Poem

स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर बाल कविता

15 अगस्त 2021 को भारत देश की स्वतंत्रता को पूरे 75 साल पूरे हो जाएंगे। उन वीरों को हम नमन करें, स्वतंत्रता दिवस पर बाल कविता हिंदी में ।

आज़ादी की लहर

आज़ादी की लहर

आज़ादी का परचम तब लहराया था, 

जब अनगिनत माताओं के लाल ने रक्त बहाया था।

हर रक्त का एक-एक क़तरा आज बना वरदान है, 

आज़ादी की हर साँस पर उनकी कुर्बानी का नाम है।

गाथाएं सुर वीरो की जब-जब दोहराई जाएगी, 

जाने कितने वीरो के सीनो में देशभक्ति की ज्योत जलेगी।

अमर शहीद भगत सिंह जैसे वीरो की कहानी, 

हर बच्चो के सीने में हर रोज दोहराई जाएगी। 

अमर रहेंगे हरदम ये तिरंगे से इनकी याद जब आएगी,

आज़ादी की लहर बनकर सबकी नज़रें तिरंगे पर ठहर जाएगी।।

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान

भारत मेरी शान, जीवन मिला वरदान, 

कृतज्ञ हम उन सुर वीरों की, 

आज़ादी का परचम जिन्होंने लहराया है।

अमर रहेगा नाम उनका, 

हर भारतवासी के सीने में।

बच्चे बूढ़ों की ज़ुबानी उनकी गाथाएं दोहराएंगे, 

आने वाले हर पीढ़ी को ये सबक ज़रूर सिखाएंगे।

मेरा वतन

मेरा वतन

जहां है शांति और अमन का राज, 

जहां चारों धाम का होता मिलाप, 

बसते जहां हर धर्म के वासी, 

हर भाषा का अनोखा मेल होता जहां,

वह है मेरा वतन।।

गंगा, जमुना, सरस्वती का अनोखा संगम होता जहां, 

मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे का दर्शन साथ करते यहां, 

तुलसी, कबीर, सूरदास जैसे अनगिनत कवियों की,

कविताओं में रचा बसा मिलता मेरा वतन, 

खेत खलियानों से सजी-धजी, 

धरती उपजाऊ मिलती जहां, 

वह है मेरा वतन।।

Supriya Shaw….

