Motivational Poem

हरिवंश राय बच्चन- कुछ करना है तो डट कर चल


इन पंक्तियों के लेखक हरिवंश राय का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के नज़दीक प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव पट्टी में हुआ.
घर में प्यार से उन्हें ‘बच्चन’ कह कर पुकारा जाता था। आगे चल कर यही उपनाम विश्व भर में प्रसिद्ध हुआ। साहित्य में योगदान के लिए प्रतिष्ठित सरस्वती सम्मान, उत्तर प्रदेश सरकार का यश भारती सम्मान, सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी वे नवाज़े गए। लेखक हरिवंश राय बच्चन को 1976 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
कविता की लोकप्रियता का प्रधान कारण उसकी सहजता और संवेदनशील सरलता है उन्होंने साहस और सत्यता के साथ सीधी-सादी भाषा और शैली में सहज ही कल्पनाशीलता और सामान्य बिम्बों से सजा-सँवार कर अपने नये गीत हिन्दी जगत को भेंट किये। हिन्दी जगत ने उत्साह से उनका स्वागत किया।
सामान्य बोलचाल की भाषा को काव्य भाषा की गरिमा प्रदान करने का श्रेय निश्चय ही सर्वाधिक ‘हरिवंश राय बच्चन’ का ही है।
“कुछ करना है तो डट कर चल” इस कविता को लोगों ने बेहद पसंद किया था। आज भी इस कविता को लोग बेहद पसंद करते हैं।

नवरात्रि पर कविता

नवरात्र में माँ दुर्गा की कविता

नारी हर घर की शोभा है तू

श्री हरिवंश राय बच्चन की रचनाएं 

हरिवंश राय बच्चन जी के बारे में –

श्री हरिवंश राय बच्चन जी का जन्म 27 नवम्बर 1907 को इलाहबाद के पास प्रतापगढ़ जिले के एक गांव पट्टी में हुआ था। उन्होंने 1938 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य से एम. ए. किया। उसके बाद 1952 तक इलाहबाद विश्विद्यालय में प्रवक्ता रहे। हरिवंश राय बच्चन जी हिंदी साहित्य के वो जगमगाते सितारे हैं जिनकी चमक कभी कम नहीं हो सकती। 1976 में उन्हें पदमभिभूषण की उपाधि से सम्मानित किया गया। हरिवंश राय बच्चन जी के सुपुत्र अमिताभ बच्चन जी को कौन नहीं जनता। आज भी अमिताभ बच्चन जी अपनी पिता की कविताएं गाते हुए भावुक हो जाते हैं। 18 जनुअरी 2003 को मुंबई में उनका निधन हो गया। उनकी कई कविताएं और रचनाएँ तो आज भी साहित्य प्रेमियों के दिल में घर कर जाती हैं जिसमें – मधुबाला, मधुकलश, सतरंगीनी , एकांत संगीत , निशा निमंत्रण, विकल विश्व, खादी के फूल , सूत की माला, मिलन दो चट्टानें भारती और अंगारे इत्यादि हैं।

आज मुलाकात हुई 

जाती हुई उम्र से मेरी 

कहा जरा ठहरो तुम 

वह हंसकर इठलाते हुए बोली

 मैं उम्र हूं ठहरती नहीं 

पाना चाहते हो मुझको 

तो मेरे हर कदम के संग चल,

मैंने भी मुस्कुराते हुए कह दिया 

कैसे चलू मैं बनकर तेरा हम क़दम,

तेरे संग चलने पर,

 मुझको छोड़ना होगा, 

मेरा बचपन 

मेरी नादानी 

मेरा लड़कपन 

तू ही बता दे 

कैसे समझदारी की दुनिया अपना लूं,

जहां है….

नफरतें 

दूरियां 

शिकायतें 

और 

अकेलापन…

मैं तो दुनिया ए-चमन में 

बस एक मुसाफिर हूं….

गुज़रते वक्त के साथ 

एक दिन 

यूं ही गुज़र जाऊंगा….

क्या बात करें 

इस दुनिया की, 

हर शख्स के,

अपने अफसाने हैं,

जो सामने है 

उसे लोग बुरा कहते हैं, 

और जिसे कभी देखा ही नहीं, 

उसे सब ख़ुदा कहते हैं….

गिरना भी अच्छा है दोस्तों, 

औकात का पता चलता है, 

बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को, 

अपनों का पता चलता है…..

सीख रहा हूं, 

अब मैं भी 

इंसानों को पढ़ने का हुनर, 

सुना है चेहरे पर,

 किताबों से ज्यादा 

 लिखा होता है…..

किसी ने बर्फ से पूछा,

कि आप इतने ठंडे क्यों हो,

बर्फ ने बड़ा अच्छा जवाब दिया,

मेरा अतीत भी पानी, 

मेरा भविष्य भी पानी,

 फिर गर्मी किस बात पे रखूं…..

हारना तब आवश्यक हो जाता है,

जब लड़ाई अपनों से हो, 

और जितना तब आवश्यक हो जाता है,

जब लड़ाई अपने आप से हो….

मंजिल मिले ये तो मुकद्दर की बात है, 

हम कोशिश ही ना करें,

ये तो ग़लत बात है….

रब ने नवाज़ा हमें 

 ज़िंदगी देकर 

और हम! 

सोहरत मांगते रह गए….

ज़िंदगी गुजार दी शौहरत के पीछे 

फिर जीने की 

मोहलत मांगते रह गए…..

ये समंदर भी 

तेरी तरह ख़ुदग़र्ज़ निकला,

ज़िंदा थे तो तैरने न दिया,

और मर गए तो डूबने न दिया ….


सफेद बालों को काला करने के घरेलू उपाय

कविता – पतंग हूँ मैं, दुनिया

कविता : खुशियों का दरवाज़ा

कविता – पतंग हूँ मैं, दुनिया

2020-ki-yaadein

पतंग हूँ मैं

   पतंग हूँ मैं

उड़ना चाहती हूँ में

जीवन के सारे

रंग समेटे

उड़ती हूँ तलाश ने

अपना एक मुठ्ठी आसमान। 

चाहती हूँ बस

कटने ना दोगे कभी

कट भी जाऊँ

दुर्भाग्य से तो

लूटने न दो कभी

सहेज लोगे 

प्यार का लेप लगा। 

बाॅंध लोगे फिर मुझे

एक नये धागे से

प्यार और विश्वास के

लेकिन डोर है ज़रूरी 

मांजा सूता, 

तो कटूंगी नहीं,

कोशिश करती हूँ

जीवन सहज हो

ढील भी देनी होगी

कभी-कभी

सदा खींचकर न रख पाओगे मुझे

खुशियों की उड़ान देख मेरी

जानती हूँ

खुश हो जाओगे तुम भी

भूल जाओगे खुशी देख मेरी

हाथ कटने का 

गम भी ना होगा …! 

दुनिया..

कभी सांझ बनेगी दुनिया

कभी दोपहरी में ही सिमट जायेगी। 

कभी पनघट तक आयेगी दुनिया

कभी चौखट से लौट जायेगी। 

कभी इशारे में कह जायेगी दुनिया

कभी इशारों से ही लूट ले जायेगी। 

कभी बनकर घटा बरस जायेगी दुनिया

कभी रेत सी फिसल जायेगी। 

कभी फूल सी महक जायेगी दुनिया

कभी कांटा बनकर चुभ जायेगी। 

कभी रहबर बनकर आयेगी दुनिया

कभी पैरों की बेड़ियां बन जायेगी। 

कभी दूर तलक ले जायेगी दुनिया

कभी रस्म रिवाजों में बंध जायेगी। 

कभी रोशन दिये सी आयेगी दुनिया

कभी तोड़कर सारे सपने चली जायेगी। 

जब भी जिंदगी के आगोश में आयेगी दुनिया

नये रंग, ढंग, रूप दिखलायेगी….। 

ये साल सदा याद रहेगा, जब तक जीवन है।।

शुरुआत तुम्हारी अच्छी थी,

जश्न भी हुआ, पार्टी भी की,

होली के रंगो में भी भीगे थे हम,

कोरोना आने से तुम्हारा कोई दोष नहीं,

तुमने वो कर दिखाया जो किसी ने नहीं किया,

सबको परिवार के साथ मिला दिया,

घर में परिवार के प्यार को मजबूत किया,

दूर रहने में ही भलाई है सबसे, 

संदेश ये सबको दिया.. 

