कुछ साथी सफ़र में छूट गए
कुछ साथी सफ़र में छूट गए।
कुछ साथी बेवजह रुक गए।
कभी एक काफिला, कहलाया करते थे हम।
एक-एक कर उसमें से, लोग होते गए कम।
हर किसी मोड़ पर, हम अलग होते गए।
सारे साथी फिर, कहीं खोते गए।
अब ज़रा हमारे बीच, आया है अहम।
वो नहीं याद करते हमें, पाला ये वहम।
बस सबके दिल में है, एक चाहत।
पर एक-दूसरे को करने में, लगे है आहता।
बढ़कर कोई हाथ, नहीं बढाता।
इच्छाएं अब कोई बैठ, काफिले में नही सुनातIII
बिना वजह हम, अपने साथी छोड़ आए।
अब तक बैठे है, उनसे मुॅंह फुलाए।
कहानी – बनावटी रिश्तों की सच्चाई
यूँ शाम उतरती है दिल में
यूँ शाम उतरती है दिल में।
जब कुछ मीठी यादें होती है संग में।।
हमारे पागलपन को, सहने की क्षमता हो,जब किसी में||
हर पल मुस्कुराहट की समरसता हो जिसमें||
यूँ शाम उतरती है दिल में।
जब कोई हर बेवकूफी को हमारी, हँस के सह ले||
दो-चार डाट लगाने के बाद ही सही, पर हमें मना ले।।
सुबह की लड़ाई को, जो शाम तक भुला दे||
हमे झकझोर कर सही, पर मीठे बोल सुना दे||
यूँ शाम उतरती है दिल में।
जब कोई हमारी, हर चाहत पूरी करे||
मन रखने को हमारा, पूरी कोशिश करे||
हर बन्धन को तोड़, जो हमारे मन की करे।।
हर मुश्किल घड़ी में, जीवन भर साथ खड़े रहे।।
तब यूँ शाम उतरती है दिल में।
जब कुछ सुनहरे पल होते है,संग में||
कुछ लोग मिले थे राहों में
सफर शुरू हुआ धरती के गलियारों में,
कुछ लोग मिले थे राहों में।
जब जिसकी जरूरत पड़ी मिलते गए,
वक़्त के साथ फिर बिछड़ते गए।।
देने को दे गए ढेरों सीख,
कुछ लोगों में भरी थी खीस।।
जी बेवजह की हँसी हँस, डराते रहें,
काम शुरू होने पर, उदासी से भर जाते रहें।
अब तक मन को लगा है डर क्यों,
न हुई वो मेहनत सफल।।
कहीं किसी के तानों की, वजह न बन जाऊँ।।
होकर असफल अजीब सी, हँसी में न फंस जाऊँ।
मेरे लिए वो था एक टास्क,
जिसको नहीं दिया उसको हुआ न एहसास।।
सफ़र की शुरुआत हुई है,
अभी तो कुछ लोगों से और मिलना बाकी है।।
कुछ तानो में सिमटकर आगे बढ़ना ही काफी है।।
लेखिका: प्रिया कुमारी
फरीदाबाद