़्बात सीने में गर है तो ख्याल दूसरों का भी रखो,

क्या पता कल समय साथ दे ना दे, आज को संभाल कर रखो,

हर घड़ी हक़ में नहीं होती, ज़िंदगी के कुछ पल उधार भी रखो।।

जब सभी रास्ते बंद हो जायें तब ख़ुद अपनी राह बनाओं

जब सभी रास्ते बंद हो जायें, 

तब ख़ुद से अपनी राह बनाओं, 

मंज़िल का पता ना मिल पायें, 

ख़ुद से कई सवाल करो। 

हर सवाल एक रास्ता बन जायेगा, 

मंज़िल भी बहुत पास नज़र आयेगी, 

एक वक़्त वह भी आयेगा, 

जब हर कोई तुमसे रास्तों का पता माॅंगेगा।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

हार कर भी जीत जाना है

हार कर भी जीत जाना है

गिरकर फ़िर उठ जाना है, वक़्त से नहीं घबराना है, 

हिम्मत जो गर टूट गया, दम निकल फ़िर जाना है। 

बने काम होंगे विफल, समस्याऍं होंगी जटिल, 

आत्मबल बढ़ाना है, सफल काम बनाना है।।

साहस मात्र सहारा है, ख़ुद पर विश्वास जगाना है, 

अग्रसर हो लक्ष्य पर अपने, पीछे फ़िर ना मुड़ जाना है। 

हक़ अपना अधिकार है, उसको सिद्धान्त बनाना है, 

ज़मीर गर ज़िंदा है, हार कर भी जीत जाना है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

सपनों का संसार

सपनों का संसार लगता अद्भुत और मनभावन,

हक़ीक़त से जब  होता सामना, उस पल हो जाते आहत।

खुली आँखों से देखा सपना, कठोर परिश्रम भरा होता,

वो सफर तय करना भी, हर किसी के बस में नहीं होता।

जो होते कर्मठ, और सफलता की हो चाहत, 

वो चलते इस राह पर, वो सोते ना वक़्त बिताते।

क़िस्मत को आजमाना छोड़, सपनों को पूरा कर ले जो,

 सच्चा सुख वहीं मिल जाता, हर सपना साकार हो जाता।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

प्रेरणादायक विचार

सब्र का बाँध

सब्र का बाँध

सैलाब की तरह बह जाता है इंसान, 

जब सब्र का बाँध टूट जाता है।

टूटते, बिखरते अल्फ़ाज़ों में ख़ुद को,

कभी समेटता, कभी दूसरो को चोट देता है।

जहाँ समस्या है वहाँ हल है

जहाँ समस्या है वहाँ हल है

हल समस्या का कोशिशो से सफल हो जाता हैं, 

जहाँ समस्या है वहाँ हल, ख़ुद-ब-ख़ुद निकल आता हैं।

आँखे बंद कर लेने से समस्याएँ टल नहीं जाती हैं,

और ठहर जाने से रास्ते बदल नहीं जाते हैं।

चलो क़दम बढ़ाते हैं

चलो क़दम बढ़ाते हैं

पथरीले रास्तों पर दरारे साफ दिखाई दे रहे हैं, 

ज़ख्मी क़दमों के निशान छोड़ते जा रहे हैं।

इंतज़ार में ठहर कर समय को चोट नहीं देना हैं, 

चलो क़दम बढ़ाते हैं मंज़िल सामने दिखाई दे रही हैं।

– Supriya Shaw…✍️🌺

इम्तिहान

माने या ना माने, 

आसान तब भी नहीं था, 

जब बच्चे थे,

अब भी नहीं है, 

और आगे भी जूझना है, 

कई मुश्किलों से,

हर इम्तिहान में पास हो, 

यह भी मुमकिन नहीं है, 

मगर हार कर बैठ जाए, 

यह भी मुनासिब नहीं है।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का,

है कहानी इंसान के जीने-मरने का। 

कभी डूबता, कभी उभरता, 

जीवन के हर रंग-रूप में,

ख़ुद की चाहत को रंग देता। 

लिए सपनों को पंख लगाए, 

उड़ने की कोशिश में रहता। 

टूट कर गिरता हर बार,

फ़िर से ख़ुद को ज़िंदा रखता। 

है ज़िंदगी का नहीं भरोसा, 

जानकर अनजान रहता। 

नज़ारा देख मौत का, 

ज़िगर में ना सैलाब उमड़ता। 

ज़िंदगी है बुलबुला पानी का, 

है कहानी इंसान के जीने मरने का।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

सुबह की रौशनी

सुबह की रौशनी

सुबह की रौशनी में आसमाॅं मुस्कुरा उठा, 

मन के सारे तार एक साथ मधुर स्वर में गा उठे।

सुबह की अद्भुत बेला हज़ारो खुशियों का संकेत दे गई,

वहीं पूरे दिन के संतुलन का आधार बनकर रह गई। 

चिड़ियों का चहचहाना, हवाओं का कौतूहल, 

मन में पड़े जाने कितने गांठ खोल गई। 

निराशा के बादल छट कर, आशा की किरण बन गई,

नई दिशा का मार्ग दिखाकर चलने का हौसला दे गई।

बढ़ती रौशनी अंधेरो पर विजय का एहसास कराती, 

जीने का उद्देश्य बता कर संध्या में विलीन हो गई।

– Supriya Shaw…✍️🌺