कविता – कद्र करना सिखा दिया, कोरोना का समय
छोटी – छोटी बातें और छोटी से छोटी वस्तुएँ समय आने पर कितने काम आती है, यह समझा दिया है।
कद्र करना सिखा दिया….
महामारी से ग्रस्त यह साल
अपने आखिरी महीने तक आ पहुॅंचा है।
गुज़रे नौ – दस महीने
किसी सख्त दिल गुरु की कक्षा जैसे,
जो कुछ कड़वे, तो
कुछ मीठे सबक सिखा गए।
किसने सोचा था कि
एक ऐसा दौर आएगा,
जब हम सब घर के बाहर नहीं,
घर के भीतर का, अपने रहन – सहन,
आदतों का, सोच- समझ, रिश्ते – नातों,
परवाह का अन्वेषण करेंगे,
लगातार, महीनों तक ?
घर में रहना सीखेंगे। अपने घर
के खाने की कद्र करना समझेंगे।
काली मिर्च, अदरक, लौंग जिन्हें
तीखा समझकर दरकिनारा कर
देते थे, उनको सोने – चांदी की तरह संभालेंगे।
गर्मी में भी गुनगुना पानी पिएंगे,
वो भी हल्दी डालकर।
घर की स्त्रियां कितना काम
करती हैं, समझ पाएंगे।
थककर बैठे इंसान को
एक प्याला चाय मिले, तो
उसे कितनी राहत मिलती है, जान पाएंगे।
जो हर समय घर में रहते रहें हैं,
उनकी स्थिति का बहुत अच्छी
तरह अंदाजा लगा पाएंगे।
केवल धूल साफ कर देने
की मदद मिल जाए,
तो कितना इत्मिनान होता है, यह जान पाएंगे।
परिवार साथ हो, तो जीवन चाक-चौबंद रहता है,
किसी तरह का कोई डर नहीं सताता,
किसी मुश्किल का अंदेशा परेशान नहीं करता,
हाथ और मन कितने मजबूत हो जाते है
यह छोटी – सी, सदियों से जानी – मानी
हकीक़त भी समझा गया यह साल।
लेखिका : उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग