दिवाली पर कविता

दिवाली पर कुछ कविताएं

दिवाली का त्यौहार हो और घर की साज-सज्जा सामग्री, मिठाई, पकवानों, फुलझड़ी, पटाख़ों की बातें ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। घर के हर सदस्य में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। जहां घर के बड़े सदस्य लक्ष्मी-गणेश की पूजा में व्यस्त होते हैं वहीं बच्चे पटाखें और फुलझड़ियाँ को महत्व देते हैं। सभी अपने अपने तरीके से दिवाली की खुशियाँ एक दूसरे में बांटते हैं। मिठाई और उपहार भेंट करने का अच्छा अवसर होता है दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी एक दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ भेंट करते है। लक्ष्मी जी की अपार अनुकंपा हम पर बनी रहे इसके लिए एक नियमित विधि विधान से पूजा होती है। 

दीपों से सजी दिवाली पर कुछ कविताएं :

दिया जलाना है

पहला दिया विश्वास के नाम, 

जिसके बिना ना बने कोई काम। 

एक दिया रिश्तों के नाम, 

हो समर्पण और त्याग परिवार के नाम। 

एक दिया समाज के नाम, 

हो कुरीतियों का विनाश। 

दिया जलाएं निर्धन के नाम, 

झोली में खुशियाँ भरें श्री राम।

एक दिया अंध्यारो के नाम,

रावण बन हर मन में है छुपा।

एक दिया सृष्टि के रचयिता के नाम, 

मिले बराबर न्याय जहां। 

हो सबकी मनोकामना पूरी 

ऐसा दिया साथ जलाएं आज।

रहे अनुकंपा लक्ष्मी-गणेश की, 

ऐसी आस्था के साथ दिया जलाए साथ।।

दिया जले हर धर्म का साथ

दिवाली की सफाई कुछ इस तरह से करना है, 

धूल घर के साथ मन का भी साफ़ करना है,

पुराने गिले-शिकवे को दिल से दूर भगाना है, 

दिल के रिश्तों की डोर से सबको बांधे रखना है,

दिये की रोशनी से घर का हर कोना जगमगाना है, 

दिया जले हर धर्म का साथ, एकता हमें दिखाना है,

ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश से दूर मानवता को करना है।।

आज है दिवाली का त्यौहार

खुशियाँ और समृद्धि का त्यौहार, 

आज है दिवाली का त्यौहार, 

लक्ष्मी गणेश के पूजन का त्यौहार, 

कृपा बरसे एश्वर्य, धन की आज।

दिये की रोशनी से दूर हुआ अंधेरा, 

हर्षित मन के साथ दिया सबने जलाया, 

टिमटिमाते तारो संग धरती आज सजी, 

फुलझड़ी, पटाख़ों के संग दिवाली की धूम मची। 

हंसी, ठिठोली में रंजिश सब की मिट गई, 

मिठाइयों की मिठास आपस में जब सबने बांटी, 

मनचाहे उपहार देकर दिवाली आज मनाई, 

खुशियों की सुंदर बेला आज हर घर में आई।।

– Sunita Shaw

कुछ साथी सफ़र में छूट गए

Life Thoughts

नवरात्र में माँ दुर्गा की कविता

नव दुर्गा माँ

माता की आराधना और उपासना की कविता।

नवरात्रि का त्यौहार आते ही माता की आराधना और उपासना में पूरा ब्रह्मांड माँ के स्वागत में जुट जाते है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ हमारे घर आगमन लेती है और इसी वजह से हम सब अपने घर की साफ-सफाई कर माता की पूजा में जुट जाते हैं। इस अवसर पर घर के द्वार पर फूल की माला और तोरण लगाकर माता का स्वागत करते हैं और नौ दिन माता के नव रूपों का स्मरण कर उनकी आराधना करते हैं उनकी पूजा करते हैं। माता के नव रूप का जिनकी पूजा हम करते हैं उनके नाम है – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

माता के नव रूपों का वर्णन करती कुछ कविताएं –

नवरात्रि में पूजे भक्तजन नव दुर्गे का हर स्वरूप।

नव रूप की महिमा सुनकर नवरात्रि का त्योहार मनाए सब।।

हाथ कमल, त्रिशूल धारण ‘शैलपुत्री’ के दर्शन कर। 

योगीजन तृप्त हुए नवरात्र के प्रथम आगमन पर।।

हाथ कमण्डल, जप की माला भव्य ज्योतिर्मय बना ‘ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप।

