नारी
खाने में नमक ना हो तो वह स्वाद कहाँ।
लेखनी में हम ना हो तो वह जज़्बात कहाँ।।
हर लम्हों का हिसाब कोई ना रखता है यहाँ।
जो इंतज़ार में बदल जाएँ वो घड़ियाँ बेहिसाब यहाँ।।
खामोशियों में तेरी शिकायतों का लहजा,
कुछ ना कहकर भी कह देना ऐसा,
पास रहकर भी पास ना आना तेरा,
ये अनसुनी शिकायतों का पहरा कैसा।।
फूल सूख कर शाख़ से गिर गए,
ख़ुशबू आज भी मौजूदगी का
एहसास करा रही है।।
एक अजीब-सी ऊर्जा और उत्साह होती है रिश्तों में,
शब्दों की आत्मीयता का आभास भरपूर मिलता है।
जितने रंग होते हैं रिश्तो के, सब के रूप अनोखे मिलते हैं,
प्यार, स्नेह का अटूट बंधन, आंखों से सीधे दिल में उतरता है।।
बेपरवाह हो गई हूॅं ज़िंदगी
आज़ाद हूॅं अब हर रंजिश से।
सुकून की घड़ी अब मिल गई,
अल्हड़ ज़रूर थोड़ी सी हो गई।।
ख़ामोश होकर रह जाती हूँ
जो कुछ कहना है तुमसे,
वो ख़ुद से कहती हूँ ,
अतीत की यादें
धुंधला गई ज़रूर,
मगर वजूद उसका।।
– Supriya Shaw…✍️🌺