कोरोना काल की कविता

कविता – पिता का दायित्व

रक्षाबंधन पर हिंदी कविताएं

छुटकी अपने भाई की

रक्षाबंधन पर हिंदी कविताएं

छुटकी अपने भाई की, थाल सजाएं राखी की, 

प्यार और स्नेह से, ली बलाएं भाई की।

चंदन, रोली, हल्दी का, तिलक लगाई माथे पर, 

आरती लेकर राखी बांधी, भाई की कलाई पर।

भाई का स्नेहिल मन, भाव विभोर हो उठा,

बहना का उत्साह देख, ममता से भर गया ह्रदय।

भाई प्यार का तोहफ़ा देकर, बहना का मान किया, 

सर पर हाथ रख कर छुटकी को, सौ सौ बार आशीर्वाद दिया।

भाई बहन का प्यार, कभी ना कमज़ोर होने देता,

कच्चा है यह धागा, प्रेम के जज़्बातो से गहरा हुआ।

मेरी प्यारी बहना

मेरी प्यारी बहना

यह रक्षा-बंधन का त्यौहार, 

कभी ना भूलूंगा मैं, 

जहां रहूँ जिस हाल में रहूँ,

इस दिन आकर राखी बंधवा लूंगा,

वचन है आज के दिन का, 

कभी ना होगा प्यार कम, 

चाहे ज़िंदगी में आ जाए कोई गम।

शक्ति कच्चे धागे की राखी

शक्ति कच्चे धागे की राखी

कच्चे धागे का यह रिश्ता, प्रेम, स्नेह से बना है,

हर रिश्ते से प्यारा, भाई बहन का रिश्ता बना है।

राखी के दिन भाई की, याद आ जाती है,

वो दूर मुझसे है, सोच कर आंखे भर आती है।

भाई-बहन का प्यार

भाई-बहन का प्यार

अटूट बंधन से बंधा रहे, भाई-बहन का प्यार, 

हर बहन मांगे इस दिन, दुआ हजारों बार।

कच्चे धागे की डोर, कभी ना हो कमज़ोर,

लेती वचन उम्र भर का, रक्षा करने की भाई से।

कोरोना काल की कविता

जो सबक कोरोना दे दिया, किसी क़िताब में नहीं मिला

जो सबक कोरोना ने दिया वो ज़िंदगी के किसी क़िताब में नहीं मिला,

जर्जर होते गए रिश्ते ऑंसू पोछने वालो की आहट ना मिली थी कहीं।

ऑंखें दरवाज़े पर आस लगाए ताकती रही, कंधा देने वाला ना कोई दिखा,

अपनों का साथ छूटता गया, साॅंसे अकेले दम तोड़ती रही।

इंसानियत कहीं मरती दिखीं, कहीं मोक्ष देता भगवान् मिला,

अपना नहीं था पर वो, सफेद कपड़े हर किसी को पहनाता दिखा। 

श्मशान बना गली-गली, राख ना उठाने वाला अपना मिला, 

वह कौन था जो राख मटकी में भर नाम उस पर लिखता रहा।

मिट गया निशां, खाली पड़ा घर-बार, दरवाज़े पर ना कोई अपना खड़ा दिखा, 

इस सफ़र पर ना राही, ना राहगीर था, अकेला चलता भीड़ में हर अपना दिखा।

ना होश था ख़ुद का, ना ज़िक्र किसी का होता दिखा, 

हर शख्स यहाॅं खौफ़ में, मौत से जूझता दिखा।

बुझ गया चिराग कई, अंधेरा घना सामने हुआ, 

क्या कहें इस काल में, काल बन निगलता रहा।

समय का कहर

समय का कहर

हर किसी के दिल में एक आग सी जल रही है।

हर रोज कभी सुलगती कभी बुझती जा रही है।।

खौफ है दहशत है मुस्कुराने की कोशिश भी है।

अपनों के बिछड़ने की ख़बर हर रोज मिल रही है।।

कोशिश चल रही है समय को मात देने की।

हर पहल पर धड़कने सबकी तेज हो रही है।।

ख़ामोश हर शहर है बोलती हर नज़र है।

हर रोज ज़िंदगी नया दांव चल रही है।।

पता है सब

हर बात में कहना “पता है सब”

मगर क्या सच में पता है सब?

जीवन के इस झूठ को अब तक स्वीकारा ना कोई, 

अहं रोके रखा या आदतों  ने जड़ बना ली मन में, 

ऐसे अहंकार को क्या जगह मिली समाज में!

काश समझ आती तो बात कुछ और होती, 

स्वार्थ की जगह भी “पता है सब” में ना सिमट जाती, 

यही है सच! कहते-कहते मर मिटता है इंसान, 

कभी रोष में, कभी हठ में, राग बिलापता है इंसान, 

ख़ुद को भ्रम की गहराई में क्यूँ डुबोता है इंसान, 

पूछे कोई जो मुझसे क्या है इसका कोई जवाब, 

“पता नहीं” कह कर शायद मैं भी सोचू बार-बार।।

– Supriya Shaw…✍️🌺

कविता

कहानी

कविता – वह पल दोहरा लेती हूँ

कैसे ना लिखूॅं

आँखें बंद करके

वह पल दोहरा लेती हूँ,

ज़िंदगी जीने की 

वज़ह ढूंढ लेती हूँ,

हर ख़्वाब को 

हक़ीक़त बना कर 

ज़िंदगी में शामिल कर लेती हूँ,

ज़िद समझो शायद 

पर कोशिश है मेरी,

हर किरदार को निभाने का 

हुनर ढूंढ लेती हूँ,

जुगनू नहीं मैं 

जो कुछ पल की रोशनी दे 

दम तोड़ देती है,

मैं वो सितारा हूँ

जो अपनी रोशनी से 

ख़ुद जगमगाती हूँ।।

कैसे ना लिखूॅं

कैसे ना लिखूॅं मन की बातें,

जब क़लम हाथ में लेती हूॅं, 

वह ख़ुद ब ख़ुद चलती है,

मैं कुछ नहीं कहती…

जो कहती है मेरी क़लम कहती है,

कभी अर्थहीन कहती है,

कभी जज़्बातों में लिपटी रहती है,

कभी झूठ, कभी सच कहती है,

जो कहती है मेरी क़लम कहती है, 

मैं कुछ नहीं कहती…

तुमसे मिलकर

तुमसे मिलकर दिल को यह एहसास हुआ,

ज़िंदगी से ख़ूबसूरत तुमसा हमराज़ मिला।

अनकही बातों को समझे ऐसा राज़दार मिला,

प्यार से बना रिश्ते को नाम मिला।

हमारी धड़कनों पर तुम्हारा अधिकार हुआ,

दिल के तारो में प्यार का झंकार हुआ।

तुमसे मिलकर मुझे ख़ुद से प्यार हुआ, 

अटूट बंधन मन पर, तन पर तुम्हारा अधिकार हुआ।

कहानी की कहानी 

कोरोना की कहानी

कोरोना संक्रमण का डर

कविता – पिता का दायित्व

परिवार रुपी टहनियों का, भरण पोषण करते जड़ रूपी पिता, 

इनके बिना ना हरा-भरा लगता है घर संसार हमारा। 

हर दायित्व निभाते रहते, शिकन ना चेहरे पर आने देते,

हमारी खुशियों की खातिर, अपना सर्वस्व कुर्बान है करते।

प्यार, त्याग और समर्पण से बना व्यक्तित्व है इनका , 

सबके मन में पिता का दर्ज़ा भगवान् से ना कम है। 

छत्रछाया में इनके गुजरता हमारा जीवन सदा सुरक्षित, 

हाथ पकड़ कर मार्गदर्शन कर, मंज़िल तक पहुंचाते हैं पिता।

पिता एक मार्गदर्शक

*पिता* अपने आप में गंभीर और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उभर कर आता है,

प्यार, सम्मान और आदर से भावविभोर हृदय हो जाता है।

जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर और चेहरे पर मुस्कान दिखता है,

दिन-रात हो, मौसम कोई हो, परिवार की ख़ातिर काम पर जाना होता है।

सबके दुख को सुख में बदलना इनको बखूबी आता है,

अपनी दर्द सीने में दबा कर ख़ुश रहना भी आता है।

पिता की छत्रछाया में जीवन जितना बीत जाता है,

वहीं किताब बनकर पूरा जीवन मार्गदर्शक बन जाता है।।

कहानी – रात की बात

कहानी की कहानी “दृश्य”, “दृष्टि” और “दृष्टिकोण”

कहानी – कोरोना संक्रमण का डर

आपके हौसले, इरादे, आत्मविश्वास, दुनियादारी, प्रेम और समर्पण पर कविता

आपके सपने और आत्मविश्वास

लेखक के क़लम द्वारा पाठकगण से एक गुज़ारिश

नज़र

दुनिया आपको किस नज़र से देखती है, 

या फिर

आप दुनिया को किस नज़र से देखते हैं, 

ये बात बिल्कुल भी मायने नहीं करता,

फर्क सिर्फ इस बात से पड़ता है,

कि आप स्वयं को किस नज़र से देखते हैं। 

जब तक आप अपनी नज़र में हैं,

तब तक दुनिया की कोई भी ताकत,

आपके इरादों को, हौसलों को, 

आपके सपनों को, आपके आत्मविश्वास को,

चाहकर भी नहीं तोड़ सकती, 

चाहे वो कितनी भी कोशिश कर लें। 

लेकिन वही जब आप पूर्णतः

अपनी ही नजरों से ही गिर जाएंगे ना,

तब आपके जीवन रुपी नौका को, 

मझधार में डूबने से कोई नहीं बचा सकता, 

आपको डूबने से बचाने की, 

चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर लें।

(इसलिए आप – हम सब हमेशा ही अपने नजरों में रहें । ऐसा करने पर ही हम, आप सब संघर्ष रुपी इस जीवन में सदैव अपनी – अपनी विजय – पताका लहरा पाएंगे, हर मुसीबतों, हर बाधाओं के ऊपर और लिखेंगे अपनी कामयाबी की दास्ताँ जिसकी आवाज सदियों सदियों तक रह पायेंगी इस नश्वर संसार में।)

यादों के खंडहर

यादों के खंडहर में कैद हैं, 

जीवन के अनगिनत लम्हें,

जो लौटकर आते नहीं कभी।।

हाँ, वो जो अनगिनत लम्हें हैं ना,

वो कुछ खुशी के तो कुछ गम के हैं,

हाँ, वो ही बन गये हैं अतीत ।। 

आ जाते हैं उभरकर कभी – कभी,

आंखों की गहराइयों में,

वो लम्हें हकीकत नहीं, प्रतिच्छाया बनकर।। 

होता है जब कभी ये चंचल मन स्थिर कभी,

तन्हाई और अकेलेपन में खुद को पाकर,

हंस देता है कभी-कभी, रो देता है कभी-कभी।। 

और निभाती है तब साथ उस चंचल मन का,

बस सिर्फ आंखें, दिल, और ओंठ ही।।

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को 

प्राप्त कर लेती है अमरत्व को,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

कर देती है स्वयं को समर्पित, 

जो समस्त संसार की खुशियों में, 

अपनी निजी खुशियों का दामन त्याग कर, 

और बन जाती है उदाहरण,

समस्त प्रेम कहानियों के लिए,

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

होती है बेहद ख़ूबसूरत,

कुछ प्रेम कहानियाँ,

जो प्राप्त कर लेती है अपनी मंज़िल. 

और बिखेर देती है चहुँ ओर खुशियाँ, 

अपनी निजी खुशियों के रंगों में रंग कर, 

और बन जाती है उदाहरण, 

समस्त प्रेम कहानियों के लिए, 

सदियों तक इस नश्वर संसार में।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

Kids Short Stories

Life Thoughts 

Motivational Poem

कविता । कोरोना महामारी में इंसान की उम्मीद ना टूटे कभी

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना

चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना, दिल में आस जलाये रखना,

माना परिस्थितियाँ आज विकट है, पर ये शाश्वत नहीं । 

वक्त हमेशा रहता नहीं एक जैसा, ये वक्त भी बदल जायेगा,

खुशियों भरा सवेरा फिर से आयेगा, बस धैर्य तुम अपना बनाये रखना। 

ये महामारी रूपी संकट के बादल जो छाए हैं चहुँ ओर छंट जायेंगे,

क्या हुआ जो अंधियारा घना छाया है , अंधियारों के बीच सितारे चमकते नजर आयेंगे।

धैर्य तुम अपना ना खोना कभी

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना। 

राहों में ख़ुशी मिले या ग़म आत्मसंयम की पतवार हर पल थामे रखना , 

जज़्बात रुपी मझधार में हमेशा उलझ कर तुम ना रह जाना। 

लहरों के विपरीत होता चलना कभी भी बेहद आसान नहीं, 

करके अपने अंतर्मन की शक्तियों पर विश्वास बस निरंतर आगे बढ़ते जाना। 

डर के साये से बाहर निकल कोशिशें बारंबार करते जाना, 

पर तुम हार ना मानना कभी, चाहे हो जाए क्यों ना कुछ भी। 

प्रयासों का कारवां रहे जब रहे संग, साहिल तुझे अपना मिल पाएगा तभी,

मत होना निराश बस रख आस, कभी साकार हो जायेंगे सपने सभी। 

मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई, जो कभी ज़िंदगी की नाव, 

धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना।

अंजाम की फ़िक्र

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे ! बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

आये सफर-ए-जीवन में मुश्किलें कितनी भी, घबराकर उनसे ना बदलना राहें।

हार में भी तुम्हें अपनी जीत मिलेगी, हमेशा उनसे नयी-नयी सीख मिलेगी।

कोशिशें तुम अथक करना, अंधेरे में भी सदा रोशनी भरना।

मिलेगी मंज़िल एक दिन विश्वास रखना, अंतर्मन में हमेशा ये आस रखना।

अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

उत्तराखंड की ऐपण कला

स्त्री विषयी कविता

Food Recipes

स्त्री विषयी कविता

नारी एक कहानी

Naari

न दफ़न होती कोख में, लड़की कभी,

  जो लड़का होती,

न मारी जाती, न जलाई जाती ज़िंदा,

कोई राज दुलारी, कहीं वो बहुरानी, न पत्नी

बस इंसान होती।

न लूट लेता कोई अस्मत उसकी,

जो वो बेटी अपनी, ना पराई होती,

ना छली जाती प्रेमी से कभी वो प्रेयसी,

जो वो प्रेम नारी बस यूँ ही,

बना दो झाँसी की रानी, 

या बंदूके हाथों में थमा दो,

वहशियों को वहशियत की तुम,

हाँ मौके पर सज़ा दो।

घर में चूड़ी से नहीं होगा,

अब इनका गुजारा,

लड़ मरे अस्मत की खातिर,

ज्वाला वो दिल में जला दो।

बेड़ियाँ कुछ यूँ हाँ खोलो,

बेटो सी नहीं तू बोलो,

तुझमें बेटो से ज़्यादा है शक्ति,

उनको तुम इतना जता दो।

तू भवानी, तू ही काली,

तुम उन्हें दुर्गा बना दो,

तुम उन्हें दुर्गा बना दो।।

वजूद स्त्री हो जाना

सच कहे तो स्त्री होना इतना आसान नहीं होता,

हर पल खुद को खोना होता है,

कभी बेटी बन के,

तो कभी पत्नी, बहु, तो कभी माॅं बन के, 

हर पल खुद को खोना होता है,

खुद ही खुद का वजूद मिटाना होता है,

क्या इतना सरल होता है खुद के वजूद को खो देना,

अगर इतना ही सरल होता है,

तो क्यों नहीं खो देते तुम अपने ही वजूद को,

क्यों एक पल सपने दिखाकर दूसरे ही पल छीन ले जाते हो,

कभी जिम्मेदारी के लिए, कभी मान – सम्मान के लिए,

सबको अपने से ऊपर और खुद को नींव बनाना पड़ता है,

अपने ही वजूद को मिटाना पड़ता है,

सपनों को छुपाना पड़ता है,

खुद को खोना पड़ता है,

सबकी खुशी के लिए खुद को नींव बन जाना पड़ता है। 

क्या अब भी लगता है? 

इतना सरल होता है स्त्री हो जाना?

क्या इतना सरल होता है खुद के वजूद को नाम देना?? 

कद्र करना सिखा दिया – कोरोना का समय

मेरी अपनी पहचान

रोटियाॅं

रोटियाॅं

माँ को जब देखती हूॅं चूल्हे पर रोटियाॅं सेकते हुए, नजर चली जाती है उसकी उंगलियों पर, जो शायद पक गई है, चूल्हे की ऑंच सहकर बरसो से, तो सोचती हूॅं, कि शायद उस विश्व रचयिता की उंगलियाॅं भी, इन उंगलियों के सामने कोई महत्व नहीं रखती। 

तो दोस्तों  रोटियाॅं के  ऊपर एक कविता प्रस्तुत करने जा रही हूॅं….। एक नज़र पढ़ लीजियेगा। 