करें उपासना जो जन माता की अनंत फल प्राप्त करें वह।।

अर्धचंद्र मस्तक पर शोभे, वाहन सिंह सवार रहें। 

नाम ‘चंद्रघण्टा’ का जो ले परम शांति और कल्याण मिलें।।

देवी ‘कुष्माण्डा’ के चरणों में लौकिक पारलौकिक सुख मिलें।

कर उपासना चौथे दिन माँ का भव सागर से पार करें।।

कमल आसन पर विराजमान ‘पद्मासन’ देवी की जय जय।

स्कंद कुमार की माता बनकर ‘स्कंदमाता’ का स्वरूप बना।।

अमोघ फल दायिनी माँ ‘कात्यायनी’, कात्यायन की पुत्री बनी। 

अलौकिक तेज से युक्त हुआ माता की जो आराधना किया।।

ग्रह बाधा को दूर करें दुष्टों का विनाश करें। 

माँ ‘कालरात्रि’ की आराधना सातवें दिन जो जन ध्यान करें।।

‘महागौरी’ का ध्यान करें जन माँ सबका कल्याण करें।

रोग,दोष, क्लेश मिटाकर माता सबका उद्धार करें।।

सभी सिद्धियों को पाकर ‘सिद्धिदात्री’ माता कहलाती।

करें उपासना जो भक्तजन माँ हर मनोकामना पूर्ण करें।।

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी हर घर में आज आई है।

नवरूप के स्वागत में सगर विश्व ज्योत जलाई है।।

हर विपदा को हरने माता आज धरती पर आई है।

आंचल फैलाए रंक और राजा सब ने शीश झुकाई है।।

सबकी झोली भरने वाली सिंह पर सवार होकर आई है।

जय-जय गान करती धरती, कण-कण में उल्लास समाई है।।

ममता से सजी मुरत नव दुर्गा माँ स्वर्ग से उतर कर आई है। 

दशो भुजाओं से मानस का उद्धार करने माता आई है।।

भजन, कीर्तन, भोग आरती की थाल सबने सजाई है। 

महादेव के साथ माता आज साक्षात दर्शन देने आई है।।

Supriya Shaw

आज़ादी का दिन आया

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

कोरोना काल की कविता

माँ बेटी के रिश्ते को एक मज़बूत कड़ी में बाॅंधती है कुछ ख़ास बातें

माँ बेटी का रिश्ता

माँ बेटी के रिश्ते जैसा ख़ूबसूरत और मज़बूत कोई रिश्ता नहीं,

मैं भी एक माँ हूँ और अपने तजुर्बे को बांटना चाह रही हूँ।

बेटियाॅं सौभाग्य से मिलती हैं, वो सौम्यता, शालीनता और चंचलता से परिपूर्ण होती है। हर माॅं अपनी बेटी में अपने अक्स को देखती है और भरसक कोशिश करती है जो खुशियाॅं उसे नहीं मिली वह अपनी बेटी को दे और जो गलती वो कर चुकी है अपनी बेटी को ना करने दे। इन्हीं सब कोशिशों में हम कभी-कभी बहुत सख़्त तो कभी बहुत नर्म हो जाते हैं। और इन सब की वजह से माॅं बेटी का रिश्ता एक मोड़ पर आकर विचलित हो जाता है तो आइए कुछ बातों पर ध्यान देते हैं –

एक माँ का व्यवहार अपनी बेटी के साथ दोस्त व सहेली की तरह होना चाहिए, इसके लिए जब बेटी छोटी हो तभी से उससे ढेर सारी बातें करते रहें, उसकी रूचि और पसंद पर उसका मनोबल बढ़ानी चाहिए।

बेटी से अगर कोई गलती हो जाए तो उसका कारण जाने और अगर वह बताने में असमर्थ हो तो उसे थोड़ा वक़्त दें। लेकिन प्यार और दुलार से उसका कारण एक माॅं ही बुलवा सकती है जो कि ज़रूर उससे बुलवाएं।

नखरे और शरारतो की पूरी दुनिया होती है बेटी, माॅं को भी समय-समय पर बच्चा बनकर उसके साथ खेलना पड़ता है तब जाकर बेटियाॅं माॅं के आँचल को कभी नहीं छोड़ती, उसे अपना घर बना लेती है।

