होली का त्योहार रंगों का त्योहार है। पकवानों का त्यौहार है, हर नफरत और मनमुटाव को भूलकर एक होने का त्यौहार है, और हमारी सभ्यता, संस्कृति का त्यौहार है, बूढ़े, बच्चे, जवान हर किसी को रंग लगाकर प्यार और आशीर्वाद बाँटने का त्यौहार है। इसी प्यार और स्नेह के त्यौहार पर एक सुंदर कविता –
National Farmers Day, राष्ट्रीय किसान दिवस भारत के पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह के सम्मान में हर साल बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है। तो आइए जानते हैं इस दिन को मनाने की शुरूआत महत्व व अन्य महत्वपूर्ण बातें।
भारत एक कृषि प्रधान देश हैं, यहां की आधी से ज्यादा आबादी खेती-किसानी करती है। क्योंकि भारत मुख्य रूप से गांवों की भूमि है और गांवों में रहने वाली अधिकांश आबादी किसानों की है और कृषि उनके लिए आय का प्रमुख स्रोत है। किसान जब खेत में मेहनत करके अनाज उपजाते है तभी वह हर भारतीय के थालियों तक पहुंच पाता है। ऐसे में किसानों का सम्मान करना हमारा कर्तव्य बनता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए 23 दिसंबर पूर्व प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर हर साल किसान दिवस मनाया जाता है।
चौधरी चरण सिंह के आकर्षित करने वाले व्यक्तित्व और किसानों के पक्ष में विभिन्न लाभकारी नीतियों ने जमींदारों और धनियों के खिलाफ भारत के सभी किसानों को एकजुट किया। उन्होंने भारत के दूसरे प्रधान मंत्री द्वारा दिए गए प्रसिद्ध नारे जय जवान जय किसान का पालन किया।
पूर्व प्रधानमंत्री को याद करने के अलावा इस दिन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में किसानों के महत्व के बारे में लोगों को जागरुक किया जाता है। वो किसानों के नेता माने जाते रहे हैं। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। एक जुलाई 1952 को यूपी में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला। उन्होंने लेखापाल के पद का सृजन भी किया। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया।
किसानों के प्रति उनका प्रेम इसलिए भी था क्योंकि चौधरी चरण सिंह खुद एक किसान परिवार से ताल्लुक रखते थे और वह उनकी समस्याओं को अच्छी तरह से समझते थे। राजनेता होने के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री एक अच्छे लेखक भी थे।
पंजाब और हरियाणा में विकसित 60 के दशक के दौरान हरित क्रांति ने देश की कृषि तस्वीर को बदल दिया। इससे उत्पादकता में वृद्धि हुई और इस तरह भारत विभिन्न कृषि वस्तुओं में आत्मनिर्भर हो गया।
जब वे 1979 में भारत के प्रधान मंत्री बने तो उन्होंने किसानों के जीवन में सुधार के लिए कई बदलाव किए। यह एक दिलचस्प तथ्य भी है कि भारत के प्रधान मंत्री के रूप में चौधरी चरण सिंह ने कभी भी लोकसभा का दौरा नहीं किया।
किसान दिवस कैसे मनाया जाता है।
इस मौके पर पूरे देश में स्कूलों, कॉलेजों और संस्थानों में तरह-तरह के कार्यक्रमों, प्रतियोगिताओं, चर्चाओं और प्रदर्शनियों का आयोजन किया जाता है।
इस दिन सरकार भारत के किसानों और विभागीय कृषि विज्ञान से संबंधित कई कार्यक्रम, सेमिनार और चर्चा का आयोजन करती है।
कृषि विभाग के अधिकारी और कृषि वैज्ञानिक गांवों का दौरा करके किसानों और उनसे संबंधित मुद्दों को समझने और उनके कृषि उत्पादन को बचाने के लिए कृषि तकनीकों और विभिन्न प्रकार के बीमा योजनाओं के बारे में समाधान और जानकारी प्रदान करते हैं।
चौधरी चरण सिंह को मिट्टी का पुत्र माना जाता है जो किसानों के समुदाय से संबंधित हैं। राष्ट्रीय किसान दिवस एक स्वतंत्र और मजबूत भारतीय किसान का सम्मान है।
By – Vikash Kumar Digital Marketing Stretegist LinkedIn
हबीबगंज स्टेशन जो कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल की शान है। 15 नवंबर 2021 को उस स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन रखा गया है।
भोपाल की ख़ूबसूरती में आज वर्ल्ड क्लास रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का नाम भी जुड़ चुका है। यात्रियों की ज़रूरतों को देखते हुए हर प्रकार की सुविधाओं को प्रदान करने की कोशिश की गई है।
