कविता : खुशियों का दरवाज़ा
कहीं बूढ़े सिसकते मिलते है और कहीं जवानी रोती है,
कोई हाथ पसारे बाहर है कोई बाँह फैलाये अंदर है।
हर दरवाजे के अंदर जाने कितनी जानें बसती है,
बच्चे बूढ़े और जवानों की खूब महफ़िल सजती है।
सूरते हाल पूछो उनसे जिसे दर दर ठोकरें ही मिलते है,
दरवाज़े तो है, पर खुशियों का दरवाज़ा नसीबों को मिलते है।
खुल जाता है दरवाज़ा जब हर दुआ क़ुबूल होती है,
इबादत करने वालों की तब हर मुरादें पूरी होती है।
हर मनुष्य के लिए प्रेम, सहायता, हमदर्दी पैदा करनी होती है,
तमाम बुराईयों से परहेज, अपनो से दूरी कम करनी होती है।
मानवता में खुद को समा कर, जीवन का सार जब मिलता है,
तब कुछ क्षण के लिए हमको, खुशियों का दरवाज़ा मिलता है।
लेखिका- उषा पटेल
छत्तीसगढ़, दुर्ग