एक उम्र के बाद भी दूरी ना बने इसके लिए उसे अपने हर छोटी और बड़ी समस्याओं और खुशियों में शामिल करें और कुछ जिम्मेदारियों को भी सौंपे, जिससे माॅं बेटी के बीच सलाह मशवरा होती रहें और बेटी की सलाह को अहमियत दे।

बेटी का जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह हो या कोई स्पेशल ऑकेजन हो, उस दिन को बेटी के मूड के अनुसार स्पेशल बनाएं।

सबसे ज़रूरी बात शायद ही कोई माँ भूलती होगी, बेटी को बार-बार गले लगाना और उसके माथे पर चुंबन करना, ऐसा करने से बेटी की तोतली बोली हर बार निकलेगी चाहे वह कितनी भी बड़ी हो जाए।

दुनिया के हर रिश्ते से परे है माँ बेटी का रिश्ता, इस रिश्ते को जितना ही प्यार और विश्वास से संवारते हैं उतना ही मिठास ज़िंदगी में महसूस होता है। एक माँ की सबसे अच्छी सहेली होती है बेटी, अपना हर दुःख, अपनी हर तकलीफ़ को, अपनी खुशियों को वह खुले दिल से अपनी बेटी के सामने रखना चाहती है और ऐसा करना भी चाहिए, क्योंकि जब हम ऐसा करेंगे तो ही हमारी बेटी भी हमारे उतने ही क़रीब आएगी और अपने हर बात को कहने में सहज महसूस करेगी।

मैंने देखा है कई बार एक उम्र के बाद बेटी माँ से धीरे-धीरे दूर होते जाती है, वह अपनी दुनिया में जीने लगती है, मगर इस दूरी को ख़त्म करने का काम भी एक माँ कर सकती है।

माँ जितनी सरलता से अपनी बेटी की हरकतों को, बातों को, उसके ना को, उसके हां को, उसकी हँसी को, उसके आँसू को, उसके गुस्से को समझ सकती है, दुनिया में और कोई भी नहीं है जिसमें इतनी बड़ी दिव्य शक्ति होती है।

Supriya Shaw

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

कोरोना काल की कविता

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

स्वतंत्रता दिवस कविता कोश

आज़ादी का दिन आया

आज़ादी का दिन आया,

लाल किले पर ध्वज फहराया, 

शोभा देख किले कि आज, 

हर चेहरे पर मुस्कान है छाया।

राष्ट्रगान से झूमा देश, 

जब तिरंगा किले पर लहराया, 

तोपों की देकर सलामी, 

जन-गण का गान सब ने गाया।

फूलों की वर्षा किले पर, 

ढोल नगाड़ों के संग बरसाया, 

वीर शहीदों की कुर्बानी, 

आज़ादी का सुख बनकर बरसाया।

जाति धर्म का भेद ना दिखता, 

अखंड भारत का पाठ पढ़ाता, 

हर युवा एक स्वर में कहता, 

भारत माता की जय, भारत माता की जय।।

भारत की शान

अमर हुए उन वीरों की 

कुर्बानी ना व्यर्थ करेंगे।

हम भारत की शान बन कर, 

अपना सर्वस्व कुर्बान करेंगे।।

Supriya Shaw…

शीर्षक — तिरंगा हमारा 

हमारा आन तिरंगा है,, 

हमारा शान तिरंगा है,, 

हमारी जान तिरंगा है।। 

हमारा अरमान तिरंगा है,, 

हमारा जहान तिरंगा है,, 

हमारी पहचान तिरंगा है।। 

हमारा  इमान तिरंगा है,, 

हमारा अभिमान तिरंगा है,, 

हमारा मुकाम तिरंगा है।। 

हमारा बलिदान तिरंगा है,, 

हमारा पयाम तिरंगा है,, 

हमारा एहतराम तिरंगा है।। 

तिरंगें से ही है हमारा सबकुछ,, 

तिरंगा ही है हमारे लिए सबकुछ।। 

जो आंख इसकी ओर उठायेगा,, 

खाते हैं भारत माता की सौगंध,, 

वो गद्दार वीर सपूतों के हाथों बच ना पायेगा।। 

सिर पर अपने कफ़न बांध लिया है हमनें,, 

हरदम इसकी सुरक्षा करने का ठान लिया है हमनें।। 

जाये तो चले जाये प्राण भले ही,, 

है इस बात का अब कोई गम नहीं,, 

हम है भारती माता की संतान,, 

कभी भी किसी से हम कम नहीं।। 

है हमें अपना तिरंगा जान से भी प्यारा ,, 

इस पर न्योछावर है हमसबका ये जीवन सारा ।।

— ©Alfaj_ E_ Chand (Moon) ✍✍

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

15 अगस्त 2021 को भारत देश की स्वतंत्रता को पूरे 75 साल पूरे हो जाएंगे। उन वीरों को हम नमन करें, स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता हिंदी में ।

आज़ादी की लहर

आज़ादी की लहर

आज़ादी का परचम तब लहराया था, 

जब अनगिनत माताओं के लाल ने रक्त बहाया था।

हर रक्त का एक-एक क़तरा आज बना वरदान है, 

आज़ादी की हर साँस पर उनकी कुर्बानी का नाम है।

गाथाएं सुर वीरो की जब-जब दोहराई जाएगी, 

जाने कितने वीरो के सीनो में देशभक्ति की ज्योत जलेगी।

अमर शहीद भगत सिंह जैसे वीरो की कहानी, 

हर बच्चो के सीने में हर रोज दोहराई जाएगी। 

अमर रहेंगे हरदम ये तिरंगे से इनकी याद जब आएगी,

आज़ादी की लहर बनकर सबकी नज़रें तिरंगे पर ठहर जाएगी।।

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान, जीवन मिला वरदान, 

कृतज्ञ हम उन सुर वीरों की, 

आज़ादी का परचम जिन्होंने लहराया है।

अमर रहेगा नाम उनका, 

हर भारतवासी के सीने में।

बच्चे बूढ़ों की ज़ुबानी उनकी गाथाएं दोहराएंगे, 

आने वाले हर पीढ़ी को ये सबक ज़रूर सिखाएंगे।

मेरा वतन

मेरा वतन

जहां है शांति और अमन का राज, 

जहां चारों धाम का होता मिलाप, 

बसते जहां हर धर्म के वासी, 

हर भाषा का अनोखा मेल होता जहां,

वह है मेरा वतन।।

गंगा, जमुना, सरस्वती का अनोखा संगम होता जहां, 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे का दर्शन साथ करते यहां, 

तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे अनगिनत कवियों की,

कविताओं में रचा बसा मिलता मेरा वतन, 

खेत खलियानों से सजी-धजी, 

धरती उपजाऊ मिलती जहां, 

वह है मेरा वतन।।

Supriya Shaw….

कोरोना काल की कविता

कविता – पिता का दायित्व

रक्षाबंधन पर हिंदी कविताएं

छुटकी अपने भाई की

रक्षाबंधन पर हिंदी कविताएं

छुटकी अपने भाई की, थाल सजाएं राखी की, 

प्यार और स्नेह से, ली बलाएं भाई की।

चंदन, रोली, हल्दी का, तिलक लगाई माथे पर, 

आरती लेकर राखी बांधी, भाई की कलाई पर।

भाई का स्नेहिल मन, भाव विभोर हो उठा,

बहना का उत्साह देख, ममता से भर गया ह्रदय।

भाई प्यार का तोहफ़ा देकर, बहना का मान किया, 

सर पर हाथ रख कर छुटकी को, सौ सौ बार आशीर्वाद दिया।

भाई बहन का प्यार, कभी ना कमज़ोर होने देता,

कच्चा है यह धागा, प्रेम के जज़्बातो से गहरा हुआ।

मेरी प्यारी बहना

मेरी प्यारी बहना

यह रक्षा-बंधन का त्यौहार, 

कभी ना भूलूंगा मैं, 

जहां रहूँ जिस हाल में रहूँ,

इस दिन आकर राखी बंधवा लूंगा,

वचन है आज के दिन का, 

कभी ना होगा प्यार कम, 

चाहे ज़िंदगी में आ जाए कोई गम।

शक्ति कच्चे धागे की राखी

शक्ति कच्चे धागे की राखी

कच्चे धागे का यह रिश्ता, प्रेम, स्नेह से बना है,

हर रिश्ते से प्यारा, भाई बहन का रिश्ता बना है।

राखी के दिन भाई की, याद आ जाती है,

वो दूर मुझसे है, सोच कर आंखे भर आती है।

भाई-बहन का प्यार

भाई-बहन का प्यार

अटूट बंधन से बंधा रहे, भाई-बहन का प्यार, 

हर बहन मांगे इस दिन, दुआ हजारों बार।

कच्चे धागे की डोर, कभी ना हो कमज़ोर,

लेती वचन उम्र भर का, रक्षा करने की भाई से।

Tea quotes for tea lovers

चाय के कप

चाय के कप में केवल

चाय ही नहीं होती, 

“चाह” होती है 

साथ बैठने की!

