कविता – अधूरी कहानीयाॅं एक हास्य-व्यंग्य
यह कहानी इनोसेंट प्यार वाले उम्र की है, जैसे कि हर साल सेक्शन सफल होते हैं वैसे ही इस साल हुआ, गौरव और रिया दोनों को पांचवी कक्षा में एक ही सेक्शन मिला।
दोनों पढ़ाई में बेहद अच्छे थे,
टीचर के दोनों फेवरेट्स बच्चे थे,
पहली नज़र में ही गौरव को प्यार हो गया,
जिससे उसका सीना तोड़ फरार हो गया,
मगर रिया को उससे कोई मतलब नहीं था,
उसका इंटरेस्ट केवल एग्जामिनेशन में पहला पोजीशन लाना था,
फिर एक दिन दोनों को टीचर ने एक साथ बैठाया,
मानों गौरव के साथ ख़ुद भगवान बैठा था,
मगर बेचारा कुछ बयां ना कर पाया,
वह ना ही इतना हिम्मत वाला था,
हर रोज़ पढ़ाई छोड़ बस उसे निहारता गया,
और धीरे-धीरे दिल अपना हारता गया,
बड़ी कोशिश करता था पर पढ़ाई में मन किधर लग पाता था,
टीचर्स के सामने उड़ाया कागज़ का प्लेन जब,
रिया से जा टकराया था,
टीचर्स के डाॅंट से तब वह कहाॅं बच पाया था
दिन गुजरता गया, महीने बीतते गए,
पर वह किधर कुछ कह पाया था,
बेचारा प्यार के चक्कर में सबसे अलग डाॅंट खाया,
ऐसे ही गुज़र गए साल और एग्जाम हुई,
वह तो कर गई टॉप, जनाब 40 पर नीलाम हुए,
घर पर पड़ी डाॅंट स्कूल छोड़ बोर्डिंग भिजवा गया,
ठान लिए भाई साहब अब प्यार छोड़ पढ़ाई पर ध्यान लगाएंगे,
नई कक्षा, पहला दिन, ठान के गए की पढ़ाई पर ध्यान लगाएंगे,
उसकी प्यारी भोली सी सूरत से नजरें हटा अब किताबों पर टिकाएंगे,
अगला दिन था क्लास का, नज़र ना आई उसकी सूरत,
पूछा उसके दोस्तों से तो हाथ आई नई ख़बर,
हुआ ट्रांसफर उसके पापा का, बदल लिया स्कूल,
बस उसी वक़्त रोक अपने ऑंसू को कर लिया खुद को पढ़ाई में मशगूल,
अब बहुत साल हो गए पूरा हुआ स्कूल,
दोबारा कभी उससे मुलाकात ना हुई,
काम में मशरूफ गौरव मियां की दोबारा तो ख्यालों में भी बात ना हुई,
बस अब कभी खोले जनाब किताबे तो वह उसकी याद दिला जाती है,
जब याद वह आती है मस्तिष्क, ह्रदय उसका सब हिला जाती है,
थोड़ी फ़िल्मी लगी होगी कहानी, क्योंकि वह ऐसा ही दौर था,
बाहें खोल शाहरुख़ प्यार फैलाता चारों ओर था।।
लेखक: जसजोत सिंह
दिल्ली