कभी एक वक़्त भी नसीब नहीं होती है रोटियाॅं,

कभी कभी चार वक़्त भी मिल जाती है रोटियाॅं,

कभी किसी के दर्द से निकली हुई रोटियाॅं,

कभी भूख से पीड़ित जान ले लेती है रोटियाॅं,

कभी अमीर के घर की कूड़ेदान हो जाती है रोटियाॅं,

कभी माॅं के ऑंचल से लिपटी हुई रोटियाॅं,

कभी बाप के पसीने से भीगी हुई रोटियाॅं,

कभी यौवन के श्रृंगार रची हुई रोटियाॅं,

कभी बुढ़ापे के डर से कांपती रोटियाॅं,

कभी सावन के फुहार बलखाती रोटियाॅं,

कभी रेत की तरह फिसल जाती रोटियाॅं,

कभी सम्मान के खातिर बिक जाती है रोटियाॅं,

कभी गुनाह करके भी ऑंखे दिखाती है रोटियाॅं,

कभी ज़िंदगी के वजूद के लिए मिट जाती है रोटियाॅं,

आखिर में निवाला बनकर खत्म हो जाती है रोटियाॅं। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग


कविता – प्रेम विरह कविता

कहानी

कविता – प्रेम विरह कविता

इश्क़ के नाजुक डोर से

इश्क़ के नाजुक डोर से

बाॅंध लो तुम हमें भी आज अपने इश्क़ के नाजुक डोट से, 

खुशियाँ हम भी भरेंगे, तेरे जीवन के दामन में अपनी ओर से।

तेरे लबों पर लाना है हमें भी एक प्यारी – सी मुस्कुराहट,

 तुम तक पहुॅंचने ना देंगे, हम कभी कोई ग़म की आहट।

तेरे परेशां दिल को पहुँचाना है अब हमें भी राहत, 

जन्मों- जन्मों तक करें हम, बस एक तेरी ही चाहत।

बाॅंध लो तुम हमें भी आज अपने इश्क़ के नाजुक डोर से, 

खुशियाँ हम भी भरेंगे, तेरे जीवन के दामन में अपनी ओर से।

Best heart touching love shayari

भारतीय संस्कृति और वैलेंटाइन सप्ताह

गुस्सा भी नुकसानदायक होता है

एक सपना जो हर किसी भारतीय के आँख में पल रहा है

मेरा ये ज़ालिम दिल चाँद को चूमने की ख्वाहिश रखता है

मेरा ये जालिम दिल हर पल बस चाँद को चूमने की ख्वाहिश रखता है, 

उसके इश्क़ की खुशबू में अपने आपको खोने की आजमाईश रखता है, 

उसकी शीतलता के आगोश में कुछ हसीन सपने बुनने की फरमाइश रखता है,

पता है मुझे, इश्क -ए महताब शायद नहीं हमारी क़िस्मत में,

फिर भी बन चकोर एकटक उसे और उसकी खुबसूरती को हर वक़्त निहारना चाहता है, 

रजनीगंधा – सी बनकर उसकी सुनहरी यादों में हर पल बस महकना चाहता है।

संवरती हूॅं

संवरती हूॅं

ओ मेरे रांझणा!

तेरे उदास से मायूस ऑंखों में असीम खुशियाँ झलकाने के लिए, 

तेरे सुनहरे यादों की दरिया में सराबोर ही नित्य – प्रति संवरती हूँ मैं,

तेरे गहरे अथाह प्रेम की मनोरम महक से हर पल ही निखरती हूँ  मैं,

यूँ तो काजल और कुमकुम अक्सर ही मेरी ख़ूबसूरती को और भी बढ़ा देती है ,

पर तुम्हारी मौजूदगी मेरी उस ख़ूबसूरती में भी हर बार चार चाँद लगा देती है।

तेरा यूॅं शर्माना

मुझे देखकर हर दफा दाँत तले अपनी उंगली दबा तेरा ये शरमाना, 

दुपट्टे के ओट तले अपना चेहरा, चाहत भटी मेरी निगाहों से छिपाना, 

अपनी प्यारी-सी मुस्कान से हमेशा ही हमें बरबस अपनी ओर लुभाना, 

अपनी खुशबू बिखेरते हुए मेरे करीब से झटपट तेरा भाग जाना, 

उफ्फ तेरी ये अदा मेरे मासूम दिल पर छुरी चला जाती है,

है तुझे भी इश्क़ हमसे, इसका अहसास हमें दिला जाती है।।

ये दिल

ये दिल

ये दिल इतना बेदर्द क्यों है? 