जिंदगी तू मुझे

जिंदगी तू मुझे, 

चाय की तरह लगती है, 

कभी बहुत मीठी,

कभी फीकी, 

कभी बहुत कड़वी लगती है।।

रिश्ते भी चाय

रिश्ते भी चाय

चाय की तरह होते है 

ज़्यादा मीठी

 ज़्यादा कड़क हो जाए 

तो गले से 

नहीं उतरते हैं।।

चाय की एक प्याली है

कहाँ रह गए तुम,

यह शाम थी कुछ ख़ास, 

चाय की एक प्याली है, 

जो बांटनी थी तुम्हारे साथ।।

सिर्फ एक चाय ही है

सिर्फ एक चाय ही है

जो बिन बुलाए 

बिना बात के 

बिना समय 

बेवजह 

मुझे खींच लेती है 

वरना और किसी में 

वो बात नहीं 

जो तेरी एक घूंट में 

मिल जाती है!

चाय बिना ना

याद बहुत आती है, 

वह सांझ की बेला, 

सुबह की लाली, 

चाय बिना ना,

बात बनती थी मेरी।।

शाम की बेला

शाम की बेला 

चाय की प्याली

होठों की मुस्कान 

कैसे मैं रोकू…😊

चाय के बहाने

चाय के बहाने

चाय के बहाने हम मिलते रहे, 

हॅंसी की मिठास रिश्तो में घोलते रहे,

जुगलबंदी पानी और चायपत्ती की होती रही,

हम चाय के बहाने तारों को देखते रहे।।

सर्दियों में चाय की प्याली

सर्दियों में चाय की प्याली देख, 

कभी ना नहीं कर सकते हैं हम।

– Supriya Shaw….✍️

कहानी की कहानी

गुस्सा भी नुकसानदायक होता है

भारतीय संस्कृति और वैलेंटाइन सप्ताह

कोरोना काल की कविता

जो सबक कोरोना दे दिया, किसी क़िताब में नहीं मिला

जो सबक कोरोना ने दिया वो ज़िंदगी के किसी क़िताब में नहीं मिला,

जर्जर होते गए रिश्ते ऑंसू पोछने वालो की आहट ना मिली थी कहीं।

ऑंखें दरवाज़े पर आस लगाए ताकती रही, कंधा देने वाला ना कोई दिखा,

अपनों का साथ छूटता गया, साॅंसे अकेले दम तोड़ती रही।

इंसानियत कहीं मरती दिखीं, कहीं मोक्ष देता भगवान् मिला,

अपना नहीं था पर वो, सफेद कपड़े हर किसी को पहनाता दिखा। 

श्मशान बना गली-गली, राख ना उठाने वाला अपना मिला, 

वह कौन था जो राख मटकी में भर नाम उस पर लिखता रहा।

मिट गया निशां, खाली पड़ा घर-बार, दरवाज़े पर ना कोई अपना खड़ा दिखा, 

इस सफ़र पर ना राही, ना राहगीर था, अकेला चलता भीड़ में हर अपना दिखा।

ना होश था ख़ुद का, ना ज़िक्र किसी का होता दिखा, 

हर शख्स यहाॅं खौफ़ में, मौत से जूझता दिखा।

बुझ गया चिराग कई, अंधेरा घना सामने हुआ, 

क्या कहें इस काल में, काल बन निगलता रहा।

समय का कहर

समय का कहर

हर किसी के दिल में एक आग सी जल रही है।

हर रोज कभी सुलगती कभी बुझती जा रही है।।

खौफ है दहशत है मुस्कुराने की कोशिश भी है।

अपनों के बिछड़ने की ख़बर हर रोज मिल रही है।।

कोशिश चल रही है समय को मात देने की।

हर पहल पर धड़कने सबकी तेज हो रही है।।

ख़ामोश हर शहर है बोलती हर नज़र है।

हर रोज ज़िंदगी नया दांव चल रही है।।

पता है सब

हर बात में कहना “पता है सब”

मगर क्या सच में पता है सब?