कैसे बदला हबीबगंज स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन
हबीब मियां जो भोपाल के नवाब थे उन्होंने 1970 में स्टेशन के नाम पर अपनी ज़मीन दान में दी थी, ताकि वहां रेलवे स्टेशन का विस्तार हो सके। 1979 में हबीबगंज स्टेशन का निर्माण कार्य हुआ था। दरअसल हबीब का मतलब होता है ख़ूबसूरत और प्यारा। हरियाली और झिलो के बीच बसा यह गांव भोपाल की ख़ूबसूरती को बढ़ा देता है। इसकी ख़ूबसूरती को देखते हुए भोपाल के नवाब की बेगम ने इस गांव का नाम हबीबगंज रखा था।
आज उसी स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन रखा गया है। जिसका उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के हाथों 15 नवंबर को हुई हैं।
15 नवंबर महान स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा जी के जयंती पर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का उद्घाटन किया गया है।
और इसी के साथ हबीबगंज स्टेशन (नया नाम) रानी कमलापति रेलवे स्टेशन का कोड RKMP रखा गया है।
इस स्टेशन की सबसे ख़ास बात यह है कि यह पूरा सौर ऊर्जा से चलेगा। और यहां पर यात्रियों की सुविधाओं का ख़ास ध्यान रखा गया है।
सीहोर जिले के सलकनपुर रियासत के राजा कृपाल सिंह सरौतिया की पुत्री का नाम रानी कमलापति था। रानी कमलापति बचपन से ही बुद्धिमान थी। कमलापति की बुद्धिमता और पराक्रम को देखते हुए राजा कृपाल सिंह ने उन्हें अपने राज्य का सेनापति घोषित किया था।
भोपाल से लगभग 55 किलोमीटर दूर 750 गांवों को मिलाकर गिन्रौरगढ़ रियासत था यहां के राजा सूराज सिंह शाह के बेटे निजाम शाह से ही रानी कमलापति की शादी हुई थी।
रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ रियासत की अंतिम गोंड रानी थी। माना जाता है कि अपनी बुद्धिमता, वीरता और पराक्रम के बल पर उन्होंने कई उत्कृष्ट कार्य किए थे। मंदिरों की स्थापना और उद्यान के क्षेत्र में उन्होंने कार्य किए थे। माना जाता है कि रानी कमलापति ने अपनी इज़्ज़त की रक्षा के लिए जल समाधि ले ली। ऐसी वीरांगना के नाम पर आज हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति स्टेशन रखा गया है। आदिवासी समुदायों में से सबसे बड़ा गोंड समुदाय है। और 18 वीं सदी की गोंड साम्राज्य की आखरी शासिका थी रानी कमलापति।
रानी कमलापति सीहोर जिले के सलकनपुर के राजा कृपाल सिंह सरोतिया की सुपुत्री थी। कृपाल सिंह रानी कमलापति की बुद्धिमानी और बहादुरी को देखते हुए उनको राज्य का सेनापति घोषित किए थे। माना जाता है कि उन्हें तलवारबाजी और घुड़सवारी का शौक था।
रानी कमलापति का विवाह गिन्नौरगढ़ के गोंड राजा सूरज शाह के बेटे निज़ाम शाह के साथ हुई थी। निज़ाम शाह की सात पत्नियाँ थी। रानी कमलापति निज़ाम शाह की सातों पत्नियों में से सबसे सुंदर थी जिसके कारण निज़ाम शाह की प्रिय रानी थी।
कहा जाता है कि रानी कमलापति अपने शासनकाल में जल प्रबंधन से संबन्धित कई उत्कृष्ट कार्य किए थे। जगह-जगह उद्यान और मंदिरों की स्थापना करवाई।
वही आलम शाह बाड़ी का शासक था। और जो कि निजाम शाह का भतीजा था उसकी नज़र निज़ाम शाह की संपत्ति पर थी। आलम शाह ने अपने चाचा निज़ाम शाह की हत्या के लिए कई बार षड्यंत्र रचा मगर वह कभी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाया।
आलम शाह किसी भी तरह निज़ाम शाह की संपत्ति को हथियाना चाहता था। इसके लिए उसने 1720 में निज़ाम शाह को खाने पर अपने घर बुलाया और वहां निज़ाम शाह को धोखे से खाने में ज़हर मिलवा कर उनकी हत्या करवा दी। इस प्रकार आलम शाह ने निज़ाम शाह की हत्या कर दी।
निज़ाम शाह की हत्या के बाद
निज़ाम शाह की हत्या के बाद रानी कमलापति अकेली पड़ गई। परंतु वह आलम शाह के षड्यंत्र और मंसूबों को समझ चुकी थी। वह किसी भी तरह अपने पति निज़ाम शाह के मौत का बदला लेना चाहती थी।
निज़ाम शाह ने रानी कमलापति के नाम से गिन्नौरगढ़ से दूर भोपाल में स्थित रानी कमलापति महल बनवाया था। निज़ाम शाह के मौत के बाद रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह के साथ गिन्नौरगढ़ से भोपाल स्थित कमलापति महल में आ गई। और इस तरह अपने बेटे के साथ वह रानी कमलापति महल आकर रहने लगी।
पति के मौत का बदला लेने के लिए रानी कमलापति मित्र मोहम्मद ख़ान से सहायता ली
अब अपने पति के मौत का बदला लेने के लिए उन्होंने मित्र मोहम्मद ख़ान से सहायता लेनी चाहि। मोहम्मद ख़ान ने इस युद्ध के लिए कमलापति से मोटी धनराशि की माँग की और कमलापति ने उनकी माँग को पूरा करते हुए मोहम्मद ख़ान को आलम शाह से युद्ध करने के लिए कहा।
रानी कमलापति के कहने पर मोहम्मद ख़ान ने आलम शाह से युद्ध कर उसे पराजित किया और इस तरह रानी कमलापति ने अपने पति की हत्या का बदला लेकर गिन्नौरगढ़ का शासन भार संभाला था।
रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ की आखिरी गोंड साम्राज्य की महिला शासक थी।
जीत के बाद रानी ने मोहम्मद ख़ान को भोपाल का एक हिस्सा दे दिया। लेकिन कुछ समय पश्चात मोहम्मद ख़ान ने रानी कमलापति से गिन्नौरगढ़ का साम्राज्य हड़पना चाहा। रानी कमलापति जो मोहम्मद खान को अपने भाई की तरह मानती थी। परंतु उन पर बुरी नज़र थी। जो नवल शाह को अच्छा नहीं लगा। तब मोहम्मद ख़ान और नवल शाह में युद्ध हुआ और युद्ध के दौरान 14 साल के नवल शाह की मृत्यु हो गई।
युद्ध में हार और नवल शाह की मृत्यु की ख़बर सुनते ही रानी ने अपने आत्मसम्मान की रक्षा करते हुए महल की तरफ़ जो बांध था उसका पानी खोलने को कहा, जिसके कारण महल के तरफ जो सकरा रास्ता जाता था उससे होकर पानी महल में प्रवेश कर गया और इस तरह महल धीरे-धीरे पानी में डूबने लगा, जिसमें रानी ने अपने आप को जल समाधि ले ली।
भारत के उत्तराखंड राज्य में दो प्रमुख मंडल हैं गढ़वाल और कुमाऊं।
कुमाऊं क्षेत्र के एक प्रमुख लोक कला है जिसका नाम है ऐपण।
ऐपण क्या है ?
“ऐपण” शब्द संस्कृत के शब्द “अर्पण” से लिया गया है।
“ऐपण” का शाब्दिक अर्थ होता है “लिखना”।
ऐपण उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में प्रत्येक त्योहार, शुभ अवसर, धार्मिक अनुष्ठान, नामकरण संस्कार, आदि पवित्र समारोह का एक अभिन्न अंग है, जिसमें तरह-तरह की आकृतियां, चित्र बनाए जाते हैं।
ऐपण कहाँ बनाए जाते हैं ?
ऐपण फर्श, दीवारों, घरो के प्रवेश द्वार, पूजा का क्षेत्र, मंदिर में चौकियों पर, पूजा की थाल में, पूजा के आसन में, विभिन्न देवी-देवताओं के लिए जो आसन बनाए जाते हैं उनमें और अब तो आधुनिक रूप से विभिन्न प्रकार के पेंटिग्स में भी इसका प्रयोग किया जाने लगा है ।
ऐपण बनाने की पारंपरिक विधि
उत्तराखंड के कुमाऊं में प्रत्येक महीना दिवाली के शुभ अवसर पर मुख्य त्योहारों पर अपने घरों को ऐपण से जरूर सजाती है।
परंपरागत रूप से ऐपण में गेरू और चावल को भिगोकर पीसे गये घोल (पेस्ट) का प्रयोग होता है। इसमें महिला अपने दाहिने हाथ की अंतिम तीन उंगलियों से विभिन्न प्रकार की ज्योमैट्रिक पेटर्न जिसमे स्वास्तिक, शंख,सूर्य, चंद्रमा, पुष्प देवी लक्ष्मी, गणेश आदि की आकृतियां बनाती है ।
ऐपण बनाने की आधुनिक विधि
आज के समय में महिलाएँ और लड़कियाँ गेरू और चावल के पेस्ट की जगह पर रंग – बिरंगे पेंट जैसे लाल, सफेद रंगों का प्रयोग करते हैं वे तरह-तरह के आकृतियाँ बनाती हैं।
ऐंपण कला का महत्व
उत्तराखंड के कुमाऊं की ये अनमोल कला को अभी तक संभालने और अपनी पीढ़ियों को आगे से आगे पहुंचाने का श्रेय किसी को जाता है तो वो है वहाँ की महिलाएं जो अपनी बहू, बेटियों को और बच्चों को अब ये पीढ़ी दर पीढ़ी सिखाते जा रही हैं। इसका बहुत ही अधिक महत्व है क्योंकि धीरे-धीरे हमारे लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं और इन को संभालना अब आज की नई पीढ़ी के लिए बहुत ही ज़रूरी है चाहे वो शहर में रह रहे हो या गाॅंव में।
खासकर जब बात आती है दिवाली के दिनों की तो अच्छा मौका होता है जब सब मिलकर कुछ ना कुछ अपने घर के लिए कर सकते हैं अपने मंदिर को सजा सकते हैं इस ऐपण के द्वारा और अपने समय का सदुपयोग के साथ-साथ इस विरासत को ख़त्म होने से बचा सकते हैं।
(आशा करती हूॅं आपको उत्तराखंड के इस लोक कला के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा)