हिंदी कविता – भाईचारा
घर-घर उठती दीवारें, दरक रहे जहाँ स्वप्न्न ही सारे, एकाकी,
है बस यही प्रार्थना ईश्वर से, सदा बना रहे यूँ प्यार हमारा।
सुख हो या हो दुःख कोई, न रह जाये अकेला, रहे संग सभी,
हँसते गाते यूँ ही जग में, न हो कोई दुविधा, किसी के मन में,
मिल-जुल विपत्ति से लड़कर, निराश न हो कभी जीवन में,
सबको सबकी यूँ ही रहे फ़िक्र, जग से सुंदर परिवार हमारा।
हर दिन आये लेकर सौग़ाते, खुशियाँ सब एक-दूजे से बाँटें,
गीत सुहाने रहे सजे लबों पर, दिन हो होली, दिवाली रातें।
अपनी बस कहे न कोई, हो सुखी सुन सब आपस की बातें,
खुशियों की बरसातें हों, सुंदर उपवन सा घर-संसार हमारा।
तुम संग बंधा हुआ ये जीवन, तुम ही मेरे जीवन का मधुबन,
तेरी तपस्या से ही खिला हुआ, सुंदर पुष्प अपने घर-आँगन।
यूँ ही जन्म-जन्म मेरे साथी, साथ तेरा रहे बना प्यार हमारा,
न हो कोई यूँ पराया, रहे परिवार का बना हमारा भाई-चारा।
कविता – वो शख्स जानें किधर गया
वो हर किसी की नज़र से, उतर गया,
तहज़ीब की हदों से, जो गुज़र गया।
पाकर मुकाम अपना, रौशन है जहां में,
इज़्ज़त वालिदैन की, अपने जो कर गया।
हर इक आस जुड़ी उससे, भरोसा उसी का,
बात पर अपनी यहाँ, खरा जो उतर गया।
रात ग़म की थी लम्बी बहुत, स्याह चाँदनी भी,
ख़ुद को डुबोया अश्क़ में, और यूँ निखर गया।
बस इक़ ग़लतफ़हमी ज़रा सी, यूँ ही दरम्यां,
मिलजुल के बनाया था जो, घरौंदा बिखर गया।
करता था सबकी इज़्ज़त, जो नेक था बड़ा मगर,
आता नहीं नज़र अब वो, शख्स जानें किधर गया।
इक़ मोहब्बत ही फ़क़त, रास न आई थी उम्रभर उसे,
नाम ख़ुद ही मोहब्बत के जो, कर सारी उमर गया।
सुनसान सी हैं बहुत अब, गलियाँ वो बहारों की सब,
छोड़ किसको जाने कौन, दुनिया से यूँ बसर गया।
उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग