होली का त्योहार रंगों का त्योहार है। पकवानों का त्यौहार है, हर नफरत और मनमुटाव को भूलकर एक होने का त्यौहार है, और हमारी सभ्यता, संस्कृति का त्यौहार है, बूढ़े, बच्चे, जवान हर किसी को रंग लगाकर प्यार और आशीर्वाद बाँटने का त्यौहार है। इसी प्यार और स्नेह के त्यौहार पर एक सुंदर कविता –
जग जननी है तू , जग पालक है तू हर पग रोशन करने वाली है तू माँ, बेटी, बहन, पत्नी है तू जीवन के हर सुख-दुख में शामिल है तू शक्ति है तू, प्रेरणा भी है तू नारी हर घर की शोभा है तू ।।
दुख को दूर कर खुशिया बिखेरे तू आँचल की ममता लिए नैनो की आंसू पिए है तू शक्ति है तू हर नर की शोभा है तू हर घर की आई विपदा जब-जब धरती पर बनी दुर्गा, कभी काली बनी तू नारी हर घर की शोभा है तू।।
By – Vikash Kumar Digital Marketing Stretegist LinkedIn
दिवाली का त्यौहार हो और घर की साज-सज्जा सामग्री, मिठाई, पकवानों, फुलझड़ी, पटाख़ों की बातें ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता। घर के हर सदस्य में एक अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। जहां घर के बड़े सदस्य लक्ष्मी-गणेश की पूजा में व्यस्त होते हैं वहीं बच्चे पटाखें और फुलझड़ियाँ को महत्व देते हैं। सभी अपने अपने तरीके से दिवाली की खुशियाँ एक दूसरे में बांटते हैं। मिठाई और उपहार भेंट करने का अच्छा अवसर होता है दोस्त, रिश्तेदार, पड़ोसी एक दूसरे को उपहार और मिठाइयाँ भेंट करते है। लक्ष्मी जी की अपार अनुकंपा हम पर बनी रहे इसके लिए एक नियमित विधि विधान से पूजा होती है।
नवरात्रि का त्यौहार आते ही माता की आराधना और उपासना में पूरा ब्रह्मांड माँ के स्वागत में जुट जाते है। माना जाता है कि नवरात्रि में माँ हमारे घर आगमन लेती है और इसी वजह से हम सब अपने घर की साफ-सफाई कर माता की पूजा में जुट जाते हैं। इस अवसर पर घर के द्वार पर फूल की माला और तोरण लगाकर माता का स्वागत करते हैं और नौ दिन माता के नव रूपों का स्मरण कर उनकी आराधना करते हैं उनकी पूजा करते हैं। माता के नव रूप का जिनकी पूजा हम करते हैं उनके नाम है – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
माता के नव रूपों का वर्णन करती कुछ कविताएं –
नवरात्रि में पूजे भक्तजन नव दुर्गे का हर स्वरूप।
नव रूप की महिमा सुनकर नवरात्रि का त्योहार मनाए सब।।
हाथ कमल, त्रिशूल धारण ‘शैलपुत्री’ के दर्शन कर।
योगीजन तृप्त हुए नवरात्र के प्रथम आगमन पर।।
हाथ कमण्डल, जप की माला भव्य ज्योतिर्मय बना ‘ब्रह्मचारिणी’ का स्वरूप।
करें उपासना जो जन माता की अनंत फल प्राप्त करें वह।।
अर्धचंद्र मस्तक पर शोभे, वाहन सिंह सवार रहें।
नाम ‘चंद्रघण्टा’ का जो ले परम शांति और कल्याण मिलें।।
देवी ‘कुष्माण्डा’ के चरणों में लौकिक पारलौकिक सुख मिलें।
कर उपासना चौथे दिन माँ का भव सागर से पार करें।।
कमल आसन पर विराजमान ‘पद्मासन’ देवी की जय जय।
स्कंद कुमार की माता बनकर ‘स्कंदमाता’ का स्वरूप बना।।
अमोघ फल दायिनी माँ ‘कात्यायनी’, कात्यायन की पुत्री बनी।
अलौकिक तेज से युक्त हुआ माता की जो आराधना किया।।
ग्रह बाधा को दूर करें दुष्टों का विनाश करें।
माँ ‘कालरात्रि’ की आराधना सातवें दिन जो जन ध्यान करें।।
‘महागौरी’ का ध्यान करें जन माँ सबका कल्याण करें।
रोग,दोष, क्लेश मिटाकर माता सबका उद्धार करें।।
सभी सिद्धियों को पाकर ‘सिद्धिदात्री’ माता कहलाती।
करें उपासना जो भक्तजन माँ हर मनोकामना पूर्ण करें।।
नव दुर्गा माँ शक्ति जननी
नव दुर्गा माँ शक्ति जननी हर घर में आज आई है।
नवरूप के स्वागत में सगर विश्व ज्योत जलाई है।।
हर विपदा को हरने माता आज धरती पर आई है।
आंचल फैलाए रंक और राजा सब ने शीश झुकाई है।।
सबकी झोली भरने वाली सिंह पर सवार होकर आई है।
जय-जय गान करती धरती, कण-कण में उल्लास समाई है।।
ममता से सजी मुरत नव दुर्गा माँ स्वर्ग से उतर कर आई है।