घरका खाना सिखा दिया,

तुमसे ही तो सीखा ज़िंदगी को जीना,

तुमने ही तो लोगों को दिखाई सच्ची असलियत है,

तुमसे भी हमें बाकी सालों जैसी मुहब्बत है,

बुरा तो वक़्त था, पर साल यूं ही बदनाम हुआ,

कुछ अच्छा तो कुछ बुरा बनके आया ये साल,

पर क़ैद कैसी होती है सीखा गया हमें,

कुछ बुरा था कुछ अच्छा,

बंद घरों में क़ैद होकर पिंजरे का दर्द जाना,

करीब आ गया परिवार, फोन बन गए दोस्त,

आना जाना नहीं हुआ, मिली ये कैसी फुर्सत,

ये साल सदा याद रहेगा, जब तक जीवन है,

कोई ना सिखा सका, वो ये वक़्त सिखा गया,

2020 तुमसे भी हमें बाकी सालों जैसी ही मुहब्बत है,

अपनो को खोया, अपनो को मिलाया,

नौकरियाँ गयी, पढ़ाई रुक गयी, खाने के लाले पड़े

कुछ अच्छा तो कुछ बुरा था,

ये इतना भी बुरा नहीं है,

ये साल सदा याद रहेगा, जब तक जीवन है।।

उषा पटेल

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

कविता – प्रेम विरह कविता

कविता – माँ का वात्सल्य

कविता : खुशियों का दरवाज़ा

Usha Patel

कहीं बूढ़े सिसकते मिलते है और कहीं जवानी रोती है,

कोई हाथ पसारे बाहर है कोई बाँह फैलाये अंदर है।

हर दरवाजे के अंदर जाने कितनी जानें बसती है,

बच्चे बूढ़े और जवानों की खूब महफ़िल सजती है।

सूरते हाल पूछो उनसे जिसे दर दर ठोकरें ही मिलते है,

दरवाज़े तो है, पर खुशियों का दरवाज़ा नसीबों को मिलते है।

खुल जाता है दरवाज़ा जब हर दुआ क़ुबूल होती है,

इबादत करने वालों की तब हर मुरादें पूरी होती है।

हर मनुष्य के लिए प्रेम, सहायता, हमदर्दी पैदा करनी होती है,

तमाम बुराईयों से परहेज, अपनो से दूरी कम करनी होती है। 

मानवता में खुद को समा कर, जीवन का सार जब मिलता है,

तब कुछ क्षण के लिए हमको, खुशियों का दरवाज़ा मिलता है।

लेखिका- उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

15 अगस्त 2021 को भारत देश की स्वतंत्रता को पूरे 75 साल पूरे हो जाएंगे। उन वीरों को हम नमन करें, स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता हिंदी में ।

आज़ादी की लहर

आज़ादी की लहर

आज़ादी का परचम तब लहराया था, 

जब अनगिनत माताओं के लाल ने रक्त बहाया था।

हर रक्त का एक-एक क़तरा आज बना वरदान है, 

आज़ादी की हर साँस पर उनकी कुर्बानी का नाम है।

गाथाएं सुर वीरो की जब-जब दोहराई जाएगी, 

जाने कितने वीरो के सीनो में देशभक्ति की ज्योत जलेगी।

अमर शहीद भगत सिंह जैसे वीरो की कहानी, 

हर बच्चो के सीने में हर रोज दोहराई जाएगी। 

अमर रहेंगे हरदम ये तिरंगे से इनकी याद जब आएगी,

आज़ादी की लहर बनकर सबकी नज़रें तिरंगे पर ठहर जाएगी।।

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान, जीवन मिला वरदान, 

कृतज्ञ हम उन सुर वीरों की, 

आज़ादी का परचम जिन्होंने लहराया है।

अमर रहेगा नाम उनका, 

हर भारतवासी के सीने में।

बच्चे बूढ़ों की ज़ुबानी उनकी गाथाएं दोहराएंगे, 

आने वाले हर पीढ़ी को ये सबक ज़रूर सिखाएंगे।

मेरा वतन

मेरा वतन

जहां है शांति और अमन का राज, 

जहां चारों धाम का होता मिलाप, 

बसते जहां हर धर्म के वासी, 

हर भाषा का अनोखा मेल होता जहां,

वह है मेरा वतन।।

गंगा, जमुना, सरस्वती का अनोखा संगम होता जहां, 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे का दर्शन साथ करते यहां, 

तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे अनगिनत कवियों की,

कविताओं में रचा बसा मिलता मेरा वतन, 

खेत खलियानों से सजी-धजी, 

धरती उपजाऊ मिलती जहां, 

वह है मेरा वतन।।

Supriya Shaw….

कोरोना काल की कविता

कविता – पिता का दायित्व

कोरोना काल की कविता

जो सबक कोरोना दे दिया, किसी क़िताब में नहीं मिला

जो सबक कोरोना ने दिया वो ज़िंदगी के किसी क़िताब में नहीं मिला,

जर्जर होते गए रिश्ते ऑंसू पोछने वालो की आहट ना मिली थी कहीं।

ऑंखें दरवाज़े पर आस लगाए ताकती रही, कंधा देने वाला ना कोई दिखा,

अपनों का साथ छूटता गया, साॅंसे अकेले दम तोड़ती रही।

इंसानियत कहीं मरती दिखीं, कहीं मोक्ष देता भगवान् मिला,

अपना नहीं था पर वो, सफेद कपड़े हर किसी को पहनाता दिखा। 

श्मशान बना गली-गली, राख ना उठाने वाला अपना मिला, 

वह कौन था जो राख मटकी में भर नाम उस पर लिखता रहा।

मिट गया निशां, खाली पड़ा घर-बार, दरवाज़े पर ना कोई अपना खड़ा दिखा, 

इस सफ़र पर ना राही, ना राहगीर था, अकेला चलता भीड़ में हर अपना दिखा।

ना होश था ख़ुद का, ना ज़िक्र किसी का होता दिखा, 

हर शख्स यहाॅं खौफ़ में, मौत से जूझता दिखा।

बुझ गया चिराग कई, अंधेरा घना सामने हुआ, 

क्या कहें इस काल में, काल बन निगलता रहा।

समय का कहर

समय का कहर

हर किसी के दिल में एक आग सी जल रही है।

हर रोज कभी सुलगती कभी बुझती जा रही है।।

खौफ है दहशत है मुस्कुराने की कोशिश भी है।

अपनों के बिछड़ने की ख़बर हर रोज मिल रही है।।

कोशिश चल रही है समय को मात देने की।

हर पहल पर धड़कने सबकी तेज हो रही है।।

ख़ामोश हर शहर है बोलती हर नज़र है।

हर रोज ज़िंदगी नया दांव चल रही है।।

पता है सब

हर बात में कहना “पता है सब”

मगर क्या सच में पता है सब?

जीवन के इस झूठ को अब तक स्वीकारा ना कोई, 

अहं रोके रखा या आदतों  ने जड़ बना ली मन में, 

ऐसे अहंकार को क्या जगह मिली समाज में!

काश समझ आती तो बात कुछ और होती, 

स्वार्थ की जगह भी “पता है सब” में ना सिमट जाती, 

यही है सच! कहते-कहते मर मिटता है इंसान, 

कभी रोष में, कभी हठ में, राग बिलापता है इंसान, 

ख़ुद को भ्रम की गहराई में क्यूँ डुबोता है इंसान, 

पूछे कोई जो मुझसे क्या है इसका कोई जवाब, 

“पता नहीं” कह कर शायद मैं भी सोचू बार-बार।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता

कहानी

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

आपके सपने और आत्मविश्वास

लेखक के क़लम द्वारा पाठकगण से एक गुज़ारिश

नज़र

दुनिया आपको किस नज़र से देखती है, 

या फिर

आप दुनिया को किस नज़र से देखते हैं, 

ये बात बिल्कुल भी मायने नहीं करता,

फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है,

कि आप स्वयं को किस नज़र से देखते हैं। 

जब तक आप अपनी नज़र में हैं,

तब तक दुनिया की कोई भी ताकत,

आपके इरादों को, हौसलों को, 

आपके सपनों को, आपके आत्मविश्वास को,

चाहकर भी नहीं तोड़ सकती, 

चाहे वो कितनी भी कोशिश कर लें। 

लेकिन वही जब आप पूर्णतः

अपनी ही नजरों से ही गिर जाएंगे ना,

तब आपके जीवन रुपी नौका को, 

मझधार में डूबने से कोई नहीं बचा सकता, 

आपको डूबने से बचाने की, 

चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर लें।

(इसलिए आप – हम सब हमेशा ही अपने नजरों में रहें । ऐसा करने पर ही हम, आप सब संघर्ष रुपी इस जीवन में सदैव अपनी – अपनी विजय – पताका लहरा पाएंगे, हर मुसीबतों, हर बाधाओं के ऊपर और लिखेंगे अपनी कामयाबी की दास्ताँ जिसकी आवाज सदियों सदियों तक रह पायेंगी इस नश्वर संसार में।)