जो हर ग़म को ख़ुद में छिपाता है,

हर दर्द को सीने में दफनाता है, 

इतना क्यों ख़ुद को तड़पाता है? 

चाह कर भी कुछ ना किसी को बताता है, 

आखिर ये दिल इतना बेदर्द क्यों है? 

लोगों का दामन जब इसे अकेला छोड़ जाता है, 

तन्हाई भी तब इसे अंदर तक तोड़ जाता है। 

उस पर ऑंसू इतना बहाता है, 

दर्द को छिपाए छिपा नहीं पाता है, 

ये हद से ज्यादा जब घबराता है, 

मन भी कुछ समझ नहीं पाता है। 

जाने क्या पता इसकी क्या मजबूरी है? 

किस बात के लिए खुद की मंजूरी है? 

जो हर राज़ को सभी नजरों से बचाता है, 

जो हर दर्द को सीने में दबाता है। 

आखिर दिल इतना बेदर्द क्यों है?

तेरे प्रेम में बस एक तेरे ही प्रेम में

मेरी नजरों के सामने यूँ ही बैठे रहो तुम बिल्कुल गुपचुप होकर, 

 देखता रहूँ बस तुझे एकटक मैं अपनी सुध – बुध खोकर । 

होश में लाने भी ना पाये हमें दुनिया की कोई भी फिजूल बातें, 

तेरी ही बस एक तेरी ही पनाहों में गुजर जायें मेरी हर एक राते । 

तेरे प्रेम में बस एक तेरे ही प्रेम में मैं मस्त मलंग बन जाऊँ, 

तू मेरी हीर और मैं  ; मैं  मैं तेरा रांझा बन जाऊँ । 

मेरी नजरों के सामने यूँ ही बैठे रहो तुम बिल्कुल गुपचुप होकर, 

 देखता रहूँ बस तुझे एकटक मैं अपनी सुध – बुध खोकर ।

लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)

नालंदा, बिहार

कविता – लो बसंत का मौसम आया

Usha Patel

संघर्ष कर

प्रेरणादायक विचार

बसंत तुम संग,

आयी है छटा बिखेरे,

मधुरस सरसों के फूल में,

फिर अमृत बोली बोल रही,

कोयलिया बगिया के आड़ से,

एक डाल पर बैठी गौरैया के,

कानों में कुछ कहना है,

ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,

तुम संग गगन में वासंती होना है,

पिघल रही कसक तन की,

आयी है मौसम मनभावन,

राग उत्सव की गा रहें,

फिर चला है चाँद घर ऑंगन,

देखो उठ रही मधुमाती सुगंध,

अमवा के मोजर से,

फिर मन प्रीत जगे है,

रत जगे महुआ के डाल से,

उमड़ घुमड़ को निकल पड़े है,

युगल गंगा की घाट पर,

फिर देखो सज रहा बसंत,

नव अंकुरित फूलों की चाह पर,

ऋतु प्रेम की फिर ओढ़कर,

तुम संग गगन में वासंती होना है।।

कविता – किताबों की दुनिया

कुछ लोगों को संभाल कर रखो किताबों की तरह,

जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको,

जो अंधेरी रात में एक टिमटिमाते दीपक की तरह,

फिर रोशन कर सकें तुम्हारे सब ओझल रास्तों को,

तेरे उदास दिल के सामने खोल दें पेज मुहब्बत के,

जो तुम्हारे अंतर्मन में दो लफ्ज़ प्यार के घोल दें,

तुम्हारी ख़ामोशियों की जो नई आवाज़ बन सके,

तुम्हारी तन्हाइयों के रुदन में नया साज बन सके,

जो तुम्हारे दुःख में घुल सके, एक नई प्रेरणा की तरह,

जिससे संबंध हो जैसे, शरीर और आत्मा की तरह,

कुछ लोगों को संभालकर रखो किताबों की तरह,

जिनमें मुसीबत के वक़्त जिंदगी के उत्तर ढूंढ सको। 

लेखिका : उषा पटेल

छत्तीसगढ़, दुर्ग


कविता – तुम उस अनश्वर प्रेम रंग में रंगे रहो