जीवन के इस झूठ को अब तक स्वीकारा ना कोई, 

अहं रोके रखा या आदतों  ने जड़ बना ली मन में, 

ऐसे अहंकार को क्या जगह मिली समाज में!

काश समझ आती तो बात कुछ और होती, 

स्वार्थ की जगह भी “पता है सब” में ना सिमट जाती, 

यही है सच! कहते-कहते मर मिटता है इंसान, 

कभी रोष में, कभी हठ में, राग बिलापता है इंसान, 

ख़ुद को भ्रम की गहराई में क्यूँ डुबोता है इंसान, 

पूछे कोई जो मुझसे क्या है इसका कोई जवाब, 

“पता नहीं” कह कर शायद मैं भी सोचू बार-बार।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता

कहानी

कविता – वह पल दोहरा लेती हूँ

कैसे ना लिखूॅं

आँखें बंद करके

वह पल दोहरा लेती हूँ,

ज़िंदगी जीने की 

वज़ह ढूंढ लेती हूँ,

हर ख़्वाब को 

हक़ीक़त बना कर 

ज़िंदगी में शामिल कर लेती हूँ,

ज़िद समझो शायद 

पर कोशिश है मेरी,

हर किरदार को निभाने का 

हुनर ढूंढ लेती हूँ,

जुगनू नहीं मैं 

जो कुछ पल की रोशनी दे 

दम तोड़ देती है,

मैं वो सितारा हूँ

जो अपनी रोशनी से 

ख़ुद जगमगाती हूँ।।

कैसे ना लिखूॅं

कैसे ना लिखूॅं मन की बातें,

जब क़लम हाथ में लेती हूॅं, 

वह ख़ुद ब ख़ुद चलती है,

मैं कुछ नहीं कहती…

जो कहती है मेरी क़लम कहती है,

कभी अर्थहीन कहती है,

कभी जज़्बातों में लिपटी रहती है,

कभी झूठ, कभी सच कहती है,

जो कहती है मेरी क़लम कहती है, 

मैं कुछ नहीं कहती…

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर दिल को यह एहसास हुआ,

ज़िंदगी से ख़ूबसूरत तुमसा हमराज़ मिला।

अनकही बातों को समझे ऐसा राज़दार मिला,

प्यार से बना रिश्ते को नाम मिला।

हमारी धड़कनों पर तुम्हारा अधिकार हुआ,

दिल के तारो में प्यार का झंकार हुआ।

तुमसे मिलकर मुझे ख़ुद से प्यार हुआ, 

अटूट बंधन मन पर, तन पर तुम्हारा अधिकार हुआ।

कहानी की कहानी 

कोरोना की कहानी

कोरोना संक्रमण का डर

कविता – पिता का दायित्व

परिवार रुपी टहनियों का, भरण पोषण करते जड़ रूपी पिता, 

इनके बिना ना हरा-भरा लगता है घर संसार हमारा। 

हर दायित्व निभाते रहते, शिकन ना चेहरे पर आने देते,

हमारी खुशियों की खातिर, अपना सर्वस्व कुर्बान है करते।

प्यार, त्याग और समर्पण से बना व्यक्तित्व है इनका , 

सबके मन में पिता का दर्ज़ा भगवान् से ना कम है। 

छत्रछाया में इनके गुजरता हमारा जीवन सदा सुरक्षित, 

हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन कर, मंज़िल तक पहुंचाते हैं पिता।

पिता एक मार्गदर्शक

*पिता* अपने आप में गंभीर और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उभर कर आता है,

प्यार, सम्मान और आदर से भावविभोर हृदय हो जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर और चेहरे पर मुस्कान दिखता है,

दिन-रात हो, मौसम कोई हो, परिवार की ख़ातिर काम पर जाना होता है।

सबके दुख को सुख में बदलना इनको बखूबी आता है,

अपनी दर्द सीने में दबा कर ख़ुश रहना भी आता है।

पिता की छत्रछाया में जीवन जितना बीत जाता है,

वहीं किताब बनकर पूरा जीवन मार्गदर्शक बन जाता है।।

कहानी – रात की बात

कहानी की कहानी “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण”

कहानी – कोरोना संक्रमण का डर