यादों के खंडहर

यादों के खंडहर में कैद हैं, 

जीवन के अनगिनत लम्हें,

जो लौटकर आते नहीं कभी।।

हाँ, वो जो अनगिनत लम्हें हैं ना,

वो कुछ खुशी के तो कुछ गम के हैं,

हाँ, वो ही बन गये हैं अतीत ।। 

आ जाते हैं उभरकर कभी – कभी,

आंखों की गहराइयों में,

वो लम्हें हकीकत नहीं, प्रतिच्छाया बनकर।। 

होता है जब कभी ये चंचल मन स्थिर कभी,

तन्हाई और अकेलेपन में खुद को पाकर,

हंस देता है कभी-कभी, रो देता है कभी-कभी।। 

और निभाती है तब साथ उस चंचल मन का,

बस सिर्फ आंखें, दिल, और ओंठ ही।।

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को 

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

कर देती है स्वयं को समर्पित, 

जो समस्त संसार की खुशियों में, 

अपनी निजी खुशियों का दामन त्याग कर, 

और बन जाती है उदाहरण,

समस्त प्रेम कहानियों के लिए,

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

होती है बेहद ख़ूबसूरत,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

जो प्राप्त कर लेती है अपनी मंज़िल. 

और बिखेर देती है चहुँ ओर खुशियाँ, 

अपनी निजी खुशियों के रंगों में रंग कर, 

और बन जाती है उदाहरण, 

समस्त प्रेम कहानियों के लिए, 

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

Kids Short Stories

Life Thoughts 

Motivational Poem

कविता । कोरोना महामारी में इंसान की उम्मीद ना टूटे कभी

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना, दिल में आस जलाये रखना,

माना परिस्थितियाँ आज विकट है, पर ये शाश्वत नहीं । 

वक्त हमेशा रहता नहीं एक जैसा, ये वक्त भी बदल जायेगा,

खुशियों भरा सवेरा फिर से आयेगा, बस धैर्य तुम अपना बनाये रखना। 

ये महामारी रूपी संकट के बादल जो छाए हैं चहुँ ओर छंट जायेंगे,

क्या हुआ जो अंधियारा घना छाया है , अंधियारों के बीच सितारे चमकते नजर आयेंगे।

धैर्य तुम अपना ना खोना कभी

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना। 

राहों में ख़ुशी मिले या ग़म आत्मसंयम की पतवार हर पल थामे रखना , 

जज़्बात रुपी मझधार में हमेशा उलझ कर तुम ना रह जाना। 

लहरों के विपरीत होता चलना कभी भी बेहद आसान नहीं, 

करके अपने अंतर्मन की शक्तियों पर विश्वास बस निरंतर आगे बढ़ते जाना। 

डर के साये से बाहर निकल कोशिशें बारंबार करते जाना, 

पर तुम हार ना मानना कभी, चाहे हो जाए क्यों ना कुछ भी। 

प्रयासों का कारवां रहे जब रहे संग, साहिल तुझे अपना मिल पाएगा तभी,

मत होना निराश बस रख आस, कभी साकार हो जायेंगे सपने सभी। 

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई, जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना।

अंजाम की फ़िक्र

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे ! बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

