कविता । कोरोना महामारी में इंसान की उम्मीद ना टूटे कभी
चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना
चिराग उम्मीदों का कभी बुझने मत देना, दिल में आस जलाये रखना,
माना परिस्थितियाँ आज विकट है, पर ये शाश्वत नहीं ।
वक्त हमेशा रहता नहीं एक जैसा, ये वक्त भी बदल जायेगा,
खुशियों भरा सवेरा फिर से आयेगा, बस धैर्य तुम अपना बनाये रखना।
ये महामारी रूपी संकट के बादल जो छाए हैं चहुँ ओर छंट जायेंगे,
क्या हुआ जो अंधियारा घना छाया है , अंधियारों के बीच सितारे चमकते नजर आयेंगे।
धैर्य तुम अपना ना खोना कभी
मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई जो कभी ज़िंदगी की नाव,
धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना।
राहों में ख़ुशी मिले या ग़म आत्मसंयम की पतवार हर पल थामे रखना ,
जज़्बात रुपी मझधार में हमेशा उलझ कर तुम ना रह जाना।
लहरों के विपरीत होता चलना कभी भी बेहद आसान नहीं,
करके अपने अंतर्मन की शक्तियों पर विश्वास बस निरंतर आगे बढ़ते जाना।
डर के साये से बाहर निकल कोशिशें बारंबार करते जाना,
पर तुम हार ना मानना कभी, चाहे हो जाए क्यों ना कुछ भी।
प्रयासों का कारवां रहे जब रहे संग, साहिल तुझे अपना मिल पाएगा तभी,
मत होना निराश बस रख आस, कभी साकार हो जायेंगे सपने सभी।
मुश्किलों की भयावह लहरों से टकराई, जो कभी ज़िंदगी की नाव,
धैर्य अपना ना खोना कभी, ख़ुद पर हिम्मत हमेशा बनाये रखना।
अंजाम की फ़िक्र
अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे ! बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।
आये सफर-ए-जीवन में मुश्किलें कितनी भी, घबराकर उनसे ना बदलना राहें।
हार में भी तुम्हें अपनी जीत मिलेगी, हमेशा उनसे नयी-नयी सीख मिलेगी।
कोशिशें तुम अथक करना, अंधेरे में भी सदा रोशनी भरना।
मिलेगी मंज़िल एक दिन विश्वास रखना, अंतर्मन में हमेशा ये आस रखना।
अंजाम की फ़िक्र ना कर तू बंदे बस अपना कर्म कर तू निरंतर ।
लेखिका: आरती कुमारी अट्ठघरा ( मून)
नालंदा, बिहार