Poem

बारिश की भीनी-भीनी फुहार

Barish

झुलसाती गर्मी से परेशान हृदय, 

लगाता है पल-पल बारिश की गुहार। 

धान की फसल लहलहाए, 

इसके लिए ज़रूरी है बारिश की फुहार। 

रिमझिम-रिमझिम बरसे बदरा, 

और मेंढक करें टर्र-टर्र पुकार। 

अकुलाते पशु-पक्षी सारे,

सूख चुका है सम्पूर्ण संसार।

लौट आए काश! वो बचपन के दिन, 

जब कागज़ की कश्ती कराते थे हम पार।

महक उठे सौंधी मिट्टी, 

और चहुँ ओर ही खुशियाँ अपार। 

उमंग जोश से भर जाए सबका जीवन, 

अन्नदाता न सहे भूख की मार।

धरा की प्यास बुझाए बारिश, 

और करे नवजीवन का संचार। 

महके घर-आँगन सबका, 

जब हो बारिश की भीनी-भीनी फुहार।

मन-मस्तिष्क तब तरोताज़ा हो जाए, 

जब दिखे आसमां में इंद्रधनुष का आकार।

– देवप्रियम

होली पर हिंदी कविता

Life Thoughts

प्रेम विरह कविता हिंदी

कविता : खुशियों का दरवाज़ा

Usha Patel

कहीं बूढ़े सिसकते मिलते है और कहीं जवानी रोती है,

कोई हाथ पसारे बाहर है कोई बाँह फैलाये अंदर है।

हर दरवाजे के अंदर जाने कितनी जानें बसती है,

बच्चे बूढ़े और जवानों की खूब महफ़िल सजती है।

सूरते हाल पूछो उनसे जिसे दर दर ठोकरें ही मिलते है,

दरवाज़े तो है, पर खुशियों का दरवाज़ा नसीबों को मिलते है।

खुल जाता है दरवाज़ा जब हर दुआ क़ुबूल होती है,

इबादत करने वालों की तब हर मुरादें पूरी होती है।

हर मनुष्य के लिए प्रेम, सहायता, हमदर्दी पैदा करनी होती है,

तमाम बुराईयों से परहेज, अपनो से दूरी कम करनी होती है। 

मानवता में खुद को समा कर, जीवन का सार जब मिलता है,

तब कुछ क्षण के लिए हमको, खुशियों का दरवाज़ा मिलता है।

लेखिका- उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

होली आई, होली आई

होली आई, होली आई
प्रेम रंग में रंगने आई
रंगों की मस्ती लाई
हर तरफ है खुशियां छाई।

रंग-बिरंगे रंगों की होली आई
रंग और भांग की मस्ती छाई
धूम मचाती बच्चों की टोली आई
होली आई, होली आई।

पिचकारी में भरो रंग
लगाओ सबके अंग-अंग
झूमो, गाओ संग-संग
होली आई, होली आई।

झूमे नाचे गाए मोरे मनवा
बरसे गुलाल रंग मोरे अंगनवा
अपने ही रंग में रंग दे मोहे सजनवा
झूमे नाचे गाए मोरे मनवा।

सब मस्ती में झूमे संग
गली-गली घूम उड़ा रहे रंग
झांझ मजीरा ले मृदंग
मचावे युवा होली में हुड़दंग।

आओ मिलकर सब होली मनाए
एक दूसरे को रंग गुलाल लगाए
गिले शिकवे सब भूल जाए
सब गले से गले मिल जाए।

अवध में खेले राम होली
ब्रज में खेले कृष्ण कन्हैया।

होली आई, होली आई
प्रेम रंग में रंगने आई
रंगों की मस्ती लाई
हर तरफ है खुशियां छाई।

By – Vikash Kumar
Digital Marketing Stretegist
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होली पर हिंदी कविता

होली का त्योहार रंगों का त्योहार है। पकवानों का त्यौहार है, हर नफरत और मनमुटाव को भूलकर एक होने का त्यौहार है, और हमारी सभ्यता, संस्कृति का त्यौहार है, बूढ़े, बच्चे, जवान हर किसी को रंग लगाकर प्यार और आशीर्वाद बाँटने का त्यौहार है। इसी प्यार और स्नेह के त्यौहार पर एक सुंदर कविता –

Usha  Patel

रंग जमाती होली

रंग जमाती होली आई,
ठिठोली की हमजोली आई। 
महक उठा फागुन जैसे,
खुशियों की बहार आई। 
होली आई होली आई,
सतरंगी बौछारें लाई। 
नीला, पीला रंग गुलाबी,
पिचकारी ने धूम मचाई। 
गुजिया, भुजिया मिठाई की,
देखो कैसी महक आई। 
कहीं भांग की कुल्फी देखो,
कैसे कैसे रंग जमाई। 
पिचकारी और गुब्बारे से,
देखो कैसे समां बनाया। 
सब द्वेष भाव भुलकर
आपस में गले लगाया। 
कहीं तो है बच्चों की टोली,
प्रेम की जैसे कोई डोली। 
जमा रंग चारों दिशाओं,
मस्ती का त्यौहार होली। 
मस्ती करती इतराती आई,
सबके चेहरे पर खुशियाँ लाई। 
होली आई होली आई,
रंग रंगीली होली आई। 

लेखिका- उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग

नारी शक्ति

Beauty And Cosmetics tips 

नारी हर घर की शोभा है तू | International Women’s Day 2022

नारी हर घर की शोभा है तू

जग जननी है तू , जग पालक है तू
हर पग रोशन करने वाली है तू
माँ, बेटी, बहन, पत्नी है तू
जीवन के हर सुख-दुख में शामिल है तू
शक्ति है तू, प्रेरणा भी है तू
नारी हर घर की शोभा है तू ।।

दुख को दूर कर खुशिया बिखेरे तू
आँचल की ममता लिए
नैनो की आंसू पिए है तू
शक्ति है तू हर नर की
शोभा है तू हर घर की
आई विपदा जब-जब धरती पर
बनी दुर्गा, कभी काली बनी तू
नारी हर घर की शोभा है तू।।

By – Vikash Kumar
Digital Marketing Stretegist
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प्रेम विरह कविता हिंदी

©Alfaj_E_Chand (Moon)

वो ग़ुलाब जो दिया था उसने हमें

वो ग़ुलाब जो दिया था उसने हमें, 

हमारी पहली मुलाक़ात पर, 

जिसे छिपाया था मैनें सबकी निगाहों से, 

अपने डायरी के पन्नों के बीच, 

 सूख गये हैं अब वो, 

उन पन्नों के बीच दबे – दबे, 

पर अब भी आती है उससे वही महक, 

जो महक समाये हुए थी उसमें उस वक़्त, 

जब वो छिपाये हुए थी अपने अंदर, 

भरकर मुहब्बत के रंगों के साथ,

अपने सुंदरता अलौकिकता का सारा खज़ाना, 

दिलाती है जो अब भी हमें, 

मीठी यादें उन लम्हों की, 

जिन लम्हों की थी बनी वो साक्षी, 

और बिखेर देती हैं मेरे चेहरे पर, 

एक बार फिर वहीं मुस्कान, 

जो मुस्कान मेरे चेहरे पर आयी थी, 

पाकर उसे उस वक्त,

और कर देती है एक बार फिर, 

जोरों से हृदय स्पंदित मेरा उसकी याद में,

और पाती हूँ मैं ख़ुद को रंगी हुई एक बार पुन:,

उसकी मुहब्बत में, 

ठीक वैसे ही जैसे “राधा” “श्रीकृष्ण ” के प्रेम में, 

और “श्रीकृष्ण” “राधा ” के प्रेम में,

जो सदैव पास होकर भी दूर रहें, 

और दूर होकर भी सदैव पास रहें, 

एक – दूसरे के, 

ठीक वैसे ही मैं और वो है॥ 

जो जा रहें हैं छोड़कर

जो जा रहें हैं छोड़कर, जाने दो  उन्हें; रोको नहीं,

ज़बरदस्ती अपनी मर्ज़ी उनपर तुम कभी थोपो नहीं।। 

 हाँ, बार – बार तेरे कहने से हो सके शायद रूक तो जायेंगे,

पर पहले की भांति….

शायद फिर से वो दिल से रिश्ता संग तेरे निभा ना पायेंगे।। 

ऐसी स्थिति में….

शायद ना तो तुम पूरी तरह से ख़ुश रह पाओगे,

और ना ही वो पूरी तरह से कभी ख़ुश रह पाएंगे।।

दोनों ही…. 

अवसादों और निस्पंद ख़ामोशियों के साये में, 

अपना – अपना कीमती वक़्त बितायेगे।। 

खुशियाँ भी देगी जो दस्तक….

ऐसे उधेड़बुन वाले रिश्तों के दरवाज़े पर;

संपूर्णता के लिबास में लिपटी ना होगी कभी।। 

बदलते वक़्त, बदलते हालात भी,

पहले जैसे उन रिश्तों को मजबूती दे ना पायेगें,

अपने साध्वस को….

किसी -न- किसी कसक के साये तले,

एक-दूजे की निगाहों से हर वक़्त ही छिपाते नजर आयेंगे।। 

जो जा रहें हैं छोड़कर, जाने दो  उन्हें रोको नहीं,

ज़बरदस्ती अपनी मर्ज़ीट उनपर तुम कभी थोपो नहीं।। 

कह दिया अलविदा

कह दिया अलविदा हमेशा के लिए, 

उसका जीवनसाथी, 

अपने भरन -पोषण के लिए नहीं गवारा समझा, 

किसी और पर निर्भर होना, 

चुनी राह अपनी बनने आत्मनिर्भर,

किया नही उसने समझौता परिस्थितियों से, 

अपने स्वाभिमान के खातिर, 

लड़ती रही डटकर लगातार, 

खटकती है वो, 

इसलिए कुछ लोगों की आँखों में,

बस उनके अंतस में बैठे इस डर से, 

कहीं वो निकल जाये ना आगे, 

इस पुरुषप्रधान समाज में,

और बना ना ले कहीं,

 वो अपनी एक अमिट सम्मानीय पहचान, 

देने ना लगे सब उसकी मिसालें, 

करने ना लगे समस्त स्त्री जाति अनुकरण उसका,

आ ना जाये कहीं जिससे पुरुष सत्ता खतरे में,

करते हैं संबोधित जिस कारण ही वही लोग, 

उन कलुषित शब्दों से, 

जो व्याख्या करती नहीं उसके सही व्यक्तित्व को, 

पर उसे पड़ता नहीं फर्क उन दूषित शब्दों से, 

सताता है भय,

क्योंकि डरती नहीं वो,

दुनियावालों की झूठी नापाक चोचलेबाजी से,

इसलिए कि जानती है वो, 

तर्क की कसौटियों पर कसे जायेंगे,

जब विचार उसके,

तब वो उतरेगी खरी शत – प्रतिशत, 

फिर भी वो चाहती नहीं बहस में पड़ना,

उनलोगों के साथ, 

क्योंकि जानती है वो, 

जगाया उसे ही जा सकता है जो सोया हुआ है, 

उसे नहीं जो सोने का नाटक कर हो ||

— ©Alfaj_E_Chand (Mood) ✍✍

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“यूपी में का बा?” गीत नेहा सिंह राठौर

आपकी सोच में ताकत व चमक होनी चाहिए

दिवाली पर कविता

दिवाली पर कुछ कविताएं

दिवाली का त्यौहार हो और घर की साज-सज्जा सामग्री, मिठाई, पकवानों, फुलझड़ी, पटाख़ों की बातें ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। घर के हर सदस्य में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। जहां घर के बड़े सदस्य लक्ष्मी-गणेश की पूजा में व्यस्त होते हैं वहीं बच्चे पटाखें और फुलझड़ियाँ को महत्व देते हैं। सभी अपने अपने तरीके से दिवाली की खुशियाँ एक दूसरे में बांटते हैं। मिठाई और उपहार भेंट करने का अच्छा अवसर होता है दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी एक दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ भेंट करते है। लक्ष्मी जी की अपार अनुकंपा हम पर बनी रहे इसके लिए एक नियमित विधि विधान से पूजा होती है। 

दीपों से सजी दिवाली पर कुछ कविताएं :

दिया जलाना है

पहला दिया विश्वास के नाम, 

जिसके बिना ना बने कोई काम। 

एक दिया रिश्तों के नाम, 

हो समर्पण और त्याग परिवार के नाम। 

एक दिया समाज के नाम, 

हो कुरीतियों का विनाश। 

दिया जलाएं निर्धन के नाम, 

झोली में खुशियाँ भरें श्री राम।

एक दिया अंध्यारो के नाम,

रावण बन हर मन में है छुपा।

एक दिया सृष्टि के रचयिता के नाम, 

मिले बराबर न्याय जहां। 

हो सबकी मनोकामना पूरी 

ऐसा दिया साथ जलाएं आज।

रहे अनुकंपा लक्ष्मी-गणेश की, 

ऐसी आस्था के साथ दिया जलाए साथ।।

दिया जले हर धर्म का साथ

दिवाली की सफाई कुछ इस तरह से करना है, 

धूल घर के साथ मन का भी साफ़ करना है,

पुराने गिले-शिकवे को दिल से दूर भगाना है, 

दिल के रिश्तों की डोर से सबको बांधे रखना है,

दिये की रोशनी से घर का हर कोना जगमगाना है, 

दिया जले हर धर्म का साथ, एकता हमें दिखाना है,

ईर्ष्या, द्वेष, क्लेश से दूर मानवता को करना है।।

आज है दिवाली का त्यौहार

खुशियाँ और समृद्धि का त्यौहार, 

आज है दिवाली का त्यौहार, 

लक्ष्मी गणेश के पूजन का त्यौहार, 

कृपा बरसे एश्वर्य, धन की आज।

दिये की रोशनी से दूर हुआ अंधेरा, 

हर्षित मन के साथ दिया सबने जलाया, 

टिमटिमाते तारो संग धरती आज सजी, 

फुलझड़ी, पटाख़ों के संग दिवाली की धूम मची। 

हंसी, ठिठोली में रंजिश सब की मिट गई, 

मिठाइयों की मिठास आपस में जब सबने बांटी, 

मनचाहे उपहार देकर दिवाली आज मनाई, 

खुशियों की सुंदर बेला आज हर घर में आई।।

– Sunita Shaw

कुछ साथी सफ़र में छूट गए

Life Thoughts

नवरात्र में माँ दुर्गा की कविता

नव दुर्गा माँ

माता की आराधना और उपासना की कविता।

नवरात्रि का त्यौहार आते ही माता की आराधना और उपासना में पूरा ब्रह्मांड माँ के स्वागत में जुट जाते है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ हमारे घर आगमन लेती है और इसी वजह से हम सब अपने घर की साफ-सफाई कर माता की पूजा में जुट जाते हैं। इस अवसर पर घर के द्वार पर फूल की माला और तोरण लगाकर माता का स्वागत करते हैं और नौ दिन माता के नव रूपों का स्मरण कर उनकी आराधना करते हैं उनकी पूजा करते हैं। माता के नव रूप का जिनकी पूजा हम करते हैं उनके नाम है – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।

माता के नव रूपों का वर्णन करती कुछ कविताएं –

नवरात्रि में पूजे भक्तजन नव दुर्गे का हर स्वरूप।

नव रूप की महिमा सुनकर नवरात्रि का त्योहार मनाए सब।।

हाथ कमल, त्रिशूल धारण ‘शैलपुत्री’ के दर्शन कर। 

योगीजन तृप्त हुए नवरात्र के प्रथम आगमन पर।।

हाथ कमण्डल, जप की माला भव्य ज्योतिर्मय बना ‘ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप।

करें उपासना जो जन माता की अनंत फल प्राप्त करें वह।।

अर्धचंद्र मस्तक पर शोभे, वाहन सिंह सवार रहें। 

नाम ‘चंद्रघण्टा’ का जो ले परम शांति और कल्याण मिलें।।

देवी ‘कुष्माण्डा’ के चरणों में लौकिक पारलौकिक सुख मिलें।

कर उपासना चौथे दिन माँ का भव सागर से पार करें।।

कमल आसन पर विराजमान ‘पद्मासन’ देवी की जय जय।

स्कंद कुमार की माता बनकर ‘स्कंदमाता’ का स्वरूप बना।।

अमोघ फल दायिनी माँ ‘कात्यायनी’, कात्यायन की पुत्री बनी। 

अलौकिक तेज से युक्त हुआ माता की जो आराधना किया।।

ग्रह बाधा को दूर करें दुष्टों का विनाश करें। 

माँ ‘कालरात्रि’ की आराधना सातवें दिन जो जन ध्यान करें।।

‘महागौरी’ का ध्यान करें जन माँ सबका कल्याण करें।

रोग,दोष, क्लेश मिटाकर माता सबका उद्धार करें।।

सभी सिद्धियों को पाकर ‘सिद्धिदात्री’ माता कहलाती।

करें उपासना जो भक्तजन माँ हर मनोकामना पूर्ण करें।।

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी

नव दुर्गा माँ शक्ति जननी हर घर में आज आई है।

नवरूप के स्वागत में सगर विश्व ज्योत जलाई है।।

हर विपदा को हरने माता आज धरती पर आई है।

आंचल फैलाए रंक और राजा सब ने शीश झुकाई है।।

सबकी झोली भरने वाली सिंह पर सवार होकर आई है।

जय-जय गान करती धरती, कण-कण में उल्लास समाई है।।

ममता से सजी मुरत नव दुर्गा माँ स्वर्ग से उतर कर आई है। 

दशो भुजाओं से मानस का उद्धार करने माता आई है।।

भजन, कीर्तन, भोग आरती की थाल सबने सजाई है। 

महादेव के साथ माता आज साक्षात दर्शन देने आई है।।

Supriya Shaw

आज़ादी का दिन आया

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

कोरोना काल की कविता

स्वतंत्रता दिवस कविता कोश

आज़ादी का दिन आया

आज़ादी का दिन आया,

लाल किले पर ध्वज फहराया, 

शोभा देख किले कि आज, 

हर चेहरे पर मुस्कान है छाया।

राष्ट्रगान से झूमा देश, 

जब तिरंगा किले पर लहराया, 

तोपों की देकर सलामी, 

जन-गण का गान सब ने गाया।

फूलों की वर्षा किले पर, 

ढोल नगाड़ों के संग बरसाया, 

वीर शहीदों की कुर्बानी, 

आज़ादी का सुख बनकर बरसाया।

जाति धर्म का भेद ना दिखता, 

अखंड भारत का पाठ पढ़ाता, 

हर युवा एक स्वर में कहता, 

भारत माता की जय, भारत माता की जय।।

भारत की शान

अमर हुए उन वीरों की 

कुर्बानी ना व्यर्थ करेंगे।

हम भारत की शान बन कर, 

अपना सर्वस्व कुर्बान करेंगे।।

Supriya Shaw…

शीर्षक — तिरंगा हमारा 

हमारा आन तिरंगा है,, 

हमारा शान तिरंगा है,, 

हमारी जान तिरंगा है।। 

हमारा अरमान तिरंगा है,, 

हमारा जहान तिरंगा है,, 

हमारी पहचान तिरंगा है।। 

हमारा  इमान तिरंगा है,, 

हमारा अभिमान तिरंगा है,, 

हमारा मुकाम तिरंगा है।। 

हमारा बलिदान तिरंगा है,, 

हमारा पयाम तिरंगा है,, 

हमारा एहतराम तिरंगा है।। 

तिरंगें से ही है हमारा सबकुछ,, 

तिरंगा ही है हमारे लिए सबकुछ।। 

जो आंख इसकी ओर उठायेगा,, 

खाते हैं भारत माता की सौगंध,, 

वो गद्दार वीर सपूतों के हाथों बच ना पायेगा।। 

सिर पर अपने कफ़न बांध लिया है हमनें,, 

हरदम इसकी सुरक्षा करने का ठान लिया है हमनें।। 

जाये तो चले जाये प्राण भले ही,, 

है इस बात का अब कोई गम नहीं,, 

हम है भारती माता की संतान,, 

कभी भी किसी से हम कम नहीं।। 

है हमें अपना तिरंगा जान से भी प्यारा ,, 

इस पर न्योछावर है हमसबका ये जीवन सारा ।।

— ©Alfaj_ E_ Chand (Moon) ✍✍

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

15 अगस्त 2021 को भारत देश की स्वतंत्रता को पूरे 75 साल पूरे हो जाएंगे। उन वीरों को हम नमन करें, स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता हिंदी में ।

आज़ादी की लहर

आज़ादी की लहर

आज़ादी का परचम तब लहराया था, 

जब अनगिनत माताओं के लाल ने रक्त बहाया था।

हर रक्त का एक-एक क़तरा आज बना वरदान है, 

आज़ादी की हर साँस पर उनकी कुर्बानी का नाम है।

गाथाएं सुर वीरो की जब-जब दोहराई जाएगी, 

जाने कितने वीरो के सीनो में देशभक्ति की ज्योत जलेगी।

अमर शहीद भगत सिंह जैसे वीरो की कहानी, 

हर बच्चो के सीने में हर रोज दोहराई जाएगी। 

अमर रहेंगे हरदम ये तिरंगे से इनकी याद जब आएगी,

आज़ादी की लहर बनकर सबकी नज़रें तिरंगे पर ठहर जाएगी।।

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान, जीवन मिला वरदान, 

कृतज्ञ हम उन सुर वीरों की, 

आज़ादी का परचम जिन्होंने लहराया है।

अमर रहेगा नाम उनका, 

हर भारतवासी के सीने में।

बच्चे बूढ़ों की ज़ुबानी उनकी गाथाएं दोहराएंगे, 

आने वाले हर पीढ़ी को ये सबक ज़रूर सिखाएंगे।

मेरा वतन

मेरा वतन

जहां है शांति और अमन का राज, 

जहां चारों धाम का होता मिलाप, 

बसते जहां हर धर्म के वासी, 

हर भाषा का अनोखा मेल होता जहां,

वह है मेरा वतन।।

गंगा, जमुना, सरस्वती का अनोखा संगम होता जहां, 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे का दर्शन साथ करते यहां, 

तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे अनगिनत कवियों की,

कविताओं में रचा बसा मिलता मेरा वतन, 

खेत खलियानों से सजी-धजी, 

धरती उपजाऊ मिलती जहां, 

वह है मेरा वतन।।

Supriya Shaw….

कोरोना काल की कविता

कविता – पिता का दायित्व