कहानी – रात की बात
आज कल हम घर पर बिल्कुल अकेले थे। श्रीमती जी बच्चों को लेकर कुछ दिन मायके गयीं थी और हमें ये अकेलापन काटने को दौड़ रहा था लेकिन ये दिन भी निकलने ही थे।
दिन तो फिर भी निकल जाते थे लेकिन रात बहुत तकलीफ़ देती थी। घनी अंधेरी रातों में अकेलापन कभी ऊबाता था और कभी डराता था। आज रात हम अपना बोरिया बिस्तर ले कर छत पर आ गए थे। सोचा चलो आज खुले आसमान के नीचे, सितारों के बीच सोया जाए, शायद थोड़ा अच्छा महसूस हो ।
अमावस के बाद की ये पहली रात थी। चाँद का कहीं नाम-ओ-निशान नहीं था। अंधेरा बहुत घना था, वातावरण में मरघट जैसी शांति थी और ठंडी हवा के झौंके भी हमारी नींद में सहायक नहीं हो रहे थे। हमारे मुँह से निकला, रात तू इतनी डरावनी क्यूँ है? तभी ऐसा लगा जैसे कोई धीरे से हँस रहा हो और फिर एक आवाज़ आयी…. सच्चाई से डर लगता है तुम्हें? पहले तो हम एकदम चौंक से गए फिर डर और जिज्ञासा भरा स्वर हमारे मुँह से निकला…. मतलब? …. . वो हँसती हुई आवाज़ फिर बोली….मतलब ये अंधेरा, ये रात तो ज़िंदगी की सच्चाई है? इस से डर क्यूँ लगता है तुम्हें? तब तक हम थोड़ा संभल चुके थे। हमने कहा… डरने की क्या बात है लेकिन अंधेरा किसे पसंद आता है? और तुम हो कौन ? …… .
मैं रात हूँ और तुम्हारे डर को भगाना चाहती हूँ….. उजाला कर दो डर भाग जाएगा, हमने कहा….. अंधेरे के पास उजाले का क्या काम? वो हँस कर फिर बोली। देखो तुम लोग एक चीज़ को समझने में हमेशा भूल करते हो और इसलिए ही डरते हो।…
क्या?……यही कि अंधेरा हक़ीक़त है और उजाला मिथ्या…. वो कैसे?….. अंधेरा सर्व व्यापी है। वो सदा विद्यमान है। वो सारे ब्रह्मांड में फैला है। वो कहीं आता जाता नहीं है। वो असीमित है, अनंत है। ये तो उजाला है जिसे लाना पड़ता है।
अंधेरे को छुपाने के लिए अग्नि की आवश्यकता होती है। उजाले के लिए किसी को जलना पड़ता है। जैसे तुम्हारी इस आकाश गंगा में उजाले के लिए सूर्य निरंतर जल रहा है । कह कर रात थोड़ा चुप हो गयी। अब हमें भी मज़ा आने लगा था।
हमने कहा बात तो तुम्हारी सही है लेकिन फिर ये बताओ कि उजाले की सुख और अंधेरे की दुःख से तुलना क्यूँ की जाती है?
वो इसलिए क्यूँकि मनुष्य सुविधा को ही सुख समझता है और उजाला सुख नहीं सिर्फ़ एक सुविधा है। और मनुष्य अब इन सुविधाओं का अभ्यस्त या कहो की गुलाम हो गया है। हालाँकि उजाला जीवन के लिए ज़रूरी भी है लेकिन जाने के कारण हमें अंधेरे को हेय भाव से नहीं देखना चाहिए क्यूँकि अंधेरा भी जीवन का अभिन्न अंग है।….
कैसे? हमने बात आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पूछा।
देखो जीवन के लिए जितनी आवश्यकता ऊष्मा की है उतनी ही शीतलता की भी है। दोनों का सही समन्वय ही जीवन का निर्माण करते हैं। उजाला ऊष्मा है और अंधेरा शीतलता। लेकिन समस्या ये है मनुष्य ने ख़ुद को उजाले के हिसाब से ढाल लिया है इसलिए अंधेरा उसे तकलीफ़देह लगता है जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए। अगर अंधेरे में भी जीने का अभ्यास किया जाए तो मनुष्य सुख, दुःख की अनुभूति से काफ़ी हद तक दूर हो सकता है।
अच्छा बताओ कुछ जीव तो अंधेरे में रहने के ही आदी होते हैं। गहरे पानी में भी जलचर बिना उजाले के रहते हैं उन्हें कोई परेशानी नहीं होती, क्यूँकि उन्होंने इसका अभ्यास किया है।
मनुष्य को भी दुःख और डर से छुटकारा पाना है तो अंधेरे में रहने का अभ्यास करना होगा।
भीबात अब धीरे धीरे हमारी समझ में आ रही थी। हमने कहा तुम सही कहती हो रात। हमने उजाले को इतना अधिक महत्व दे दिया है कि अब अंधेरे को बर्दाश्त ही नहीं कर पाते। हमें इस काले सफ़ेद के भेद को ख़त्म करना होगा। अंधेरा उजाला तो एक दूसरे में समाए हुए हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। हम काले कोयले को जलाते हैं तो वो सफ़ेद हो जाता है और सफ़ेद काग़ज़ को जलाते हैं तो काला हो जाता है। हम कोशिश करेंगे की अंधेरे को उजाले की तरह की अपनाएँ।
धन्यवाद रात हम तो आँखें बंद करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन तुमने तो हमारी आँखें ही खोल दीं।
रात फिर हँसी…..हाँ एक बात और जीवन का सबसे बड़ा अंधेरा वही है जब कोई साथ ना हो। अकेलापन ही अंधेरा है। जब कोई साथ होता है तो ना अंधेरा महसूस होता है ना डर। जैसे सूर्य अथवा चाँद के होने से अंधेरा मिट जाता है वैसे ही तुम्हारे साथ तुम्हारे परिजन होने से तुम्हारे मन का अंधकार मिट जाता है। इसलिए या तो अकेले रहने की आदत डाल लो या अपने परिजनों के बीच रहो। कह कर रात फिर एक बार हँस कर शांत हो गयी।
हमारा मन भी अब एक अलौकिक सी शांति महसूस कर रहा था। हमारी पलकें अब भारी हो रही थी कि तभी बारिश की एक बूँद हमारे चेहरे से टकराई और हम अपना बोरिया बिस्तर समेट कर नीचे की तरफ़ भाग लिए । शायद आज नींद नसीब में ही नहीं थी।
निर्मल…✍️