आये सफर-ए-जीवन में मुश्किलें कितनी भी, घबराकर उनसे ना बदलना राहें।

हार में भी तुम्हें अपनी जीत मिलेगी, हमेशा उनसे नयी-नयी सीख मिलेगी।

कोशिशें तुम अथक करना, अंधेरे में भी सदा रोशनी भरना।

मिलेगी मंज़िल एक दिन विश्वास रखना, अंतर्मन में हमेशा ये आस रखना।

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

उत्तराखंड की ऐपण कला

स्त्री विषयी कविता

Food Recipes

कविता – लो बसंत का मौसम आया

Usha Patel

संघर्ष कर

प्रेरणादायक विचार

बसंत तुम संग,

आयी है छटा बिखेरे,

मधुरस सरसों के फूल में,

फिर अमृत बोली बोल रही,

कोयलिया बगिया के आड़ से,

एक डाल पर बैठी गौरैया के,

कानों में कुछ कहना है,

ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,

तुम संग गगन में वासंती होना है,

पिघल रही कसक तन की,

आयी है मौसम मनभावन,

राग उत्सव की गा रहें,

फिर चला है चाँद घर ऑंगन,

देखो उठ रही मधुमाती सुगंध,

अमवा के मोजर से,

फिर मन प्रीत जगे है,

रत जगे महुआ के डाल से,

उमड़ घुमड़ को निकल पड़े है,

युगल गंगा की घाट पर,

फिर देखो सज रहा बसंत,

नव अंकुरित फूलों की चाह पर,

ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,

तुम संग गगन में वासंती होना है।।

कविता – किताबों की दुनिया

कुछ लोगों को संभाल कर रखो किताबों की तरह,

जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको,

जो अंधेरी रात में एक टिमटिमाते दीपक की तरह,

फिर रोशन कर सकें तुम्हारे सब ओझल रास्तों को,

तेरे उदास दिल के सामने खोल दें पेज मुहब्बत के,

जो तुम्हारे अंतर्मन में दो लफ्ज़ प्यार के घोल दें,

तुम्हारी ख़ामोशियों की जो नई आवाज़ बन सके,

तुम्हारी तन्हाइयों के रुदन में नया साज बन सके,

जो तुम्हारे दुःख में घुल सके, एक नई प्रेरणा की तरह,

जिससे संबंध हो जैसे, शरीर और आत्मा की तरह,

कुछ लोगों को संभालकर रखो किताबों की तरह,

जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग


कविता – तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो

कविता – माँ का वात्सल्य

माँ का वात्सल्य

बनना  पड़ता है एक माँ को भी कभी – कभी पत्थरदिल,

ताकि अपने संतानों में मजबूती के साथ सत्संस्कार  रूपी पौधे को रोप दे, 

भावी जीवन के सुनहरे सफ़र के लिए कुछ  कर्तव्य , आवश्यक कार्य सिखा सके,

कोई कभी भी उसके संतानों के आत्म सम्मान को ठेस ना पहुँचा सके , 

उसे मिली है जो परवरिश उस पर कोई कभी भी उंगली ना उठा सके,

एक माँ के लिए यह कार्य आसान नहीं कभी होता है,

अपने संतान को तकलीफ़ में देख उसका दिल बहुत रोता है।

कविता – नारी के रूप अनेक

कविता- वो एक मिनट

याद भी नहीं होगा उसे तो, 

वो एक मिनट जब गोद में, 

पहली बार वो मेरी आया था।

सारी दुनिया को सिमटाकर वो, 

मेरी सम्पूर्ण ज़िंदगी की, 

आस कहलाया था।

जिन नन्हीं-नन्हीं, 

उंगलियों को थाम, 

मैंने मातृत्व का, 

सुखद एहसास पाया था।

खुश थी देखकर, 

जब समय के साथ, 

मैंने उसे दृढ़ता से, 

चलता हुआ पाया था।

आज वही बेटा, 

मेरा हाथ थाम, 

वृद्धाश्रम मुझे, 

सदा के लिए,

छोड़ने आया था।

लेखिका:  प्रिया कुमारी 

फरीदाबाद

कविता — देखा है मैने 

देखा है मैने कुछ लोगों को,

अजनबियों की खुशी के लिए ,

उनके सुख और भलाई के लिए, 

अपने अस्तित्व को ही दाँव पर लगाते।

बिल्कुल मोमबत्ती की ही तरह,

जो स्वयं की फिक्र किये बिना, 

अपने खून का एक – एक कतरा,

निस्वार्थ भाव से  खर्च कर देते हैं।

गम के काले घने अंधकार को मिटाने के लिए, 

उनके जीवन में नव – आशा से भरी,

 बसंत – बहार लाने के लिए,

 हमेशा – हमेशा के लिए  छोड़ देते हैं,

उनके सुनहरे यादों में मौजूदगी अपनी,

अच्छाई और सच्चाई की।

कविता — हर क़दम पे मुश्किल

जीवन के हर एक कदम पे मुश्किल तो आकर खड़ी हो ही जाती है, 

लेकिन रहता संग जब अपनों का साथ, तब जीत बड़ी हो जाती है। 

अपनों का साथ हमेशा ही अंतर्मन को बहुत सूकून दे जाता है, 

हृदय की गहराइयों में उठते भय रुपी पीर को हर ले जाता है। 

स्वयं की शक्तियों पर किये गये विश्वास का दायरा बढ़ जाता है, 

निराशा के अंधेरे में उम्मीद का प्रकाश अपनी परवान चढ़ जाता है । 

अपने बुलंद हौसले के संग निडर हो सफर में आगे तभी बढ़ पाता हैं,

करके अथक मेहनत आखिर में वही सच्ची कामयाबी को पाता हैं।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

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